5 सितंबर यानी आज शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। भारतीय परंपरा में गुरु को गोविंद से बढ़कर आदर दिया गया है क्योंकि गुरु की शिक्षा से ही गोविंद मिलता है।
भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले है। शिक्षा के क्षेत्र में कई कार्य किए और उन्होंने सभी के लिए शिक्षा की नींव तैयार की।
सावित्रीबाई बचपन से ही गलत के खिलाफ आवाज उठाती रहती थीं, उनको पढ़ने-लिखने का भी शौक था। इसी लगन को देखते हुए ज्योतिराव फुले ने उनको आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर महिलाओं के अधिकार एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए, साथ ही में उनको मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है।
सावित्रीबाई फुले ने 1 जनवरी 1848 को महाराष्ट्र के पुणे जिले में लड़कियों के लिए देश के पहले बालिका स्कूल की स्थापना की।
लेकिन उस दौर में स्कूल खोलना इतना आसान नहीं था। जब सावित्रीबाई स्कूल जाती थीं तो लोग उनको पत्थर से मारते थे, उन पर गंदगी फेंकते थे। समाज के कई ताने भी सुने।
ज्योतिराव के पिता गोविंदराव पर यह कहकर दबाव डाला गया कि ज्योतिराव और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले धर्म के खिलाफ काम कर रहे हैं और इससे उनका सामाजिक बहिष्कार किया जा सकता है।
तब ज्योतिराव के पिता ने दोनों को समझाने की कोशिश की लेकिन जब वह नहीं माने तो उन दोनों को घर से निकाल दिया।
ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने गर्भवती महिलाओं के लिए बालहत्या प्रतिबंधक गृह भी खोला। यह ऐसी गर्भवती महिलाओं का घर था, जिनको समाज में प्रताड़ित किया जाता था।
दोनों ने एक दूसरे का बराबरी से साथ निभाया । ज्योतिबा की मौत के बाद सावित्रीबाई ने उनकी चिता को आग लगाई, ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाने वाली सावित्री पहली महिला थीं।
उनकी मृत्यु के बाद सावित्रीबाई ने पूरी कुशलता के साथ ज्योतिबा के आंदोलन का नेतृत्व किया। इस दौरान कई ग्रंथों की रचना भी की और आधुनिक जगत में मराठी की पहली कवयित्री भी बनीं।