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बद से बदतर हालात

sheikh hasina

बांग्लादेश सरकार ने शेख हसीना (sheikh hasina)की पार्टी को प्रतिबंधित कर दिया है। अवामी लीग पर प्रतिबंध आतंकवाद- विरोधी कानून के तहत लगाया गया है। दमनात्मक कानूनी उपायों से किसी पार्टी को रोकने की ऐसी कोशिशें सिरे से अलोकतांत्रिक हैं।

नौ महीने पहले बांग्लादेश में हुए छात्र आंदोलन को लोकतंत्र बहाली का आंदोलन कहा गया। इल्जाम था कि धोखाधड़ी से आम चुनाव कराते हुए तत्कालीन शेख हसीना सरकार लगातार चौथी बार सत्ता पर काबिज हुई है।

पिछले पांच अगस्त को शेख हसीना (sheikh hasina) देश छोड़ कर भाग गईं। तब से मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में बनी कार्यवाहक सरकार वहां सत्ता में है। अब उसी सरकार ने शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को प्रतिबंधित कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि अवामी लीग पर प्रतिबंध आतंकवाद- विरोधी कानून के तहत लगाया गया है। इस तरह इस पार्टी की हर तरह की गतिविधि गैर-कानूनी हो गई है।

(sheikh hasina) अगले आम चुनाव कब होंगे

वैसे तो इस बात के फिलहाल कोई संकेत नहीं हैं कि देश में अगले आम चुनाव कब होंगे, मगर अगर कभी हुए भी, तो उसमें अवामी लीग को भाग लेने की इजाजत नहीं होगी। गुजरे नौ महीनों से अवामी लीग के नेता, कार्यकर्ता और समर्थक अनेक किस्म की ज्यादतियों से गुजरे हैं।

नतीजतन बहुत से कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ दी है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने तो आवामी नेताओं या कार्यकर्ताओं को खुद में शामिल करने की बाकायदा नीति घोषित कर रखी है। इसके बावजूद अवामी लीग (sheikh hasina) के साथ कार्यकर्ता या समर्थक जुड़े हुए हैं, तो वे पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा के कारण ही वहां हैं।

और इन तमाम घटनाक्रमों के बजाय युनूस सरकार को डर है कि अवामी लीग (sheikh hasina)अपनी वापसी कर सकती है, तो इसे पार्टी की गहरी जड़ों की निशानी ही समझा जाएगा। उसे दमनात्मक कानूनी उपायों से रोकने की कोशिश सिरे से अलोकतांत्रिक है।

ऐसे कदमों से युनूस सरकार अपनी ही साख खत्म कर रही है, जो उसके सदस्यों की सत्ता-लिप्सा के कारण पहले ही क्षीण हो चुकी है। मजहबी जुनून को खुला मैदान देना, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त करना और एक समय उदीयमान दिख रहे देश की संभावनाओं पर ग्रहण लगाना इस सरकार की विरासत के अन्य हिस्से हैं।

इन वजहों से देश में असंतोष बढ़ना लाजिमी है, जिसकी महंगी कीमत युनूस, उनके समर्थकों और बांग्लादेश को उसी तरह चुकानी होगी, जैसी शेख हसीना (sheikh hasina)  की तानाशाही के कारण हुआ था।

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pic credit- grok 

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