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ये आंकड़े चुनावी हैं?

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उल्लेखनीय है कि दो वर्ष बाद आंकड़ों में संशोधन किया गया है। तो प्रश्न है कि क्या अब बताए गए आंकड़े अंतिम हैं? या आम चुनाव के माहौल में सुर्खियां बटोर लेने के बाद इनमें भी परिवर्तन किया जाएगा? economic growth

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने आर्थिक वृद्धि संबंधी आंकड़ों में कई संशोधन किए और नतीजा हुआ कि भारत के 2023-24 के आंकड़ों में चमत्कारिक वृद्धि हो गई। पिछले महीने एनएसओ ने यह वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। अब इसे बढ़ाकर 7.6 प्रतिशत कर दिया गया है। बताया गया कि वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में यह दर 8.4 प्रतिशत तक पहुंच गई। चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में अनुमानित सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) को बढ़ा कर 6.9 प्रतिशत पर रखा गया है। economic growth

तो यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर बाकी संशोधन किस आधार पर किए गए। एनएसओ ने 2022-23 में दर्ज हुई जीडीपी वृद्धि दर को घटाकर अब 7.2 से 7 प्रतिशत कर दिया है। जाहिर है, जब आधार नीचे हुआ, तो इस वर्ष की वृद्धि दर ऊंची हो गई। वैसे संशोधन 2021-22 (कोरोना महामारी के ठीक बाद वाले साल) के आंकड़ों में भी किया गया, जिसे अब 9.1 से बढ़ाकर 9.7 प्रतिशत कर दिया गया है। तो चूंकि वह आधार ऊंचा हुआ, तो अगले वर्ष की वृद्धि दर गिर गई।

उधर पिछले वित्त वर्ष के बारे में बताया गया था कि जीवीए वृद्धि 7 प्रतिशत रही। लेकिन अब इसे घटा कर 6.7 प्रतिशत कर दिया गया है। तो यहां भी आधार नीचे हुआ। उससे चालू वित्त वर्ष का अनुमान ऊंचा हो गया। उल्लेखनीय है कि दो वर्ष बाद आंकड़ों में संशोधन किया गया है। तो प्रश्न है कि क्या अब बताए गए आंकड़े अंतिम हैं? या आम चुनाव के माहौल में सुर्खियां बटोर लेने के बाद इनमें भी परिवर्तन किया जाएगा?

यह देखकर कहानी कुछ और रहस्यमय हो जाती है कि एनएसओ ने चालू वित्त वर्ष में निजी उपभोग में अब सिर्फ तीन प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान लगाया है, जबकि जनवरी में जारी आंकड़ों में इसके 4.4 प्रतिशत रहने का अंदाजा लगाया गया था। उधर कृषि क्षेत्र के जीवीए में 0.8 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान लगाया गया है, जबकि पूरे वर्ष में महज 0.7 प्रतिशत वृद्धि की बात कही गई है। फिर भी संभवतः कुछ चुने हुए आंकड़ों के आधार पर खुशहाली की कहानी बुनी गई है।

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