विनियामक एजेंसियों की आखिर क्या भूमिका है? क्या यह किसी हादसे के बाद जांच कर पहले हुए उल्लंघनों को पता लगाने तक सीमित है या लगातार यह सुनिश्चित करना भी उनकी जिम्मेदारी है कि हर कंपनी तय नियमों का पालन करे?
नागरिक विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने एयर इंडिया के तीन अधिकारियों को हटाने का निर्देश दिया है। डीजीसीए इस नतीजे पर पहुंचा कि इन अधिकारियों ने “सिस्टम नाकामी” एवं पायलटों के लाइसेंस, ड्यूटी रोस्टर, एवं अन्य तकाजों से जुड़े “कई तरह के उल्लंघनों” की स्थितियों में अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया। समझा जाता है कि अक्सर पायलटों पर काम का अतिरिक्त बोझ डाला गया, जिन्हें होने देने की जिम्मेदारी उन अधिकारियों पर आती है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एयर इंडिया ने प्रोटोकॉल के खिलाफ जा कर जूनियर और सीनियर पायलटों की जोड़ियां बनाई, पायलटों के लाइसेंस से संबंधी नियमों को तोड़ा, और प्रोटोकॉल निगरानी संबंधी व्यवस्था का पालन नहीं किया।
मगर यह सब जब हो रहा था, डीजीसीए की निगरानी से वो बाहर क्यों रहा? इन गड़बड़ियों पर अहमदाबाद में हुए हादसे के बाद ही डीजीसीए का ध्यान क्यों गया है? एक अन्य मामले में डीजीसीए ने इंडिगो एयरलाइन्स के उस पालयट को ‘सुधार प्रशिक्षण’ पर भेजने का निर्देश दिया है, जो 21 मई को दिल्ली- श्रीनगर उड़ान का संचालक था। ये उड़ान गंभीर टर्बुलेंस का शिकार हुआ, जिस पर पायलट ने मार्ग बदल लिया। डीजीसीए के आदेश से संकेत मिला है कि पायलट का निर्णय गलत था। इन दोनों मामलों में भारत में पायलट संबंधी नियमों के पालन तथा निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। और सवालों के घेरे में खुद डीजीसीए भी आता है।
मुद्दा है कि विनियामक एजेंसियों की आखिर क्या भूमिका है? क्या यह किसी हादसे के बाद जांच कर पहले हुए उल्लंघनों को पता लगाने तक सीमित है या लगातार यह सुनिश्चित करना भी उनकी जिम्मेदारी है कि हर कंपनी तय नियमों का पालन करे? हाल में इंडिगो एयरलाइन्स की दो उड़ानों के मुसाफिरों के सामान गायब या क्षतिग्रस्त होने की शिकायतें आईं। इंडियन एयरलाइंस की उड़ानों में यात्री सुविधाओं की अनदेखी की खबरें लगातार आई हैं। ऐसे मामलों में यात्री अपने को अनाथ महसूस करते हैं। और ऐसा इसीलिए हो पाता है, क्योंकि एयरलाइनें अपने को किसी तरह के विनियमन से भय-मुक्त पाती हैं। यात्री सुरक्षा एवं सुविधा से जुड़े ऐसे सभी मामलों में आखिर किसका उत्तरदायित्व है?