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व्यापार युद्ध का दौर

चीन

दुनिया में मची अफरातरफी ट्रंप के दुस्साहसी कदम का परिणाम है। मगर इससे ट्रंप अपने घोषित मकसद में कामयाब होंगे, इसकी संभावना नहीं दिखती। आखिर अर्थशास्त्र का आम सिद्धांत है कि सुगम व्यापार से सबको लाभ होता है, जबकि ट्रंप ने उलटी राह पकड़ी है।

पहला गोला अमेरिका ने दागा। उसके बाद चीन ने उतना ही ताकतवर जवाबी हमला किया। उधर यूरोपीय देश अपने हमले की तैयारी कर रहे हैं। दुनिया की तीन आर्थिक महाशक्तियां जब टैरिफ वॉर (आयात शुल्क युद्ध) में उतरती दिख रही हैं, तो विश्व अर्थव्यवस्था पर उसके संभावित असर का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। यह यूं ही नहीं है कि चर्चाओं में 1930 को याद किया जा रहा है, जब इसी तरह का टैरिफ लगाने का कानून अमेरिका ने पारित किया था। नतीजा अमेरिका में आई महामंदी के रूप हुआ, जिससे विश्व व्यापार की जड़ें हिल गईं। अगले कुछ वर्षों में विश्व व्यापार घट कर एक तिहाई रह गया।

टैरिफ की दीवार खड़ी करने के ट्रंप के प्रयासों से अमेरिकी शेयर बाजारों में पहले से अफरातफरी मची है। वहां महंगाई का नया दौर तथा मंदी आने के अंदेशे गहराते चले गए हैँ। अब अन्य देशों के जवाबी टैरिफ हमलों से ये सारा संकट और संगीन हो गया है। इसकी मार व्यापार युद्ध में सक्रिय प्रमुख देशों पर पड़ेगी, मगर बाकी दुनिया भी इससे अप्रभावित नहीं रहेगी। भारत में ऐसी खबरें आई हैं कि अमेरिकी खरीदार यहां के सप्लायरों से 10-15 फीसदी की रियायत मांगने लगे हैं। वे भारत पर लगे 26 प्रतिशत टैरिफ का पूरा बोझ नहीं उठाना चाहते। भारतीय विक्रेता उनके दबाव में आए, तो इस दुश्चक्र से देश में आय घटेगी, जिसका असर उपभोग, मांग और निवेश पर पड़ेगा।

चूंकि भारत में जवाबी कार्रवाई चर्चा से बाहर है, इसलिए यहां सरकार तथा कारोबारियों दोनों के पास रियायत देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। इससे आम अर्थव्यवस्था के लिए नई चुनौतियां खड़ी होना तय है। भारत के जीडीपी में आधा से पौना प्रतिशत तक गिरावट आने का अनुमान लगाया गया है। ऐसे अंदेशे अधिकांश देशों के सामने मंडरा रहे हैं। यह अमेरिका को फिर से ‘ग्रेट’ बनाने के ट्रंप के दुस्साहसी कदम का परिणाम है। मगर इससे ट्रंप अपने घोषित मकसद में कामयाब होंगे, इसकी संभावना भी नहीं दिखती। आखिर अर्थशास्त्र का आम सिद्धांत है कि सुगम व्यापार से सबको लाभ होता है, जबकि ट्रंप ने उलटी राह पकड़ी है।

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