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यह गंभीर मसला है

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fake voting evm: उद्देश्य विपक्ष को आगाह करना भर है कि चुनावी हेरफेर का सवाल वे केवल पराजय के दिन उठाएंगे और फिर सब भूल कर अगले चुनाव की तैयारी में जुट जाएंगे, तो इस गंभीर मुद्दे पर जनता के बीच कोई नैरेटिव वे खड़ा नहीं कर पाएंगे।

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पार्टी ‘महाराष्ट्र का मन’ जानती है

महा विकास अघाड़ी की हार के बाद शिव सेना (उद्धब) नेता संजय राउत ने कहा कि उनकी पार्टी ‘महाराष्ट्र का मन’ जानती है। स्वाभाविक रूप से ऐसा नतीजा नहीं आ सकता था। यानी सत्ता पक्ष ने हेरफेर से चुनाव जीता।

इसी गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी के एक पराजित उम्मीदवार ने कहा कि 19 से 17 दौर की गिनती तक वे आगे थे। मगर उसके बाद ‘99 फीसदी चार्ज्ड’ ईवीएम निकले, जिनमें अंतर इतना था कि अंततः वे हार गए।

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं ने निर्वाचन आयोग पर नियोजित ढंग से चुनावों में समान धरातल खत्म करने का आरोप लगाया। हरियाणा की तरह ही उन्होंने महाराष्ट्र के परिणाम की साख पर गंभीर सवाल उठाए।

साल भर पहले मध्य प्रदेश में हार के बाद वहां के कांग्रेस नेताओं ने ईवीएम में हेरफेर के आरोप लगाए थे।

सब कुछ “मैनेज्ड” हो चुका

यानी अब यह आम रुझान बन गया है। जहां भी विपक्षी दलों की हार होती है, वे उसे सहज स्वीकार नहीं करते। हालांकि इसका कोई ठोस उत्तर उन्होंने पेश नहीं किया है कि सब कुछ “मैनेज्ड” हो चुका है, तो झारखंड और कश्मीर घाटी में कैसे भाजपा गठबंधन हार गया और लोकसभा चुनाव में कैसे भाजपा को उतना तगड़ा झटका लग गया था।

इस प्रश्न को उठाने का मकसद यहां विपक्षी दलों के संदेह और सवालों को संदिग्ध बनाना या उन्हें निराधार बताना नहीं है।

उद्देश्य सिर्फ विपक्ष को आगाह करना है कि वे ऐसे सवाल केवल चुनावी पराजय के दिन उठाएंगे और दो चार दिन में सब भूल कर अगले चुनाव की तैयारी में लग जाएंगे, तो वे इस गंभीर मुद्दे पर आम जन के बीच कोई नैरेटिव तैयार नहीं कर पाएंगे।

उनकी बातों में तनिक भी दम हो, तो फिर इस वक्त इससे ज्यादा बड़ा मुद्दा देश के सामने कोई और नहीं है। इसका अर्थ होगा कि देश में लोकतंत्र को सत्ता की मुट्ठी में समेट लिया गया है।

मगर आज तक इंडिया गठबंधन ने इस मुद्दे पर कोई साझा राय या जन अभियान का साझा कार्यक्रम नहीं बनाया। क्यों? इस ‘क्यों’ को विपक्ष अब सिर्फ अपनी साख की कीमत पर ही नजरअंदाज कर सकता है।

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