मुक्त व्यापार वार्ताएं दूसरे पक्ष से अधिकतम लाभ झटक लेने का माध्यम बन गई है। चूंकि दोनों पक्षों का नजरिया यही होता है, इसलिए बात अटकी रहती है। ये समझ कहीं खो गई है कि व्यापार द्विपक्षीय लाभ में होता है।
मुक्त व्यापार वार्ता में बिना किसी खास प्रगति के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ब्रिटेन से लौट आए हैं। इस बार किसी बड़ी प्रगति की उम्मीद थी। मगर ऐसा हुआ नहीं। अब अधिकारियों ने संकल्प जताया है कि व्यापार वार्ता को जल्द ही अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। उनके मुताबिक द्विपक्षीय निवेश संधि और सामाजिक सुरक्षा संबंधी समझौते- डीसीसीए- के संबंध में कुछ तकनीकी मुद्दे उठ खड़े हुए हैं।
अब उनका हल खोजना है। इस बीच इसी यात्रा के दौरान गोयल लंदन से नॉर्वे गए। वहां यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (ईएफटीए) के साथ पिछले साल मार्च में हुए मुक्त व्यापार समझौते पर अमल के बारे में बातचीत हुई।
मुक्त व्यापार की राह में अड़चनें
साल भर बाद भी ये समझौता अमल में नहीं आया है। बताया गया है कि इस संबंध में कुछ कानूनी औपचारिकताएं अभी पूरी होनी हैं। पिछले साल जब ये करार हुआ, तो भारत में इसे एक बड़ी कामयाबी के रूप में देखा गया था। इसके अनेक फायदे बताए गए थे। बहरहाल, फायदे तभी होंगे, जब पहले कानूनी रस्म-अदायगी पूरी हो।
ओस्लो के बाद गोयल ने ब्रसेल्स की यात्रा की। वहां यूरोपियन कमीशन के व्यापार एवं आर्थिक सुरक्षा आयुक्त के साथ उन्होंने भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा की। दोनों पक्षों ने इस वर्ष के अंत तक ये करार पूरा कर लेने का इरादा जताया है।
मगर सूचना यह है कि इस दिशा में ज्यादा प्रगति हुई नहीं है। खुद गोयल ने कुछ समय पहले ‘यूरोप के नजरिए’ की आलोचना की थी और उसकी शर्तों को ‘देश के आत्म-सम्मान के विरुद्ध’ बताया था। तो कुल मिला कर बात अभी जहां की तहां है। ऐसा होने की ठोस स्थितियां हैं। मुक्त व्यापार के लिए यह प्रतिकूल समय है।
अमेरिका के साथ-साथ तमाम देश मुक्त कारोबार के रास्ते में नई दीवारें खड़ी कर रहे हैं। वैसे में व्यापार वार्ता दूसरे पक्ष से अधिकतम लाभ झटक लेने का माध्यम बन गई है। चूंकि दोनों पक्षों का नजरिया यही होता है, इसलिए बात अटकी रहती है। ये समझ कहीं खो गई है कि व्यापार द्विपक्षीय लाभ में होता है। इसलिए मौजूदा दौर में मुक्त व्यापार की राह आसान नहीं रह गई है।
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