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महंगी पड़ी है खामख्याली

अपने मौजूदा कार्यकाल में ट्रंप भारत के प्रति कोई विशेष भाव दिखाते नजर नहीं आए हैं। चाहे व्यापार वार्ता हो, या सामरिक एवं कूटनीतिक क्षेत्र- ट्रंप प्रशासन अपनी परिभाषा के अनुरूप ‘अमेरिका फर्स्ट’ की अपनी नीति पर अमल कर रहा है।

अमेरिका से द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए वॉशिंगटन गए भारतीय दल के फिर खाली हाथ लौटने के बाद वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि किसी समयसीमा के दबाव में भारत ऐसे समझौते पर दस्तखत नहीं करेगा, जो राष्ट्रीय हित में ना हो। स्पष्टतः गोयल नौ जुलाई की समयसीमा के संदर्भ में टिप्पणी कर रहे थे, जो अमेरिका के डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने घोषित कर रखी है। यह लगभग साफ है कि अचानक कोई चमत्कारिक प्रगति नहीं हुई, तो नौ जुलाई को भारतीय उत्पादों पर अमेरिका मनमाना आयात शुल्क लगा देगा। अब तक हुई वार्ताओं में कृषि और डेयरी क्षेत्र को पूरी तरह से खोलने के अमेरिकी दबाव में भारत नहीं आया है।

उधर भारतीय वार्ताकार अमेरिका से यह वादा भी नहीं ले पाए हैं कि भारत ने अपने यहां अमेरिकी कारोबारियों को रियायतें दीं, तो उसके बदले अमेरिका ऑटो पार्ट्स एवं स्टील समेत भारत के तमाम उत्पादों पर कोई अतिरिक्त टैरिफ नहीं लगाएगा। स्पष्टतः अमेरिका एकतरफा डील चाहता है। (चीन के अलावा) अन्य देशों के प्रति भी अमेरिका का यही नजरिया सामने आया है। वार्ताओं में ट्रंप प्रशासन अपना एक अंतिम ऑफर सामने रख देता है और यह संबंधित देश छोड़ देता है कि वह उसे स्वीकार करे या वापस जाए। भारत के मामले में भी उसने यही रवैया अख्तियार किया है। इस तरह ट्रंप प्रशासन के आरंभिक हफ्तों में भारत में बनी ये धारणा खामख्याली साबित हुई है कि अमेरिका भारत से विशेष व्यवहार करेगा और नरेंद्र मोदी सरकार ट्रंप प्रशासन से अपने लिए बेहतर डील झटक लेगी।

अपने मौजूदा कार्यकाल में ट्रंप भारत के प्रति कोई विशेष भाव दिखाते नजर नहीं आए हैं। चाहे व्यापार वार्ता का दायरा हो, या सामरिक एवं कूटनीतिक क्षेत्र- ट्रंप प्रशासन अपनी परिभाषा के अनुरूप ‘अमेरिका फर्स्ट’ की अपनी नीति पर अमल कर रहा है। यह रुझान मोदी सरकार के लिए ना सिर्फ निराशाजनक साबित हुआ है, बल्कि इससे कुछ नई चुनौतियां भी भारत के सामने आ खड़ी हुई हैँ। चूंकि इस स्थिति के लिए कोई पूर्व तैयारी या वैकल्पिक सोच फिलहाल नहीं है, इसलिए भारत एक चौराहे पर किंकर्त्तव्यविमूढ़ खड़ा नजर आ रहा है।

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