प्रधानमंत्री ने ईरान के राष्ट्रपति को फोन कर जो संदेश दिया, वह भारतीय विदेश नीति की आम दिशा के अनुरूप ही था। मोदी ने तनाव घटाने का आह्वान करते हुए बातचीत एवं कूटनीति के जरिए आगे बढ़ने का सुझाव दिया।
सोशल मीडिया पर असंख्य फेक एकाउंट्स की मौजूदगी और उनके जरिए बिजली चमकने जैसी तेजी से फैलाई जाने वाली निराधार सूचनाएं आज लगभग हर क्षेत्र में बड़ी समस्या बन गई हैं। कूटनीति और विदेश नीति के क्षेत्र में ऐसी सूचनाएं सरकारों एवं देशों के रुख के बारे में ऐसे गंभीर भ्रम पैदा कर देती हैं, जो लंबे समय तक टिके रहते हैं। इसलिए भारत सरकार के प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की तारीफ करनी होगी कि रविवार को तेजी से फैली इस सूचना का उसने तीव्रता से खंडन कर दिया कि ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी करने के लिए अमेरिकी लड़ाकू विमानों को भारतीय वायु क्षेत्र से गुजरने दिया गया।
ये सूचना इस रूप में फैली कि भारत में अनेक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और मीडियाकर्मियों ने बिना तथ्यों की जांच-पड़ताल किए अपने मन-माफिक नैरेटिव पेश करने शुरू कर दिए। बहरहाल, पीआईबी के खंडन से तुरंत इस पर लगाम लग गया। वैसे देखा जाए, तो पश्चिम एशिया में भड़के युद्ध के संदर्भ में यह कोई ऐसा मसला नहीं है, जिस पर बड़ी हाय-तौबा मचाई जाती। 1990-91 में प्रथम खाड़ी युद्ध के समय, जब भारत की गुट-निरपेक्ष नीति का दौर था, तब भी अमेरिकी नेतृत्व वाले मोर्चे के लड़ाकू विमानों को भारत में ईंधन लेने की सुविधा दी गई थी। आज तो भारत की विदेश नीति मोटे तौर पर अमेरिकी धुरी की तरफ झुकी हुई ही समझी जाती है।
रविवार को ही अमेरिकी हमलों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान को फोन कर जो संदेश दिया, वह भारतीय विदेश नीति की आम दिशा के अनुरूप ही था। प्रधानमंत्री ने हाल में हुई ‘तनाव वृद्धि’ पर चिंता जताई। तनाव घटाने का आह्वान करते हुए उन्होंने बातचीत एवं कूटनीति के जरिए आगे बढ़ने का सुझाव दिया। एक राय यह हो सकती है कि ऐसी सलाह की ज्यादा जरूरत इजराइल और अमेरिका को है, जिन्होंने इजराइल पर हमलों की शुरुआत की। बहरहाल, मोदी ने अपनी सरकार की नीति के अनुरूप राय ही रखी। इसके बीच अमेरिकी विमानों को भारतीय वायु क्षेत्र के इस्तेमाल की इजाजत दी भी गई होती, तो वह भी कोई विसंगति नहीं होती।