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गरीबी के मारे भारतीय

poverty

poverty: सार यह कि भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी का मारा है। जबकि गरीबी मापने का विश्व बैंक का पैमाना खुद आलोचनाओं के केंद्र में रहा है। अनेक विशेषज्ञों ने इसे अति न्यूनतम पैमाना बताया है।

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भारत पर चरम गरीबी का पैमाना 6.85 डॉलर

विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में माना है कि 2020 (यानी कोरोना काल) के बाद से भारत सहित दुनिया में गरीबी घटने की प्रक्रिया ठहर गई है। बैंक का ताजा आकलन है कि भारत में इस समय 12 करोड़ 90 लाख लोग चरम गरीबी की अवस्था में जी रहे हैं। विश्व बैंक का चरम गरीबी का पैमाना 2.15 डॉलर प्रति दिन (परचेजिंग पॉवर पैरिटी- पीपीपी- के अर्थ में) से कम खर्च क्षमता है। पीपीपी पर यह रकम फिलहाल लगभग 44 रुपये प्रतिदिन बैठती है। वैसे विश्व बैंक ने चूंकि भारत को मध्यम आय वाले देशों की श्रेणी में रखा हुआ है, इसलिए उसका कहना है कि भारत पर चरम गरीबी का पैमाना 6.85 डॉलर प्रति दिन (पीपीपी में तकरीबन 139 रुपये) लागू होना चाहिए।

भारत में 43 करोड़ से अधिक लोग गरीब

इस कसौटी पर देखें, तो भारत में 43 करोड़ से अधिक लोग चरम गरीबी की अवस्था में हैं। यह संख्या 1990 में भारत में चरम गरीबी सीमा के नीचे आने वाले कुल लोगों की संख्या से ज्यादा है (तब भारत की जनसंख्या लगभग 88 करोड़ थी)। विश्व बैंक ने भारत सरकार की तरफ से हाल में जारी घरेलू उपभोग एवं खर्च सर्वे रिपोर्ट- 2022-23 में अपनाए गई विधि की आलोचना की है। इस सर्वे के आधार पर सरकार ने भारत में गरीबी मिटाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति का दावा किया था। यानी कुल सार यह है कि भारत में गरीबी के मारे लोग आज भी बड़ी संख्या में हैं। जबकि गरीबी मापने का विश्व बैंक का पैमाना खुद आलोचनाओं के केंद्र में रहा है। (poverty)

अनेक विशेषज्ञों ने इसे मनमाने ढंग से तैयार किया गया न्यूनतम पैमाना बताया है। अगर गौर करें कि मध्यम आय श्रेणी वाले भारत जैसे देश में रोज 139 रुपये खर्च क्षमता वाले व्यक्ति को विश्व बैंक गरीब नहीं मानता, तो समझा जा सकता है कि यह फॉर्मूला किस हद तक न्यूनतम है। आखिर इतनी रकम के साथ कोई व्यक्ति किस स्तर का उपभोग कर सकता है? बहरहाल, इस फॉर्मूले के मुताबिक भी ‘सबसे तेजी गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था’ की यह सूरत उभरी है, हमारे विकास की दिशा क्या है, यह खुद जाहिर हो जाता है।

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