Wednesday

09-07-2025 Vol 19

Poverty

उपलब्धि है या नाकामी?

दो तिहाई आबादी की रोजमर्रा की जिंदगी सरकारी अनाज या कैश ट्रांसफर से चलती हो, तो क्या किसी सरकार को इसे अपनी उपलब्धि बताना चाहिए?

आंकड़ों का फेर है

विश्व बैंक ने बीते हफ्ते गरीबी मापने के अपने पैमाने को “अपडेट” किया।

आंकड़ों का मकड़जाल है

विश्व बैंक ने भारत में गरीबी के बारे में अपना आकलन जारी किया है। इससे आम सूरत यह उभरी है कि भारत में गरीबी घटी है।

प्रति व्यक्ति आय और बीपीएल का आंकड़ा

सुप्रीम कोर्ट ने एक बहुत मार्के की बात कही है। सर्वोच्च अदालत ने राज्यों की प्रति व्यक्ति आय और उन राज्यों में गरीबी रेखा से नीचे की आबादी की...

गरीबी रेखा का यह कैसा फॉर्मूला है!

india economy news : भारत सरकार गरीबी रेखा का नया फॉर्मूला ले आई है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य डॉ. शामिका रवि ने इसका ऐलान किया है।

मध्य प्रदेश से 2028 तक गरीबी समाप्त करने का सरकार ने लिया संकल्प: मोहन यादव

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने वर्ष 2028 तक गरीबी समाप्त करने का संकल्प लिया है। इसके लिए सरकार ने एक रोडमैप भी तैयार किया है, जिस पर...

गुलाबी तस्वीर का सच

पिछले हफ्ते जारी दो सरकारी रिपोर्टों में देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर बुनी गई।

गरीबी के मारे भारतीय

सार यह कि भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी का मारा है। जबकि गरीबी मापने का विश्व बैंक का पैमाना खुद आलोचनाओं के केंद्र में रहा है।

ग्लोबल रैंकिंग्स में भारत

मोदी सरकार को विश्वसनीय आंकड़ों से खास गुरेज है। दशकीय जनगणना तक उसकी प्राथमिकता में नहीं है, तो आंकड़ों के प्रति उसके अपमान भाव को सहज ही समझा जा...

अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ है

बाजार में मांग नहीं बढ़ने के बावजूद कंपनियों का मुनाफा बढ़े। ये सारी चीजें हो रही हैं इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था की माइक्रो तस्वीर ठीक नहीं है।

हाल इतना बदहाल है!

थाली दूर होने की बड़ी वजह खाद्य पदार्थों की महंगाई है, जिसकी दर लगातार लगभग नौ प्रतिशत के करीब बनी हुई है।

गलत दवा से इलाज

बेरोजगारी का ठोस हल सिर्फ यह है कि वास्तविक अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़े, जिससे धीमा पड़े आर्थिक चक्र में गति आएगी।

चांद लाने जैसी बात

गरीबों को पहले तो चंद्र बाबू नायडू का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि उन्होंने उनके वजूद से इनकार नहीं किया।

महंगाई कम दिखाने का नायाब नया तरीका

केंद्र सरकार के पास हर कमी को ढक देने का कोई न कोई नुस्खा है। जैसे कोई बड़ी वैश्विक हस्ती आती है तो झुग्गी बस्तियों को दिवार खड़ी करके...

भारतः अरबपति राज का उदय

दुनिया के जिन देशों में सबसे ज्यादा आर्थिक गैर-बराबरी बढ़ी है, उनमें भारत प्रमुख है।

हममें इंसानियत खत्म होती जा रही!

मेट्रो के सुरक्षाकर्मी ने एक बुजुर्ग यात्री को इसलिए ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया क्योंकि उस बुजुर्ग किसान के कपड़े गंदे और पुराने दिखाई दे रहे थे। humanity

यह खुशहाली तो नहीं

ताजा सर्वे रिपोर्ट के बारे में यह तो कहा जाएगा कि यह आज की हकीकत को बताती है, मगर 2011-12 से उसकी तुलना करना तार्किक और वाजिब नहीं होगा।

चुनावी मकसद से चर्चा?

नीति आयोग ने कई महीने जारी अपनी रिपोर्ट को संभवतः फिर से चर्चा में लाने के लिए ताजा एक डिस्कसन पेपर तैयार किया है।

भारत की दो हकीकतें

भारतीय समाज की इस समय दो हकीकतें हैं। बहुसंख्यक आबादी की जिंदगी अधिक संघर्षपूर्ण होती गई है, मगर उसी समय लोगों में भविष्य बेहतर होने का भरोसा मजबूत होता...

पांच वर्ष में 13.5 करोड़ भारतीय गरीबी मुक्त

ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत पर आ गई है, वहीं शहरी क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 8.65 प्रतिशत से घटकर 5.27 प्रतिशत...

भारत में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर

संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि 15 साल में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकलकर भारत ने गरीबी उन्मूलन...

भारतः सब कैसा एक्स्ट्रीम!

मैं भी इस भदेस सच्चाई से झनझना गया कि 140 करोड़ लोगों में 90 फीसदी लोग मासिक 25 हजार रुपए से नीचे की कमाई पर जी रहे हैं!

कार्यबल में घटती महिलाएं

विश्व बैंक के मुताबिक भारत में औपचारिक और अनौपचारिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी साल 2005 में 27 फीसदी थी, जो 2021 में घटकर 23 फीसदी रह गई।

गरीबी, बेरोजगारी बरदाश्त करने की अंतहीन सीमा!

इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तो एक नारा लगता था- आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को जिताएंगे। यानी भूखे रह लेंगे लेकिन इंदिरा गांधी को जिताएंगे। वह दौर अभी तक खत्म...

ताजा तीन इंडेक्स का भारत सत्य

फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स में भारत की स्थिति इतनी खराब बताई गई है कि भारत अब आंशिक रूप से स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश की श्रेणी में है।

अब प्रश्न औचित्य का

नदी में पानी आता है, तो सबकी नाव ऊंची होती है- यह कहावत अक्सर नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था के औचित्य को सही ठहराने के लिए कही जाती है।

भारत में गरीबी-अमीरी की खाई

देश में गरीबी भी उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही है, जितनी तेजी से अमीरी बढ़ रही है।

आरक्षण का आधार सिर्फ गरीबी हो

भोपाल में कर्णी सेना ने एक अपूर्व प्रदर्शन आयोजित किया और मांग की कि सरकारी नौकरियों, चुनावों और शिक्षण संस्थाओं में, जहां भी आरक्षण की व्यवस्था है, वहाँ सिर्फ...

140-170 करोड़ लोगों में कमाने वाले और खाने वाले!

भारत में पिछले पच्चीस वर्षों में नौजवान आबादी तेजी से बढ़ी है। अगले चालीस सालों में और बढ़ेगी। मतलब काम कर सकने की उम्र की वर्कफोर्स का बढ़ना!

बेरोजगार नौजवानों से बरबादी के खतरे!

ध्यान नहीं आ रहा है कि आबादी से जुड़े आंकड़ों के अलावा भारत किसी और मामले में दुनिया में नंबर एक है। भारत में सबसे ज्यादा युवा आबादी है,...

क्या मजदूर सप्लाई करने की फैक्टरी बनेगा?

आखिर अभी भी प्रवासियों की संख्या के लिहाज से भारत दुनिया का नंबर एक देश है। दुनिया के अलग अलग देशों में रहने वाले प्रवासियों की भारत की संख्या...

रोइए जार जार क्या, कीजिए हाय हाय क्यों

देश के 81 करोड़ लोग इस बात से संतुष्ट और खुश हैं कि उनको पांच किलो अनाज मुफ्त में मिल रहा है और आगे भी मिलता रहेगा।