• ड्रैगन (चीन) का सुनहरा समय!

    अमेरिका बनाम रूस में क्या फर्क है? अमेरिका गरूड़-ईगल, हंस जैसे पक्षियों की आजाद उड़ान है वही रूस भालूओं की महाशक्ति है। चीन बनाम भारत में क्या फर्क है? तो चीन आग उगलते ड्रैगन का पर्याय है वही भारत हाथी, गाय, भेड-बकरियों का वह शाकाहारी जंगल है, जो नियति के सर्कस में गुंथा हुआ है! पूछ सकते हैं भला इस तरह से विचार कैसे? इसलिए कि इन चार देशों की वृत्ति-प्रवृत्ति, जैविक-शारीरिक-मानसिक प्रकृति से पृथ्वी के सभी आठ अरब लोगों (मानवता) का भविष्य है! इन चार देशों की जनसंख्या कुल विश्व आबादी का 43 प्रतिशत है। यदि इसके साथ जुनूनी...

  • हिरोशिमा में तिहरे खतरे के बादल!

    विश्व की शक्ल बदल रही है। वजह पृथ्वी और मनुष्य दोनों के दुर्दिन हैं। पृथ्वी का मिजाज, उसकी इम्यून क्षमता, जहां मनुष्यजनित और प्रकृतिगत बीमारियों से बिगड़ती हुई है वहीं मानव सभ्यता बुद्धि की पांचवीं और संभवतया आखिरी क्रांति से अपने दिमाग को गंवाने का खतरा लिए हुए है। मनुष्य बुद्धि का मशीनी टेकओवर संभव है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस याकि मानव निर्मित नकली बुद्धि की वह एक असेंबली लाइन, जिस पर नए सिरे से होमो सेपियन की गढ़ाई होगी। वैसे ही जैसे कभी प्राचीन काल में धर्म ने इंसान को भिन्न-भिन्न ठप्पों का बनाया था। बहुत संभव है इसी सदी में...

  • ‘न्यू इंडिया’ में ‘नया इंडिया’, वर्ष-14, अंक-1

    सो तेरह वर्ष! भारत के बदलने के वर्ष। और उस बदलने पर बेबाक लिखते जाने वाला ‘नया इंडिया’। समय का यह संयोग सचमुच एक वह अनचाहा फल है, जिस पर मुझे और ‘नया इंडिया’ टीम को गौरव करना चाहिए। मेरा निश्चित विश्वास है कि ‘न्यू इंडिया’ के गुजरे 13 वर्ष आजाद भारत के पहले सौ वर्षों का वह इतिहास खंड बनेगा, जिसे याद करते हुए मौजूदा 140 करोड़ लोगों की पीढ़ियां बार-बार रोएंगी कि- लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पाई! ‘नया इंडिया’का यह अंक चौदहवें वर्ष का पहला है। कल सवेरे-सवेरे श्रीमतीजी ने याद दिलाया कि आज वर्षगांठ...

  • बांध फूटा! क्या मोदी मानेंगे?

    कोशिश हरसंभव हुई। नरेंद्र मोदी-योगी आदित्यनाथ, अमित शाह ने सब कुछ दांव पर लगाया। जय श्रीराम, बजरंग बली और महादेव याकि हिंदू देवी-देवताओं की आन-बान-शान भी दांव पर लगाई गई। बावजूद सबके कर्नाटक में भाजपा का घड़ा फूटा। भाजपा बह गई। मतदाताओं ने भाजपा को कांग्रेस से अधिक महाभ्रष्ट करार देकर उसे प्रदेश से बेदखल किया। पर मोदी क्या ऐसा मानते हुए होंगे? क्या उन्हें लगा होगा कि जनता में उनका तिलिस्म खत्म होता हुआ है? सवाल मुश्किल है। इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी अपने आपको जितना शक्तिमान दिखलाते हैं उतनी ही भयाकुलता व असुरक्षा में सांस लेते हैं। मैं नरेंद्र...

  • हम राक्षस बनेंगे या खत्म होंगे?

    यह मानव सभ्यता का इक्कीसवीं सदी का सवाल है। इसलिए क्योंकि मानव चेतना, उसके अक्षरब्रह्म का मशीन हरण करते हुए है। सोशल मीडिया और कृत्रिम बुद्धि दोनों इंसान के दिमाग का स्थानापन्न याकि रिप्लेसमेंट है। सोचें, क्या है मनुष्य होने का अर्थ? जानवर से उसकी क्या भिन्नता है? मोटा-मोटी अक्षर, शब्द और भाषा। यदि मनुष्य चेतना, उसकी खोपड़ी अपने शरीर की अनुभूति, सुख-दुख और स्मृतियों को शब्द, भाषा से व्यक्त, जाहिर नहीं कर पाए तो वह जैविक शरीर फिर किस काम का? यदि मनुष्य दिमाग अपनी तह सोचना बंद कर दे। कुंद, मंद, ठूंठ हो जाए और उसकी जगह एक-दूसरे...

  • मोदी अधिक घायल या केजरीवाल?

    शनिवार को कर्नाटक की एक जनसभा में नरेंद्र मोदी घायल दिखलाई दिए। उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा ‘जहरीला सांप’ कहे जाने पर जनसभा में अपनी गिनती बताते हुए कहा कि कांग्रेस ने उनको 91 बार गाली दी है। सोचें, वे नरेंद्र मोदी गालियों की काउंटिंग करते हुए हैं, जिन्होंने 2014 से अब तक के नौ वर्षों में भारत को गालियों की खर-पतवार बनवाया है। शायद 2014 के ही चुनाव प्रचार की बात है जब नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी को शहजादा और साल भर बाद 2015 में दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल को नक्सली आदि न जाने क्या-क्या कहा! उनके...

  • सत्यपाल मलिक तब पूरा सच क्यों नहीं बोले?

    फरवरी 2019 में सत्यपाल मलिक ने नरेंद्र मोदी और अजित डोवाल की ही तरह राष्ट्रधर्म नहीं निभाया। कम-अधिक का अनुपात भले हो लेकिन तीनों भारतीय जवानों की बेमौत, मौत के लिए जिम्मेवार थे। सत्यपाल मलिक पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के तब सर्वेसर्वा थे। कहने को ठीक बात है कि सत्यपाल मलिक के अधीन सीआरपीएफ नही थी। नाजुक सीमांत प्रदेश कश्मीर में सीआरपीएफ, खुफिया रिपोर्टिंग, सैनिक-अर्धसैनिक बलों की आवाजाही का दायित्व दिल्ली में गृह मंत्रालय (राजनाथ सिंह) और सुरक्षा सलाहकार (अजित डोवाल) का था। ऐसे में भला राज्यपाल का क्या मतलब? उस नाते सत्यपाल मलिक...

  • बुद्धिहीन-अशक्तकौम का दुकान सत्य!

    क्या हम हिंदुओं का जीवन इतिहास दुकान आश्रित नहीं है? आप देश के कोने-कोने में घूम जाएं, जिधर देखो-उधर दुकान! जीवन जीने का व्यवहार खरीद-फरोख्त, लालच, धंधे की वृत्ति-प्रवृत्ति लिए हुए मिलेगा? हां, भारत में सत्ताऔर उसकी राजनीति भी खरीद-फरोख्त की भदेस दुकान है और उसमें सबकुछ बिकता है। धर्म-अध्यात्म के कर्मकांड लेन-देन हैं। शिक्षा दुकान है। चिकित्सा दुकान है। तमाम तरह की सेवाएं दुकान हैं। पूरी आर्थिकी का संचालन दुकान जैसा है। जाति और समाज की बुनावट वर्ग-वर्ण की गुमटियां है। बुद्धि, मीडिया, विचार, संस्थाओं और सुरक्षा याकि जीवन दिनचर्या की हर वह जरूरत उस दुकानी ताने-बाने पर आश्रित...

  • भारतः एक दुकान!

    सत्य लुटियन दिल्ली से उद्घादित है। वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एक मीडिया प्रमुख अरूण पुरी की जुबानी। गौर करें लुटियन दिल्ली के श्रेष्ठिजन की सत्तावान राजा से यह करबद्धता कि- सर, दुकान नहीं चल रही है। जवाब में राजा नरेंद्र मोदी का यह सत्य वचन- चलिए, आज आपकी दुकान चला देता हूं। ये वाक्य क्या भारत की दुकान सच्चाई के पर्याय नहीं हैं? मेरा मानना है कि जैसे हर देश, कौम के अतीत व वर्तमान का एक सत्य होता है वैसे हिंदुओं का भी स्थायी सत्य है। हमारा शासन चरित्र कुल आबादी के तिनके जितने श्रेष्ठि वर्ग के...

  • अदानी भी सरकार हैं!

    यह बात क्या आज लोगों के दिल-दिमाग में नहीं है? यदि नरेंद्र मोदी का नाम बतौर सरकार घर-घर में है तो अदानी भी भारत के घर-घर पहुंच गए है। राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और खुद नरेंद्र मोदी ने उन्हे घर-घर पहुंचाया है। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री और खरबपति बतौर एक-दूसरे के पर्याय घर-घर चर्चित हैं। जब ऐसा है तो देश की राजनीति, सत्ता और विपक्ष के शक्ति परीक्षण के केंद्र में भी अदानी हैं।जैसे नरेंद्र मोदी के लिए 2024 का चुनाव जिंदगी-मौत का सवाल है वैसे ही गौतम अदानी के लिए भी है। एक क्षण के...

  • मोदीजी, मेरी दुकान भी चला दीजिए!

    सही बात। मोदीजी, क्यों नहीं मेरी दुकान चलवाते? आपने अरूण पुरी की दुकान चलाई। लुटियन दिल्ली की उन दुकानों (इंडियाटुडे, हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ग्रुप से लेकर कथित राष्ट्रीय चैनलों) पर कृपा बरसा रखी है, जिन्होंने कोई 21 साल (गोधरा कांड से)आपको व आपके चाणक्य अमित शाह को ‘मास्टर डिवाइडर’, ‘मौत के सौदागर-फर्जी मुठभेड़ों के दुर्दांत अपराधी’ के नैरेटिव में दुकानें चलाई थीं, जिनके एंकर चेहरों पर बिलबिलाते हुए आप लुटियन दिल्ली को कोसते थे!तभी कैसे-कैसों, ऐसे-वैसों के साथ-साथमोदीजी, हरिशंकर व्यास और फर्रे ‘नया इंडिया’ की भी दुकान चलवा देते है! मतलब,जब सबको इतना बांट रहे है मौला तो मुझको भी...

  • हम हिंदू और रूसी एक से, तभी जैसे पुतिन वैसे मोदी!

    तथ्य और सत्य है कि हिंदुओं की तरह रूसियों का भी भीषण गुलामी का इतिहास है। रूसियों के बंधुआ जीवन का इतिहास यों भारत से कुछ सदी कम है मगर उनका गुलाम जीवन का सर्फडोम अनुभव बहुत त्रासद। रूसी जनता जमीन के टुकड़ों में पिंजराबंद जिंदगी जीते हुए थी। मतलब राजा पृथ्वी का मालिक और उससे शासक-सामंतों को बंटी हुई जमीन। वह जमीन फिर किसानों का पिंजरा। किसान उससे नत्थी-बंधे हुए। वहां 12 वीं शताब्दी में गुलामी की यह सर्फडोम व्यवस्था चालू हुई। सन् 1700  में सामंती वर्ग का मनुष्यों पर ऐसा मालिकाना था कि मालिक लोग जमीन भले एक...

  • भारत में दौड़ेगी कृत्रिम बुद्धि!

    मसला वैश्विक और पूरे मानव समाज का है मगर भारत के लिए इसलिए अधिक गंभीर है क्योंकि 1- वह सर्वाधिक आबादी वाला देश है। 2- लोग पहले से ही जुगाड़ में जीते हुए हैं। 3-जनता की आम बुद्धि नकल-कुंजियों और रट्टामार कृत्रिमताओं से बनी हुई। 4- लोग पहले से ही व्हाट्सऐप, फेसबुक याकि सोशल मीडिया पर सर्वाधिक आश्रित है। 5- भारतीयों के दिमाग में बुद्धिगत सर्जनात्मकता, मौलिकता और सत्य खोज का न आग्रह है और न स्वभाव। जाहिर है दिल-दिमाग की प्रकृति या बुनावट सुनी-सुनाई बातों, इलहाम, झूठ का आर्टिफिशियल अंधविश्वासी ताना-बाना लिए हुए है। इसलिए मेरी यह बात नोट...

  • डॉ. वैदिकः हिंदी पत्रकारिता और खाली!

    वैदिकजी कभी थके नहीं। कभी हारे नहीं। कभी विश्राम नहीं किया। उन्हें जीवन से कभी कोई गिला नहीं रहा। शायद ही किसी से वे चिढ़े या उनका कोई दुश्मन हो। … लोगों की उनसे रागात्मकता इसलिए थी कि भला उन जैसा निस्पृह, निर्लोभ दूसरा कौन है शहर में! सोचें, ‘नया इंडिया’ का पहले पेज का बॉटम आज से बिना डॉ. वैदिक की उपस्थिति के होगा। लगभग 11 वर्षों से डॉ. वैदिक ‘नया इंडिया’ के पहले पेज के लिए लिखते हुए थे। गजब संयोग जो पांच दिन पहले होली के दिन प्रेस एनक्लेव में बेटी अपर्णा के यहां लंच करके डॉ....

  • केजरी, अखिलेश, ममता, केसीआर, हेमंत, राहुल का अहंकार जेल से खत्म होगा या चुनावी सफाये से?

    अहंकार अपनी वोट गणित से नरेंद्र मोदी को हरा देने का। पर तय माने हिंदूशाही विपक्ष को मिटा देने वाली  है। सोचें, मनीष सिसोदिया और लालू के कुनबे पर! इन्हे जेल में डालना या छापे एक्स्ट्रिम नहीं हैं, बल्कि 2024 से पहले और बाद का वह ‘नॉर्मल’’ है, जिससे 2029 से पहले भारत का राजनीतिक भूगोल बदला मिलेगा। पहले तिहाड़ में सिसोदिया का अर्थ बूझें। कई लोग मानते थे कि मनीष सॉफ्ट, साफ और सभी से मेल-मुलाकात रखने वाला भला नेता है। इसलिए उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी। केजरीवाल जेल जाएंगे मगर सिसोदिया नहीं। यह भी दलील थी कि भाजपा को...

  • अखंड भारत अब चीन का उपनिवेश!

    यों न अब अखंड भारत है और न उपनिवेश केंद्रीत देशों की गुलामी का ओपनिवेशिक मॉडल है! साम्राज्य और वर्चस्व का इक्कीसवीं सदी का नुस्खा साहूकारी-लाठी तथा वैचारिक दबंगी है। आदर्श प्रमाण चीन है। अमेरिका के पारस पत्थर (पूंजीवाद) से वह दुनिया की फैक्ट्री बना। दुनिया को अपना बाजार बनाया। बेइंतहा कमाई करके देशों को कर्ज देने की साहूकारी की। उन्हे कर्जदार-पराश्रित-गुलाम बनाया। अपनी ताकत का लौहा बनवा कर दुनिया पर ऐसी दादागिरी बनाई कि भारत जैसे विशाल देश के प्रधानमंत्री व विदेश मंत्री अनजाने में ही सही कह बैठे कि चीन से लड़ा नहीं जा सकता। अब लड़ाई का...

  • भला भारत में राजनीति से संन्यास!

    रायपुर के कांग्रेस अधिवेशन में सोनिया गांधी ने ‘पारी खत्म’ होने की बात कही। राजनीति से रिटायर होने का संकेत दिया। पर क्या यह संभव है? भारत में नेता न रिटायर होते हैं और न होने देते हैं। सोचें, आजाद भारत में पहले कब किस नेता ने रिटायर होने का ख्याल बताया? भारत में हिंदू संन्यासी भी जब भगवान बन कर सांसारिकता को नचाता है तो नेता का संन्यासी होना! आजाद भारत के कांग्रेस पुराण को पढ़ें या संघ पुराण को, इनमें नेताओं की रिटायरी का एक अध्याय नहीं मिलेगा। गांधी बुढ़ापे में सत्य के प्रयोग करते हुए थे तो...

  • वाह! यूक्रेन का मानव जज्बा, सलाम

    एक साल हो गया लेकिन यूक्रेन जिंदा है। उसकी आजादी का दीया बुझा नहीं। मेरा मानना है यूक्रेन के दीये और उसकी जलती बाती न केवल यूक्रेनी नागरिकों के जज्बे की पहचान है, बल्कि पृथ्वी के उन इंसानों की भी मशाल है, जिनसे मनुष्य को मानव गरिमा, मानवाधिकारों व आजादी का उजियारा मिला है। जिसकेकारण इतिहास के रावणों के अहंकारी तूफान कई बारखाक हुए। सोचें, वर्ष पहले 24 फरवरी 2022 को जब पुतिन यूक्रेन का शिकार करने निकले थे और उन्हें रास्ता दिखलाते हुए दुनिया के तानाशाह शिकारी कुत्ते मसलन चीन के शी जिनफिंग का जो मिशन शुरू हुआ था...

  • गुलाम संस्कारों के हिंदुओं के लोकतंत्र की क्यों अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन चिंता करें?

    दिल्ली में बीबीसी पर छापे के दिन एयर इंडिया के विमान खरीद सौदे के मौके पर अमेरिका के बाइडेन, फ्रांस के मैक्रों और ब्रिटेन के ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री से संवाद पर कई लोग बेचैन दिखे। यह सोचते हुए कि मोदी सरकार भारत में जहां लोकतंत्र के पंख काट रही है वही फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन नरेंद्र मोदी की वाह बनवा रहे हैँ! पश्चिमी देश यदि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लोकतंत्र की सेहत की चिंता नहीं करेंगे तो क्या होगा? मसला गंभीर है। अपना जवाब दो टूक है। मेरा मानना है कि ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, यूरोपीय संघ ने...

  • पहले जुगाड़, अब आगे मशीनी दिमाग तब भारत का भविष्य में बनना क्या है?

    यों मसला वैश्विक है। मगर मेरी चिंता भारत है। वह भारत जो अब दुनिया की सर्वाधिक 140 करोड़ आबादी लिए हुए है। जहां दिमाग और बुद्धि का न्यूनतम उपयोग है। जो बिन मौलिक उर्वरता का बंजर है। जो जुगाड़, नकल, कुंजियों की शिक्षा पर आश्रित है। जिसके ज्ञान के विश्वविद्यालय सोशल मीडिया हैं। जहां नैरेटिव प्रायोजित है। जहां विचार-बहस से एलर्जी है। जहां का 65 प्रतिशत यूथ सर्व शिक्षा की अंगूठा छाप दसवीं-बारहवीं की डिग्री ले कर या तो डिलीवरी बॉय की नियति लिए हुए है या उच्च शिक्षा की कुंजियों-कोचिंग की रट्टा मार मेमोरी से डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस अफसर,...

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