‘पंडित का जिंदगीनामा’ लिखना कोई साढ़े तीन महिने स्थगित रहा। ऐसा होना नहीं चाहिए था। आखिर…
Category: पंडित का जिदंगीनामा
लंदनः समझदारी की पाठशाला
जिंदगी को समझने और जीने की अपनी तीसरी लोकेशन लंदन है। मैं जनसत्ता की तरफ से…
दिल्ली की चौखटः मेरा और भारत का सार!
लोग मेरा अहोभाग्य कहेंगे जो मैं देश की चौखट दिल्ली में रहा। हां, दिल्ली का एक…
छोटी बातों का यादगार वक्त
यदि इंसान के वश में वक्त विशेष को लौटाना, उसमें दोबारा जीना संभव होता तो वह…
खूंटे, रिश्ते और आजादी
‘मैं’, ‘मैं’ हूं! ‘मैं’ अकेला! खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे। लेकिन जिंदगी तो प्राप्त…
पिता की स्मृति में एक पिता
जिंदगी को लिखना कहानी के आधे-अधूरेपन में भटकना है! कहानी का जन्म और उसकी परवरिश माता-पिता…
बचपन था बहुत छोटा!
सिर्फ दस-बारह साल का। छप्पन में जन्म, 62 में पिता के चुनाव लड़ने और भारत-पाकिस्तान की…
खंडहर और बचपन के बीज
‘पंडित’ का जिंदगीनामा-5 : बचपन को बुढ़ापे में तलाशना खंडहर में भटकना है। मेवाड़ी में खंडहर…
हम पत्ते वंशवृक्ष के तो कैसे तलाशें जड़
आपने कभी अपने वंश वटवृक्ष पर सोचा है? उससे समझा है कैसे बचपन ने आपको रचा?…
वक्त, बचपन और जिंदगी से ईर्ष्या!
अपनी जिंदगी धन्य है! अपनी जिंदगी से अपने को ईर्ष्या है। ऐसा कई कारणों से सोचता…
जन्मभूमि से चरित या कर्मभूमि से?
टेढ़ा मसला है। जिंदगी का चरित जन्मभूमि से सोचें या कर्मभूमि से? मेरी जिंदगी के 45…
भला ‘पंडित’ का कैसे जिंदगीनामा?
क्यों मैं अपने को ‘पंडित’ लिख रहा हूं?जमाने के तकाजे में कोई सेकुलर, अजातीय गरिष्ठ शब्द…
ठहरे वक्त में जिंदगीनामा!
जीवन फुरसत में है! वायरस से वक्त मेरा ठहरा है। शायद आपका भी ठहरा हो। ठहरा…
