बिहार में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण हो रहा है लेकिन किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि क्या हो रहा है? सरकार कह रही है कि 80 फीसदी लोगों ने मतगणना प्रपत्र भर कर जमा करा दिया है, जबकि दूसरी ओर लाखों लोग कह रहे हैं कि उनको प्रपत्र मिला नहीं है और वे बूथ लेवल ऑफिसर यानी बीएलओ को तलाश रहे हैं। बीएलओ हैं कि सावन के महीने में महादेव जी की तरह हो गए हैं। मिल ही नहीं रहे हैं और मिल रहे हैं तो भारी भीड़ उनको घेरे रहती है। वे लोगों के घरों तक नहीं जा रहे हैं और लोग फोन कर रहे हैं तो वे चाय पानी का पैसा मांग रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन प्रपत्र भरने के लिए एक फॉर्म का 50 रुपया मांगा जा रहा है। यानी अगर पांच लोगों का परिवार है तो ढाई सौ रुपए देने होंगे।
सबसे हैरान करने वाली बात है कि लाखों लोगों को प्रपत्र नहीं मिला है और जिनको मिला है उनमें से कई लोगों से बीएलओ ने बिना किसी दस्तावेज के ही प्रपत्र ले लिया। पूरे राज्य में किसी को मतगणना प्रपत्र की पावती नहीं दी जा रही है, जबकि विशेष गहन पुनरीक्षण के नियमों में लिखा हुआ है कि बीएलओ सभी मतदाताओं को पहले आधा भरे हुए प्रपत्र का दो कॉपी देगा। इसमें एक कॉपी मतदाता वापस करेंगे और दूसरी अपने आप रखेंगे। लेकिन शायद ही किसी को दो प्रपत्र मिले होंगे। इस बीच बूथ लेवल अधिकारियों ने कहीं से रिपोर्ट कर दी कि घर घर जाकर जांच करने पर बहुत से बांग्लादेशी, रोहिंग्या और नेपाली लोग मिले हैं, जो मतदाता बन गए हैं। हालांकि ज्यादातर लोगों ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि घर घर घूमते बीएलओ कहीं नहीं दिख रहे हैं। यानी जो हो रहा है वह घर में बैठे बैठे हो रहा है।


