सर्वजन पेंशन योजना
  • पुतिन, जिनफिंग से पल्ला छूटा?

    यह हेडिंग कूटनीति के मिजाज में सही नहीं है। एक सियासी शीषर्क है। मगर भारत की विदेश नीति की हाल में जो नई दिशा बनी है वह वैश्विक मायने वाली है। पहले जापान, ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री मोदी की पश्चिमी नेताओं के साथ गलबहियां हुईं! फिर इस सप्ताह चीन की छत्रछाया के शंघाई सहयोग संगठन की दिल्ली शिखर बैठक को भारत ने रद्द किया। अचानक सब तैयारियों, न्योता देने के बाद भारत ने जुलाई में पुतिन और शी जिनफिंग, शहबाज शरीफ आदि की प्रत्यक्ष मेजबानी से किनारा काटा। सभी नेताओं की प्रत्यक्ष उपस्थिति की बजाय तीन-चार घंटों की मोदी की अध्यक्षता...

  • मोदी हों या राहुल, सबका मक्का अमेरिका-लंदन!

    यह सच्चाई है। तभी आजाद भारत की मनोदशा का यह नंबर एक छल है कि हम रमते हैं पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति में लेकिन तराना होता है हिंदी-चीनी भाई-भाई या रूस-भारत भाई-भाई। यों आजाद भारत का पूरा सफर दोहरे चरित्र व पाखंडों से भरा पड़ा है लेकिन भारत की विदेश नीति में जितना पाखंड, दिखावा और विश्वगुरू बनने की जुमलेबाजी हुई वह रिकार्ड है। मैंने अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले, शीतयु्द्ध के पीक वक्त में अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर लिखना शुरू किया था। तब से आज तक वैश्विक मामलों में भारत की विदेश नीति के दिखावे और हकीकत, झूठ और सत्य के...

  • मोदी और राहुल का फर्क

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब विदेश दौरे पर जाते हैं तो हर देश में सैकड़ों लोगों की भीड़ उनका स्वागत करने के लिए उमड़ती है। सड़कों पर मोदी मोदी के नारे लगते हैं। वे उन देशों के प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों के गले लगते हैं। दूसरे देशों के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भी कभी मोदी को रॉकस्टार तो कभी बॉस कह कर उनको खुश करते हैं। दोपक्षीय वार्ताओं के अलावा मोदी प्रवासी भारतीयों की भीड़ को संबोधित करते हैं। वहां अपनी सरकार की उपलब्धियां बताते हैं और पहले की सरकारों को नाकाम-नाकारा साबित करते हैं। वे कारोबारियों को संबोधित करते हैं और उनको भारत आने...

  • ऑस्ट्रेलिया यात्रा से क्या हासिल?

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर क्यों गए, यह यक्ष प्रश्न है। उनको चार देशों के समूह क्वाड की बैठक में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना था। लेकिन अमेरिकी कर्ज संकट की वजह से राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऑस्ट्रेलिया जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। यह तय हुआ कि क्वाड सम्मेलन जापान के हिरोशिमा में ही होगा, जहां जी-सात देशों की बैठक होने वाली थी। जब ऑस्ट्रेलिया में होने वाला क्वाड सम्मेलन स्थगित हो गया तो कायदे से प्रधानमंत्री की यात्रा भी स्थगित हो जानी चाहिए थी लेकिन क्वाड सम्मेलन के बहाने ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर के छोटे...

  • नौ वर्षो की बरबादियां!

    तय कर सकना मुश्किल है। इसलिए भी क्योंकि मैं नोटबंदी के बाद से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी रीति-नीति का आलोचक हूं। मोदी राज ने मुझे हिंदू बुनावट की ऐसी गुत्थियों में उलझाया है कि जहां असलियत दिखलाने के लिए नरेंद्र मोदी का धन्यवाद है वही यह निष्कर्ष भी है कि यह क्या इतिहास बनवा रहे है मोदी अपना! देश-समाज-नस्ल कीकितनी तरह की बरबादियों के बीज जिंदा कर डाले है या नए बना डाले है।  आगे कोई भी पार्टी, किसी भी नेता की सरकार बने होना अब वही है जो हम हिंदुओं का इतिहास रहा है। चिंगारियां लिए हुआ ऐसा कलही...

  • मोदी की नौ उपलब्धियां!

    उफ, वक्त ! पल-पल स्यापा, फिर भी गुजर गए नौ वर्ष। पता नहीं नौ वर्षों में 140 करोड़ लोगों में कितनों के दिन अच्छे थे कितनों की रात लंबी। मुझे तो फुर्सत ही नहीं हुई! मुश्किलों-बाधाओं-वेयक्तिक नुकसानों के बावजूद ये नौ वर्ष जीवन आंनद के इसलिए हुए क्योंकि इस अवधि में आत्म साक्षात्कार हुआ!अनुभुति हुई कि मैं क्या हूं! मैं बतौर पत्रकार, बतौर सनातनी हिंदू क्या हूं? मेरी जैविक-मानसिक रचना के डीएनए की क्या फितरत है? आखिर इंसान कोई हो, उसकी वृति-प्रवृति, प्रोफेशन-कर्म और जिंदगी की सिद्धी तो उस स्वांत सुखाय से ही है जिससे फील हो कि कुछ भी...

  • जुमले गढ़ने में बीते नौ साल

    नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से वैसे तो सैकड़ों योजनाओं की घोषणा की है। सैकड़ों वादे किए हैं लेकिन असल में उन्होंने 26 बड़ी या कोर सेक्टर की योजनाएं की घोषणा की थी, जिनके लिए नए और फैंसी नाम गढ़े गए थे। फिर उन्हे  बड़े जोश उत्साह के साथ लांच किया गया था। इन 26 योजनाओं में से ज्यादातर योजनाएं ऐसी हैं, जिनकी अब चर्चा भी नहीं होती है। उनके ऊपर हजारों-लाखों करोड़ रुपए खर्च हो गए लेकिन क्या हासिल हुआ उसके बारे में किसी को पता नहीं है। मिसाल के तौर पर प्रधानमंत्री बनने...

  • पीएम, सीएम, डीएम का सत्ता केंद्रीकरण!

    हाल में भारत में लोकतंत्र और विकेंद्रित शासन व्यवस्था के अहम पड़ाव थे। पिछले साल आजादी के 75 साल पूरे हुए। धूमधाम से आजादी का अमृत महोत्सव मना। फिर इस अप्रैल में 24 तारीख को भारत में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के 40 साल पूरे हुए। इस मौके पर अखबारों में लेख आदि छपे और यह हल्ला हुआ कि किस तरह से देश में शासन आम लोगों तक पहुंचा है। मगर लोकतांत्रिक और स्थानीय शासन व्यवस्था के इन महत्वपूर्ण पड़ावों के बीच की हकीकत क्या है? यह सत्य कि पिछले नौ साल में देश में सत्ता का जैसा केंद्रीकरण हुआ है...

  • सत्ता जनविरोधी और बुद्धीनाशी

    व्यंग में वैसे लिखना चाहिए कि अच्छा है जो प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और रेल मंत्री सब संघ-भाजपा के वोट आधार पर खुद कुल्हाडी चला रहे है। आखिर उत्तर भारत के बनिए और व्यापारी ही तो संघ-भाजपा के पुराने पक्के वोट है। सो बहुत अच्छा जो उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान के शहर-कस्बों के व्यापारियों-कारोबारियों  पर जीएसटी के इंस्पेक्टर राज के छापे पड रहे है। गूगल पर यदि जीएसटी छापे के जुमले से सर्च की जाए तो प्रदेशों के छोटे-छोटे कस्बों मे इंस्पेक्टर राज का कहर बरपता लगेगा। गौर करे इन सुर्खियों पर- जीएसटी के राजस्थान, मध्यप्रदेश में छापे। आर्थिक राजधानी इंदौर में...

  • बुद्धीनाशी राजनीति से रैवडियों का जंजाल!

    मैं सर्वशिक्षा अभियान, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा गारंटी, फ्री बिजली जैसी योजनाओं का विरोधी रहा हूं। इसलिए क्योंकि मेरा शुरू से मानना रहा है कि भारत की सत्ता का चरित्र भ्रष्ट था, है और रहेगा। नेहरू हो या इंदिरा गांधी या राजीव गांधी सभी की नियत जनहितैषी थी। लेकिन सैकड़ों सालों से जब भारत के सत्ता चरित्र में लूट, भूख और भ्रष्टाचार के डीएनए है तो संभव नहीं जो मुफ्तखोरी में जनता कम खाए और अफसर मलाई चाटे। जनता ठगी नहीं जाए। तभी पंडित नेहरू भी समाजवाद के झुनझुनों से जनता को राशन बांटते हुए थे तो नरेंद्र मोदी भी बांटते...

  • जीएसटी वसूली पर बेसुध जनता का जश्न!

    भारत संभवतः दुनिया का पहला देश होगा जहां सरकार टैक्स वसूली के भारी भरकम आंकड़े उपलब्धि के तौर पर जारी करती है और भक्त जनता उसका जश्न मनाती है। हर महीने की पहली तारीख को सरकार यह आंकड़ा जारी करती है कि पिछले महीने जीएसटी की रिकॉर्ड वसूली हुई है। हर महीने पिछले महीने का रिकॉर्ड टूटता है। इसी तरह प्रत्यक्ष कर यानी आयकर की वसूली का तिमाही आंकड़ा जारी होता है। पिछली तिमाही या पिछले साल की समान तिमाही में वसूली का रिकॉर्ड टूटने की खबर बताई जाती है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों में वसूली के आंकड़े बढ़ने...

  • एक ही मुर्गी बार-बार कई जगह हलाल!

    सरकार से जब भी टैक्स बढ़ने या ज्यादा से ज्यादा वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स लगाने के बारे में पूछा जाता है तो उसका एक सपाट जवाब होता है कि वह टैक्स के पैसे का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए कर रही है। कैसे? जवाब है सरकार टैक्स के पैसे से बुनियादी ढांचे का विकास कर रही है। फिर सोशल मीडिया में देश की जनता को धिक्कारते हुए ये पोस्ट वायरल कराए जाते है कि देश के लोग चाहते हैं कि ट्रेन दुर्घटना नहीं हो लेकिन ट्रेन का किराया बढ़ाया जाना कबूल नहीं है। लोग चाहते हैं कि सड़कें...

  • जनता के पैसे से बैंक मालामाल!

    सरकार की ओर से इस बात का जोर शोर से प्रचार है कि पिछले नौ सालों में बैंकों की स्थिति ठीक हुई है। उनकी बैलेंस शीट अच्छी हुई है। एनपीए कम हुआ है। यह दावा सही है लेकिन ऐसा कैसे हुआ है यह नहीं बताया जा रहा है। बैंकों की एनपीए इसलिए कम दिख रहा है क्योंकि बैलेंस शीट साफ-सुथरी रखने के लिए बैंकों के खराब लोन यानी, जो लोन लौटाए नहीं जा रहे थे उनकी वसूली करने की बजाय उन्हें बैलेंस शीट से हटा कर बट्टे खाते में डाल दिया गया। यानी राइट ऑफ कर दिया गया। इसके अलावा...

  • मोदी राज में जात राजनीति वीपी सिंह राज से ज्यादा!

    हां, मई 2014 से मई 2023 के कर्नाटक चुनावतक का यह भी एक सत्य है कि मोदी सरकार ने हिंदू बनाम अन्य का खेला खेला तो फॉरवर्ड बनाम ओबीसी बनाम दलित बनाम आदिवासी, लिंगायत बनाम वोक्कालिगा जैसी जातीय राजनीति का भी खूब जहर फैलाया। याद करें मई 2014 में नरेंद्र मोदी द्वारा कांग्रेस के घटिया, नीच राजनीति के जुमले में से ‘नीच’ शब्द को पकड़ नरेंद्र मोदी ने अपनी जाति के साथ ‘नीच’शब्द से कैसा हल्ला बनाया था। नौ वर्षों के कार्यकाल की एक और लैंडमार्क घटना बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लोकसभा में अपनी कैबिनेट का परिचय कराते हुए...

  • अदानी चिपका तो ब्राह्मणों पर ठीकरा!

    यह बेतुकी बात लगेगी। लेकिन कर्नाटक चुनाव पर जरा गौर करें। कर्नाटक में भाजपा की दुर्दशा क्यों? इसके जवाब में मीडिया और मोदी-शाह के नैरेटिव में जातीय गणित है। कांग्रेस और राहुल गांधी ने भी जातीय जनगणना की बात करके मंडल कार्ड का महत्व बनवाया। मतलब सामाजिक समीकरण बिगड़े इसलिए भाजपा की दुर्दशा। ऐसा नहीं है। मैं मानना हू कि कर्नाटक यदि दक्षिण भारत में हिंदू राजनीति की पहली प्रयोगशाला बना तो वजह प्रदेश के लोगों का सहज-सर्वजनीय मिजाज है। कर्नाटक जातिवादी नहीं था और न है। मैं इंदिरा गांधी-जनता पार्टी के वक्त से कर्नाटक को ऑब्जर्व करते हुए हूं।...

  • दलित और आदिवासी बनने की होड़

    कास्ट मोबिलिटी यानी जाति गतिशीलता को लेकर भारत में बहुत कुछ लिखा गया है। महान समाजशास्त्री एमएन श्रीनिवास से लेकर समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा तक ने इस पर बहुत विस्तार से लिखा है। दोनों मानते रहे हैं कि प्राचीन भारत से लेकर अभी तक जातियों में बड़ी गतिशीलता रही है और आज कोई व्यक्ति जिस जाति में है, जरूरी नहीं है कि बरसों पहले उसके पूर्वज उसी जाति में रहे हों। दुनिया के किसी भी दूसरे देश के मुकाबले भारत में जाति गतिशीलता ज्यादा रही है। जाति की रूढ़ और बंद प्रकृति के बावजूद भारत में परिवर्तन होता रहा है।...

  • सिर्फ जातियों की राजनीति

    अच्छे दिन लाने के वादे वाली सरकार के नौ साल की एक सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि अब विकास के नाम पर चुनाव नहीं लड़ा जा रहा है और न उस नाम पर राजनीति हो रही है। अब राजनीति या तो जाति के नाम पर लड़ी जा रही है या मुफ्त की रेवड़ी के नाम पर। अभी कर्नाटक का चुनाव हुआ है और ध्यान नहीं आ रहा है कि किसी भी पार्टी ने विकास के नाम पर प्रचार किया है या वोट मांगा है। कर्नाटक दक्षिण भारत का सबसे बड़ी गरीब आबादी वाला प्रदेश है। वहां 14 फीसदी से...

  • कहां कहां और कितना आरक्षण होगा?

    पूरे देश में राजनीति करने और चुनाव लड़ने का अब सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण है। कर्नाटक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक’ नारा दिया। इसका मतलब है कि जिसकी जितनी आबादी है उसको उतनी हिस्सेदारी मिलेगी। इसके लिए उन्होंने जातीय जनगणना की जरूरत बताई। बिहार में जातीय जनगणना चल रही थी, जिसे हाई कोर्ट ने रोक दिया है। ओड़िशा में भी सामाजिक, आर्थिक गणना का काम हो रहा है। इसके जरिए जातियों की वास्तविक संख्या का पता लगाया जाएगा और उनको उसी अनुपात में आरक्षण दिया जाएगा। कर्नाटक में कांग्रेस ने आरक्षण को बढ़ा कर 75...

  • उफ! अब बजरंग बली भी दांव पर

    ईश्वर ही मालिक है नरेंद्र मोदी और उनकी लंगूर सेना का! आखिर हिंदू इष्ट देवताओं के नाम के कटोरों से वोट मांगना क्या पाप की हद नहीं है? आखिरहिंदुओं को कितना उल्लू बनाएंगे? रामजी, शिवजी, बजरंग बली, मां गंगा आदि के नाम ले-लेकर नौ सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने भगवानजी को जितना बेचा है क्या कोई उसका हिसाब है? कभी किसी का बेटा बन कर, कभी गले का सांप बन कर, कभी रामजी कैद तो कभी बजरंग बली के कैदी होने के डर बनवा कर, जैसे वोट मांगे जा रहे हैं तो क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि...

  • केजरीवाल जेल गए तब भी उनका वोट सुरक्षित!

    भाजपा यदि आम आदमी पार्टी को तोड़ डाले, उसकी मान्यता खत्म कर दे तो अलग बात है वरना दिल्ली और देश में केजरीवाल के जो वोट बने थे वे जस के तस हैं! बहुत हैरानी हुई मुझे राजस्थान के मध्य वर्ग परिवार और दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ बस्तियों से काम के लिए कॉलोनी में आने वाली महिलाओं की चर्चा सुन कर। मैं मान रहा था कि अरविंद केजरीवाल के घर की शानो-शौकत, 45 करोड़ रुपए के खर्च की बदनामी से उनके भक्तों में मोहभंग हुआ होगा। लेकिन उलटी बात सुनने को मिली। भक्तों की एक ही बात, एक ही तर्क है।...

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