पाकिस्तान को अलग थलग करने और आतंकवाद को प्रश्रय देने वाला देश साबित करने का भारत का प्रयास बुरी तरह फेल है। अमेरिका सेना के सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने अमेरिकी कांग्रेस की आर्म्स सर्विसेज कमेटी के सामने पाकिस्तान की तारीफ की और उसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका का ‘शानदार साझीदार’ बताया है। यह तब हुआ, जब भारत के नेताओं और सांसदों का डेलिगेशन अमेरिका से होकर लौटा था और भारत में उसकी सफलता का गुणगान हो रहा था। सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके भारत के 59 नेताओं, सांसदों और राजदूतों को दुनिया के दौरे पर भेजा गया। उनका काम था कि वे दुनिया को पाकिस्तान के बारे में बताएं और उसे विश्व बिरादरी में अलग थलग करें। उन्होंने इसका प्रयास किया। मगर नतीजा क्या?
अमेरिका की ओर से उसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ‘शानदार साझेदार’ बताया गया।
इसके दो ही मतलब हैं। या तो पाकिस्तान अपनी कहानी बेचने में कामयाब है कि वह भी आतंकवाद से पीड़ित देश है या अमेरिका से लेकर दूसरे देशों के सामने अपनी उपयोगिता प्रमाणित करने में कामयाब रहा है। दूसरी ओर भारत की कहानी नहीं बिकी है। अगर अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद से पीड़ित और उससे लड़ने वाला देश मान लेगा तो फिर दुनिया के बाकी महत्वपूर्ण देशों को भी ऐसा मानने में कोई दिक्कत नहीं होगी। आखिर पाकिस्तान को चीन अपना सदाबहार दोस्त बताता है फिर भी उसकी मदद करने को तत्पर है। इस तरह पाकिस्तान के मामले में अमेरिका और चीन एक लाइन पर हैं। दोनों पाकिस्तान को आतंकवाद से पीड़ित देश मानते हैं और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उसकी भूमिका रेखांकित करते हैं। रूस के बारे में सबको पता है कि जो चीन चाहेगा रूस वही करेगा।
रूस और चीन के मामले को समझने में ज्यादा समस्या नहीं है। अमेरिका का मामला कौतुहल वाला है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान की आर्थिक और सैन्य मदद रोकी थी। उसके नागरिकों पर पाबंदी लगाने की बात कही थी। लेकिन दूसरे कार्यकाल में उन्होंने पाकिस्तान की सैन्य मदद पर लगी रोक हटा कर करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए जारी कराए। ट्रंप ने 12 देशों के नागरिकों पर यात्रा पाबंदी लगाई और सात देशों के नागरिकों के लिए वीजा नियंत्रित किया तो उसमें से भी पाकिस्तान को बाहर रखा। ट्रंप प्रशासन ने दुनिया की तीन बड़ी वित्तीय संस्थाओं आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और एडीबी से पाकिस्तान को अरबों डॉलर के कर्ज की मंजूरी कराई। ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार और टैरिफ का भय दिखा कर सीजफायर कराने का बयान 13 बार दिया। उन्होंन पूरी सोची समझी रणनीति के तहत भारत और पाकिस्तान को एक बराबर खड़ा कर दिया और अब अमेरिका का सैन्य प्रतिष्ठान पाकिस्तानी सेना प्रमुख को अपने यहां आर्मी डे परेड में बुलाया है!
हिसाब सेनहिंदू और मुस्लिम को दो अलग राष्ट्र बताने और पाकिस्तान के युवाओं को हिंदुओं के साथ अपना अतीत याद रखने की नसीहत देने वाले सांप्रदायिक, कट्टरपंथी जनरल आसिम मुनीर का तो उनके बयानों की वजह से अमेरिका को बायकॉट करना था। मुनीर के बयान के थोड़े ही दिन बाद आतंकवादियों ने पहलगाम में हमला किया और धर्म पूछ कर 26 हिंदू पर्यटकों की हत्या कर दी। यह मुनीर के भड़काऊ भाषण के आगे का कदम था। उसके बाद भी अमेरिका मुनीर के नेतृत्व वाली पाक फौज को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ‘शानदार सहयोगी’ बता रहा है और उसे आर्मी डे परेड में आमंत्रित कर रहा है।
आज अगर जनरल आसिम मुनीर हीरो हैं और दुनिया भर में उनको पूछा जा रहा है तो उसमें भी सबसे बड़ा योगदान भारत का है। भारत ने जनरल मुनीर और पाकिस्तानी फौज को हीरो बनाया। पाकिस्तान में अगर फौज की जय जयकार हो रही है तो वह भारत के कारण हो रही है। भारत ने 88 घंटे के सीमित युद्ध के बाद जिस तरह से सीजफायर किया उससे पाकिस्तानी फौज को मौका मिला कि वह प्रचार करे कि पाकिस्तान युद्ध जीत गया। क्या लोगों को पता नहीं है कि दुनिया में सीजफायर कैसे होते हैं! लेकिन भारत ने यह कह कर दुनिया को मूर्ख समझा कि पाकिस्तान के डीजीएमओ ने फोन किया और सीजफायर हो गया। सवाल है कि सीजफायर की शर्तें क्या थीं? क्या सिर्फ इतना कि पाकिस्तान फायरिंग रोक दे तो हम भी रोक देंगे?
भारत 88 घंटे के सीमित युद्ध में अगर बढ़त की स्थिति में था और जैसा कि भारत के सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा कि भारत और पाकिस्तान ने बहुत संयम बरता और किसी भी प्वाइंट पर परमाणु युद्ध की स्थिति नहीं दिखी तब फिर क्यों नहीं भारत ने दो-तीन दिन और युद्ध चलने दिया, जिससे पाकिस्तान की सेना की पोल खुलती? क्यों नहीं भारत ने पाकिस्तानी सेना के बुनियादी ढांचे को और डैमेज किया ताकि जनता की नजर में पाकिस्तानी सेना कमजोर साबित होती और पराजित दिखती?
सोचें, एक तरफ भारत के सीडीएस जनरल अनिल चौहान कह रहे हैं कि किसी भी प्वाइंट पर परमाणु युद्ध की बात नहीं आई और राष्ट्रपति ट्रंप कह रहे हैं कि परमाणु युद्ध हो जाता! सो, कुल मिला कर भारत ने पाकिस्तान के मिलिट्री लीडरशिप को हीरो बनने और दुनिया में सीना तान कर घूमने का मौका दिया और आज स्थिति यह है कि दुनिया भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू के दो पलड़ों पर रख कर देख रही है।