• झूठ की फिर होगी भारी जीत!

    मैं विपक्ष को हताश नहीं करना चाहता। यह भी नहीं बता रहा हूं कि विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी कहां और कितने रिकॉर्ड से भाजपा को जिताएंगे। पर दो बाते नोट करें। एक, विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के झूठ का जादू चलेगा। दो, समय पर होने वाले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी वापिस जीतेंगे यदि विपक्षी एलायंस ‘इंडिया’ ने मोदी से बड़े झूठ नहीं बोले। झूठ केनैरेटिव में नरेंद्र मोदी एवरेस्ट के शिखर पर है। उनके आगे किसी भी एक्सवाईजेड (नीतीश, राहुल, केजरीवाल से लेकर किसी भाजपाई याकि अमित शाह, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह) का वैसे ही कोई अवसर...

  • ‘इंडिया’ के नेता न समझें हैं, न समझेंगे!

    गौर करें राहुल गांधी पर। इन दिनों क्या कर रहे है? रेलवे स्टेशन जा कर कुलियों के बीच बैठ, सिर पर सामान की पोटली उठा भरोसा दिला रहे है कि वे रेलवे को नहीं बिकने देंगे! फर्नीचर मार्केट में जाकर आरी और रंदा चला रहे हैं। समझ नहीं आता कि खड़गे, राहुल-प्रियंका व ‘इंडिया’ के नीतीश कुमार, अखिलेश, केजरीवाल आदि इन सबके कौन हैं सलाहकार। इतना भी नहीं देख-बूझ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के नैरेटिव, प्रोपेगेंडा, झूठ के पैमाने चंद्रलोक, सूर्यलोक, विश्वगुरूता के हैं वही राहुल, नीतीश, केजरीवाल छोटी-छोटी बातों, रेवड़ियों के वादों, झूठ के सामान्य प्रोपेगेंडा से मोदी...

  • पोल खोलने से नहीं, झूठ बोलने से बात बनेगी

    विपक्षी पार्टियां क्या कर रही है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झूठ की पोल खोलने में लगी हैं। उनको लगता है कि लोगों को बताएंगे कि मोदी ने कितने झूठ बोले हैं तो लोग यकीन करेंगे और उनका साथ छोड़ देंगे। लेकिन ऐसा नहीं होने वाला है। झूठ की पोल खोलने का क्या मतलब है? उससे लोगों पर कुछ भी असर नहीं होगा, बल्कि उससे बड़ा झूठ बोलने पर फायदा होगा। सोचें, क्या देश के करोड़ों करोड़ लोगों को पता नहीं है कि उनसे झूठ बोला गया है? हो सकता है कि भारत के विश्व गुरू होने वाले झूठ के बारे...

  • विपक्ष के तो वादे भी छोटे हैं

    सोचें, नरेंद्र मोदी ने कहां से शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर 2014 में मैदान में उतरे तब काले धन का जुमला बोला था और कहा था कि विदेशों में इतना काला धन है कि अगर वापस आ जाए तो हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपए आ सकते हैं। इसके जवाब में विपक्षी नेता क्या कह रहे हैं कि जीते तो खातों में दो-दो हजार या तीन-तीन हजार रुपए डालेंगे। सोचें, कहां 15 लाख और कहां तीन हजार रू! दे तो मोदी भी दो- तीन हजार ही दे रहे हैं लेकिन उन्होंने वादा 15...

  • झूठी फिल्में और झूठी उपलब्धियां

    हिंदी फिल्मों की बात करें। एक फिल्म आई थी बेबी। भारत सरकार और प्रधानमंत्री के प्रिय अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म थी। उसमें वे देश की सीमा पार कर पड़ोसी देश में जाते हैं और भारत के मोस्ट वांटेड आतंकवादी को पकड़ कर भारत ले आते हैं। फिल्म में उसका जो परिचय है वह हाफिज सईद से मिलता-जुलता है। सोचें दुनिया में सच में ऐसी घटनाओं को अंजाम देने के बाद उस पर तथ्यपरक फिल्में बनती हैं लेकिन भारत में फिल्म बना कर यह दिखा दिया गया कि देश के सबसे बड़े दुश्मन को हम सीमा पार से उठा लाए।...

  • जी-20 लीला के मोदी वोट?

    भाजपा मंत्री,नेता, संघ परिवार के मुखिया सभी अभिभूत है। भाजपा बम-बम है। कार्यकर्ता और भक्त आत्मविश्वास में है। सबके लिए नरेंद्र मोदी मानों सूर्य भगवान। उन्ही से पृथ्वी का जीवन, वे ही जगदगुरू। वे भले अपने आपको विश्व मित्र कहें, पर भक्तों के वे विश्वगुरू है और हम सभी भारतीय इन गुरूदेव की भक्त प्रजा! सवाल है तब भला दो महिने बाद होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में, सात महिने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में जगत के सूरज को क्या कोई हरा सकेगा?  कतई नहीं। उलटे नरेंद्र मोदी की सुनामी आएगी। वह जल प्रलय होगा जिसमें वे...

  • पर चुनावी ग्राउंड रियलिटी…

    पांच विधानसभाओं के चुनाव है और यदि जी-20 की हवा में सोचे तो पांचों राज्यों में विश्व गुरू नरेंद्र मोदी की छप्पर फाड़ जीत होनी चाहिए। लेकिन मैंने तीन राजाधानियों के भाजपा बनाम कांग्रेस मुख्यालय की रियलिटी जानी तो तीनों जगह कांग्रेस के टिकट को लेने के लिए ज्यादा मारामारी सुनी। भाजपा दफ्तरों में खूब बैठके है, प्रचार के वार्मअप में देवेंद्र फडनवीस से लें कर अनुराग ठाकुर याकि हजार-पांच सौ लोगों की भीड की दबा कर नुक्क़ड सभाएं हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के रोजाना दौरे है। मगर जनता में उत्साह जीरो। सरंपच से लेकर बीडीओ, तहसीलदार, कलक्टर...

  • जी-20, सनातन और हिंदी पर चुनाव

    पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का एजेंडा और मुद्दे तय हो गए हैं। जी-20 का शिखर सम्मेलन बड़ा मुद्दा होगा। उसके बाद सनातन पर छिड़ी बहस का मुद्दा है और हिंदी का मुद्दा है। इसके अलावा बाकी मुद्दे भी होंगे लेकिन चुनाव से ठीक पहले ये तीन मुद्दे हाईलाइट हुए हैं। इन्हे भाजपा व्यापक रूप से उठाने वाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के बीना और छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में विधानसभा चुनाव का आगाज करते हुए ये मुद्दे उठा कर संकेत दे दिया है कि इसी पर राजनीति होनी है। हालांकि बड़ा सवाल है कि चुनाव वाले पांच ...

  • तेलंगाना, पूर्वोत्तर में इन मुद्दों से नुकसान

    अगर इंडिया की जगह भारत का मुद्दा बनता है, सनातन की रक्षा का मुद्दा बनता है और हिंदी भाषा की प्रमुखता होती है तो तेलंगाना और मिजोरम में भाजपा को दिक्कत होगी। भाजपा के चुनाव रणनीतिकारों को इसका अंदाजा है कि तेलंगाना में तेलुगू प्राइड का मुद्दा बनेगा तो मिजोरम में स्थानीय आदिवासी व ईसाई आबादी के बीच धर्म व भाषा दोनों का मुद्दा बनेगा। लेकिन हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों की राजनीति पर भाजपा तेलंगाना और मिजोरम को कुर्बान कर सकती है। वैसे भी तेलंगाना में तमाम प्रयास के बाद भी भाजपा कोई खास असर नहीं छोड़ पाई...

  • स्थानीय बनाम राष्ट्रीय मुद्दों का नैरेटिव

    भारतीय जनता पार्टी को पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव में ऐसे भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दों की तलाश है, जिनसे स्थानीय राजनीति और ठोस राजनीतिक मुद्दों पर से ध्यान हटाया जा सके। सही है कि जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से भाजपा की सरकार सिर्फ मध्य प्रदेश में है और राजस्थान व छत्तीसगढ़ में वह मुख्य विपक्षी है, जबकि तेलंगाना में जगह बनाने के लिए लड़ रही है। लेकिन केंद्र में पिछले साढ़े नौ साल से भाजपा की सरकार है और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने देश की कमान संभालते समय बड़े वादे किए थे। लोग...

  • भूतिया, गंवार राजधानी की मेजबानी!

    इसे विदेशी राष्ट्राध्यक्षों का अहोभाग्य कहें या दुर्भाग्य जो वे भारत में हैं लेकिन वे बिना दिल्ली देखे लौटेंगे! वे दिल्ली एयरपोर्ट उतर कर 48 घंटे केवल और केवल या तो खाली दिल्ली, भूतिया सरकारी इमारतों को देखेंगे या हर सड़क, हर कोने पर उन नरेंद्र मोदी के फोटो दर्शन कर लौटेंगे जिनके पोर-पोर की सच्चाई बाइडेन से ले कर दक्षिण अफ्रिका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा आदि सभी जानते हैं। यदि इनकी टीम ने भारत के टीवी चैनल या अखबार देखे तो यह सुन-पढ़ सिर पीटेंगे कि उन्हें सोने के बर्तन में भोज दिया जा रहा है! और वे दिल्ली...

  • जिधर देखो उधर मोदी!

    दिल्ली फिलहाल उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग है। हर तरफ मोदी और मोदी की फोटो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 से 140 करोड़ भारतीयों पर चाहे जो जादू करें लेकिन यह तय मानें कि बैठक के बाद वैश्विक तौर पर भारत की कूटनीति बेमतलब करार होगी। सब कुछ दिखावे का। सबको समझ आएगा कि बैठक के नाम पर महज फोटोशूट है। हिसाब से हर समझदार भारतीय को एयरपोर्ट से लेकर आयोजन स्थल, नई दिल्ली की सड़कों पर घूम कर देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कितने फोटो लगे हैं। मानों भारत में उनके अलावा कोई है ही नहीं। पूरी बैठक...

  • रंग और रोशनी हैपर एजेंडा कहां?

    जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों पर चार हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए हैं। यह खर्च दिल्ली की सड़कों से लेकर अखबारों के पन्नों तक में दिखाई दे रहा है। दिल्ली में चारों तरफ रंग और रोशनी है। दिल्ली विकास प्राधिकरण की आईटीओ पर स्थित 23 मंजिला इमारत से लेकर कुतुबमीनार तक को लाल, पीले, हरे रंग की झालरों से सजाया गया है। प्रगति मैदान में बने कन्वेंशन सेंटर यानी भारत मंडपम की गुलाबी रोशनी से नहाई तस्वीरें कई दिन से अखबारों में छप रही है। सो, चारों तरफ रंग है, रोशनी हैं, ऊंची-ऊंची दिवारें हैं, पाबंदियां हैं, अखबारों...

  • तस्वीरें खिंचवाने का आयोजन

    जी-20 शिखर सम्मेलन का मुख्य आयोजन ऐसा लग रहा है कि तस्वीर खिंचवाने का स्टूडियों आयोजन है। बुनियादी काम मंत्री स्तरीय वार्ताओं में हुए हैं या एजेंडे को लेकर लगभग पूरी चर्चा सदस्य देशों के शेरपा कर चुके हैं। इसलिए राष्ट्र प्रमुखों को कोई बड़ा काम नहीं करना है। सबको अपने भाषण देने हैं और उससे पहले व बाद में फोटो खिंचवानी है। कहने की जरूरत नहीं है कि हर फोटो के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे। कार्यक्रम की रूप-रेखा इस तरह की बनाई गई है कि ज्यादा से ज्यादा फोटो अपॉर्च्यूनिटी बने। जी-20 शिखर सम्मेलन की दो दिन...

  • मोदी ‘अभिनंदन’ सत्र

    दुनिया को 9-10 सितंबर 2023 के 48 घंटों में ‘विश्वपिता’ मिलने वाले है! हां, इन दो दिनों में राष्ट्रपति जो बाइडन, राष्ट्रपति मैक्रोन, प्रधानमंत्री ऋषि सुनक याकि पृथ्वी के महाशक्ति देशों, अमीरों, ज्ञान-विज्ञान और बुद्धीमना लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वह ज्ञान, वे गुरूमंत्र, वह दिशा मिलने वाली है जैसे भारत को आजादी से पहले मोहनदास करमचंद गांधी से रामराज्य की दिशा मिली थी और वे हमारे राष्ट्रपिता हुए। वैसे ही जी-20 देशों के समूह के बतौर अध्यक्ष नरेद्र दामोदरदास मोदी से विश्व को गुरूमंत्र मिलेंगे तो स्वभाविक जो वे विश्व के पिता कहलाएं। विश्वपिता नरेंद्र मोदी। आखिर हम...

  • वन नेशन, वन इलेक्शन का शिगूफा?

    संसद के विशेष सत्र के साथ ऐसे किसी मकसद की बात अपने को नहीं जमती है। हालांकि मोदी है तो सब मुमकिन है (जैसे अमृतकाल, विश्वगुरू, विश्व पिता आदि-आदि) बावजूद इसके संविधान संशोधन के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। सत्र पांच दिन का है और जब संसद के सामान्य सत्र में शांति से काम नहीं होता है तो बिना एजेंडे के विशेष सत्र में शुरूआती दिन विपक्ष अडानी, मंहगाई, मणिपुर आदि पर हंगामा न करें, यह भला कैसे संभव? चारण मीडिया ने सभी चुनाव एक साथ कराने, महिला आरक्षण बिल, आरक्षण के भीतर आरक्षण या भारत को हिंदू...

  • विशेष सत्र क्या चुनावी इवेंट?

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की भाजपा का अर्थ हैं इवेंट क्रिएट पार्टी? सूखे तालाब की भी भरेपूरे बांध की झांकी बना डालना। हर मौके, बड़ी घटना को इवेंट में बदल देने का नाम भाजपा। प्रधानमंत्री विदेश जाते हैं तो उसे इवेंट बनाया जाता है। एयरपोर्ट के बाहर प्रवासी भारतीयों से नारे लगवाए जाते हैं। प्रधानमंत्री विदेश से लौटते हैं तो हवाईअड्डे पर हजारों लोगों को लेकर जेपी नड्डा इवेंट क्रिएट करते हैं। चंद्रयान-दो पूरी तरह से सफल नहीं हुआ तब भी इसरो के वैज्ञानिकों के आंसू पोंछने का इवेंट हुआ तो चंद्रयान-तीन की सफलता पर खुशी...

  • विपक्ष के कारण विशेष सत्र

    संसद के विशेष सत्र को लेकर चल रहे गेसिंग गेम में कई दिलचस्प पहलू हैं। हेडलाइन मैनेजमेंट या विपक्ष में फूट डालने के लिए किए जाने वाले तरह तरह के भाजपा प्रयासों के इतिहास को देखते हुए यह भी लग रहा है कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को ध्यान में रख कर विशेष सत्र आहूत है। विशेष सत्र से विपक्ष कई तरह से जुड़ा हो सकता है। एक तो हेडलाइन मैनेजमेंट की संभावना है। विशेष सत्र की घोषणा ऐन 31 अगस्त को की गई, जब मुंबई में विपक्षी पार्टियों की बैठक शुरू हुई। उधर विपक्ष के 28 नेता मुंबई पहुंचे और...

  • विपक्ष के लिए मौका है विशेष सत्र

    पता नहीं केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने संसद का विशेष सत्र बुलाने का फैसला करने से पहले इस पर विचार किया या नहीं कि विपक्ष भी इसे मौके में तब्दील कर सकता है। संसद के विशेष सत्र से विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका और मंच मिलेगा। अगर किसी भी मुद्दे पर चर्चा होती है तो सरकार विपक्षी पार्टियों के सांसदों को बोलने से नहीं रोक सकती है। अगर बोलने से रोकती है तो विपक्ष को दबाने और लोकतंत्र कमजोर करने का नैरेटिव बनाने में विपक्ष को मदद मिलेगी। ध्यान रहे मानसून सत्र में अविश्वास...

  • शी-पुतिन की चले तो माफियाई विश्व व्यवस्था!

    दुनिया की शक्ल बदल रही है। भौतिक और राजनैतिक दोनों रूप में। सोचे, क्या है जोहानिसबर्ग की ब्रिक्स बैठक की वैश्विक गूंज? पहली बात, चीन-रूस के जलवे का मंच। दूसरी बात, दुनिया फिर दो खेमों में बंटी। इस दफा अमेरिका के मुकाबले में चीन है। पिछली सदी में रूस का सोवियत खेमा था। तीसरी बात, अमेरिका व चीन के कंपीटिशन को जानते हुए देशों में निर्गुट का आईडिया लौट आया। चौथी बात, अमेरिका बनाम सोवियत संघ के शीत युद्ध काल में स्तालिन, खुश्चौफ या ब्रेजनेव जैसे नेताओं में कभी कोई अंतरराष्ट्रीय अपराधी-भगौड़ा करार नहीं हुआ? वैश्विक बैठकों में उनकी उपस्थिति...

और लोड करें