हिंदू ध्वजधारी डॉ. कौशिक से बात हुई! वे वानप्रस्थ के उत्तरार्ध में हैं। प्रामाणिक वैज्ञानिक, फ्रेंच, अंग्रेज और सनातन संस्कृति के ज्ञाता डॉ. कौशिक समान अवसरों, साफ सुथरे, स्वस्थ जीवन में पीढ़ियों के भविष्य के ख्यालों में जवानी के दिनों में वाया अमेरिका कनाडा जा कर बसे। वहां उनकी अगली पीढ़ी भी अच्छी तरह स्थापित है। लेकिन अचानक अब वह है, जिसकी डॉ. कौशिक ने कल्पना कभी नहीं की थी। अब वहीं है, जिसका अनुमान मैंने नोटबंदी के फैसले से नरेंद्र मोदी को समझ कर लिखा था। तब मेरा विश्लेषण था कि नरेंद्र मोदी से अब यह गारंटीशुदा है कि वे जब जाएंगे तब न केवल हिंदू राजनीति कलंकित होंगी, बल्कि दुनिया में हिंदूफोबिया और हिंदू शब्द का भी अवमूल्यन हो गया होगा। हिंदुओं का जीना बेहाल होगा।
निश्चित ही दोषी अकेले मोदी नहीं हैं। हिंदुओं की बुद्धि, हिंदुओं की नियति और कलियुगी स्वभाव जिम्मेवार है। उस नाते हम हिंदुओं को दो ही काम आते हैं। विश्वगुरूता याकि ख्यालों के झूठ में जीना या भागना!
तभी नरेंद्र मोदी, अमित शाह, संघ की बुद्धि के इस परिणाम पर बारीकी से सोचे कि ऐसा कैसे जो सिख गुरुओं द्वारा निर्मित खालसा आज कनाडा में हिंदुओं की पिटाई करता हुआ है! जिस भी हिंदू में जरा भी अक्ल है वह गुरू तेगबहादुर की हिंदुओं के लिए कुर्बानी का इतिहास पढ़े। और फिर सोचे कि अब ऐसा कैसे जो सिख चेहरे मंदिर में जाकर हिंदुओं की पिटाई कर रहे हैं! न कनाडा के भारतीय समाज में सुलह की सामर्थ्य है और न भारत सरकार का कनाडा सरकार पर प्रभाव है जो वह दोनों समुदायों का झगड़ा रूकवा सके।
तभी डॉ. कौशिक की यह फिक्र गलत नहीं है कि तब तो नई जगह सोचनी होगी। कनाडा में हिंदुओं ने ही, संघ परिवार के चिरकुटों ने ही अपने जहर से हिंदुओं का जीना हराम बनाया है। कनाडा में न केवल सरकार और प्रशासन में हिंदुफोबिया बना है, बल्कि उग्रवादी सिखों को सच्चा और उपयोगी माना जा रहा है। कनाडा अब हिंदुओं का न वेलकम करता हुआ है न उनके लिए सुरक्षित है। न वहां हिंदुओं की मान मर्यादा है और न हिंदुओं के योगदान का सम्मान है।
मेरा मानना था और भारत में यह हल्ला है कि प्रधानमंत्री ट्रूडो का ग्राफ डाउन है और वे अगला चुनाव हार सकते हैं। लिबरल की हार से कंजरवेटिव पार्टी जीतेगी और तब हिंदुओं की सुनवाई होगी। यह फालतू बात और झूठ में जीना है। इसलिए क्योंकि अनुदारवादी अमेरिका का हो या कनाडा का या ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन का उसकी सरकारों की प्राथमिकता में महत्व उसी कम्युनिटी का होता है, जिसकी संख्या और उपयोगिता अधिक है और जीने का अंदाज उनके जैसा है। मतलब मोदी, संघ को यदि अपने जैसे ही हिंदू चाहिए तो उन्हें भी अपनी जैसी ही विदेशी जमात चाहिए। (वैसे हम हैं नहीं, तभी भारत की विदेश नीति रूस, चीन और दुनिया के कंगले देशों की दोस्ती में लगातार खपी रही है!)
इसलिए कनाडा में सरकार कोई बने। सिखों की तूती बोलेगी। वे राजनीति और वहां की सरकार में हमेशा निर्णायक रहेंगे। हिंदुओं का कनाडा पहले की तरह स्वागत नहीं करेगा। और वहां की त्रासदी है कि हिंदू भी अपनेपन के इतिहास में उन्हीं इलाकों में जा कर ज्यादा बसे हैं, जहां सिख हैं। इसलिए उनकी चुनाव याकि राजनीतिक हैसियत बड़ी हो सकना संभव नहीं है। तभी सिखों के बीच में, उनकी धमक में हिंदुओं का जीना अब वैसा ही असहज होता हुआ है, जैसे कश्मीर घाटी में कभी हिंदुओं का जीना असहज था और अंततः उन्हें घाटी से भागना पड़ा!
कैसा अकल्पनीय सिनेरियो है! गुरू तेगबहादुर, महाराजा रणजीत सिंह, गुरूग्रंथ साहिब, गुरूद्वारों-मंदिरों का साझा संघ परिवार की हुकूमत में इतना कैसे टूटा जो सिखों के साथ, उनके बीच रहना मानों जलालत, खौफ की जिंदगी! और यह सचमुच खराब खबर थी कि सिख उग्रवादियों ने मंदिर में जा कर उपद्रव किया, ताकत दिखलाई। ऐसा तो नहीं होना चाहिए था। क्या कनाडा के सिख इतने अविवेकी हो गए हैं?
जो है, उसकी जड़ मोदी सरकार का दस वर्षों का राज है। हम हिंदुओं को जब समझ नहीं आता है तो या तो सच्चाई से कन्नी काटना होता है या दिमाग में दुश्मनों की साजिश के ख्याल बनते हैं। इन दिनों ख्याल है कि दुनिया के श्वेत ईसाई देश, फाइव आईज (अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड) देश मोदी सरकार को नापसंद करते हैं इसलिए इनकी ‘डीप स्टेट’ गुपचुप हिंदुओं की प्रताड़ना, राष्ट्रवादी मोदी सरकार की घेरेबंदी और बदनामी के पैंतरे चलते हुए है। तभी पांचों देश कनाडा के भारत विरोधी प्रधानमंत्री ट्रूडो के साथ खड़े हैं! भारत ने रूस से दोस्ती निभाई तो ये उससे चिढ़े हैं। भारत ने चीन से सौदा पटा लिया है तो उससे नाराज हैं। नरेंद्र मोदी और भारत का दुनिया में मान बढ़ा है तो यह फाइव आईज देशों को पसंद नहीं!
यदि इन फालतू बातों को मान भी लें तो मोदी-शाह-डोवाल के गुपचुप कामों याकि भारत के ‘डीप स्टेट’ पैंतरों में ‘फाइव आईज’ को पटाना चाहिए या भारत और प्रवासी हिंदुओं की सुरक्षा, उनके सर्वाधिक सुरक्षित ठिकानों की सरकारों से पंगा बढ़ाना चाहिए? क्या गुपचुप क्राइसिस मैनेजमेंट नहीं करना चाहिए? हिंदू बनाम सिख की वैश्विक सुर्खियां बनवानी चाहिए या उन्हें मिटाने के लिए दिन-रात कोशिश करनी चाहिए?
लाख टके का सवाल है कनाडा यदि हिंदुओं के लिए जीने लायक नहीं रहा तो क्या अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड या कोई भी पूर्वी, पश्चिमी देश हिंदुओं को वेलकम करता हुआ होगा? यदि मोदी, शाह, संघ परिवार को हिंदुओं की चिंता है तो बेसिक सत्य है कि हिंदुओं की प्रतिभा पूंजी, काबलियत, उद्यमिता, इनोवेशन और सह अस्तित्व की आदर्श स्थितियां और अवसर में केवल पश्चिमी देशों का लिबरल समाज ही है। इन देशों में यदि मोदी सरकार के तौर-तरीकों व इमेज से हिंदुओं की कठमुल्लाई, हिंदूफोबिया वाली इमेज लगातार पुख्ता होती गई और कनाडा से भागना पड़ा तो बेचारों के लिए जाने की जगह कहां होगी?
जो हो, तय मानें कनाडा में सिखों के डर और सरकार की बेरूखी से वहां के हिंदुओं के बुरे सपने बनते हुए हैं। लोगों के दिल-दिमाग में सवाल बन गए हैं कि करें तो क्या करें? मोदी सरकार ने उन्हें किस चौराहे पर ला खड़ा किया है? और जाएं तो कहां जाए?