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12-07-2025 Vol 19

लोकतंत्र में लाठी का राज

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लाठी भांज रहे हैं। उनको परवाह नहीं है कि लाठी अपने दोस्तों को लग रही है या दुश्मनों को। उनके हाथ में उस्तरा है तो वे उसे जैसे तैसे चला रहे हैं। यूरोप के देश हैरान परेशान हैं तो दक्षिण कोरिया और जापान जैसे दोस्त भी परेशान हैं। ट्रंप ने उनके ऊपर भी भारी भरकम टैक्स लगा दिया है। लेकिन यह सिर्फ अमेरिका की परिघटना नहीं है। व्लादिमीर पुतिन के पास भी लाठी है तभी तो उन्होंने एक दिन कहा कि यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने वाले इलाकों पर उनका अधिकार है और यूक्रेन पर हमला कर दिया। चीन के शी जिनफिंग को भी अपनी लाठी का बड़ा घमंड है तो वे कभी ताइवान को धमकाते हैं तो कभी संप्रभु भारत के एक राज्य अरुणाचल प्रदेश के शहरों, कस्बों के नाम बदलने लग जाते हैं। यह कहानी भारत में भी दोहराई जा रही है। हालांकि भारत किसी दूसरे देश के खिलाफ लाठी नहीं भांज रहा है, बल्कि वह अपने ही नागरिकों पर, किसी न किसी रूप में सत्ता या शक्ति की लाठी चला रहा है। ग्यारह वर्षो का कमाल ही हा जो ‘नोटबंदी’ से ‘वोटबंदी’ तक लाठीराज भारत की पहचान है।

एक दिन अचानक जैसे नोट बंद किए गए थे उसी तरह एक दिन अचानक चुनाव आयोग ने कहा कि बिहार के हर नागरिक को अपनी नागरिकता प्रमाणित करनी होगी। ऐसे ही कहीं आकाशवाणी हुई कि बहुत जल्दी इस देश में अंग्रेजी बोलने वाले शर्मिंदा होंगे और उसके बाद एक फरमान आया कि अमुक राज में पहली कक्षा के बच्चों को हिंदी पढ़नी होगी। इसके विरोध में कुछ लोग लाठी लेकर सड़क पर उतर गए। चुन चुन कर गैर मराठी लोगों से मराठी बुलवाने का उत्सव शुरू हुआ और नहीं बोलने वालों पर लाठियां चलने लगीं। इसी तरह एक दिन अचानक कुछ लोग लाठी लेकर सड़कों पर उतरे और दुकानदारों की पहचान जांचने लगे। उनके यूपीआई लिंक पर जाकर चेक करने लगे कि वह हिंदू है या मुस्लिम। उससे उसका नाम दुकान पर लगाने, न लगाने या बंद करके भाग जाने को कहा जाने लगा। दिल्ली में नगर निगम ने कहा है कि निगम के किसी कानून में नहीं लिखा है कि कांवड़ के रास्ते में पड़ने वाली मांस की दुकानों को बंद किया जाए। लेकिन जिनके हाथ में लाठी है वे लाठी लेकर घूम रहे हैं और मांस की दुकानें बंद करा रहे हैं।

किसी को लग रहा है कि फिल्म का नाम ‘जानकी’ नहीं होना चाहिए। फिर वह उसके खिलाफ आंदोलन शुरू कर दे रहा है और फिल्म के नाम को लेकर घमासान लड़ाई होती है। किसी को लगता है कि कन्हैयालाल दर्जी की हत्या के ऊपर ‘उदयपुर फाइल्स’ नाम से फिल्म नहीं बननी चाहिए तो वह उस विषय पर लड़ाई शुरू हो जाती है और अदालत उस पर रोक भी लगा देती है।

एक तरफ चुनाव आयोग बिहार के लोगों से कहता है कि आप अपनी नागरिकता प्रमाणित करें। लोग अपनी नागरिकता का सबूत दे। दूसरी ओर एक अदालत कहती है कि कोई व्यक्ति दुर्घटना में मारा गया है और उसके परिजन बीमा की राशि क्लेम करने गए हैं तो परिवार के लोग साबित करें की दुर्घटना में मरने वाला व्यक्ति अपनी गलती या लापरवाही से तो नहीं मरा है! ऐसे ही एक दिन सरकार कहती है कि अमुक यूट्यूब चैनल नहीं चलेगा और वह बंद हो जाता है या अमुक एक्स अकाउंट बंद होना चाहिए तो वह बंद हो जाता है। कोई बुलडोजर पर बैठा हुआ है और तत्काल न्याय करने में लगा है। धर्मांतरण कराने वाला किसी छद्म बाबा के बारे में सूचना मिली तो उस पर कानूनी कार्रवाई बाद में होगी, पहले उसका घर बुलडोजर से गिरा दिया जाएगा।

सोचें, न्यायालयों के पास अपनी लाठी है लेकिन उससे बड़ी और मजबूत लाठी सरकारों के पास है। अदालतों ने कहा कि बुलडोजर नहीं चला सकते लेकिन सरकारों ने इसे नाम पर मक्खी भिनभिनाने, जितना भी महत्व नही दिया। अदालत के रोक लगाने के बावजूद बुलडोजर चलते रहे। मामूली बात पर यूट्यूबर्स और ब्लॉगर्स पर मानहानि का मुकदमा चलवाने वाली अदालतों की इस मामले में कोई मानहानि नहीं हुई।

किसी के हाथ में कानून की लाठी है तो किसी के हाथ में न्याय की तलवार है। कोई बुलडोजर पर बैठा हुआ है तो कोई बिना किसी कानून या अधिकार के ही इस अहंकार में लाठी चला रहा है कि सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का। इन सबकी लाठी का शिकार आम भारतीय है। इस देश का आम भारतीय हर किस्म की लाठी झेल रहा है। और वह लाठी खाता हुआ अपने को विश्वगुरू हुआ समझ रहा है!

इतना ही भगवान और भाग्य  की बेआवाज लाठी भी उसी पर पड़ रही है। पिछले दिनों राजधानी दिल्ली और एनसीआर में जम के बारिश हुई तो गुरुग्राम में छह लोग उस बारिश से जुड़ी घटनाओं में मर गए। लाखों लोग सड़कों पर ट्रैफिक में फंसे रहे, उनके घरों में पानी घुस गया, उनकी गाड़ियां बह गईं, राह चलते युवक करंट लगने से मर गया। इसके बावजूद सरकारें दावा करती रहीं कि पहले जितना पानी जमा होता था उससे कम जलजमाव हुआ। अमुक जगह पर जहां हर साल पानी जमा होता था और गाड़ियां डूबती थीं, इस बार वहां पानी नहीं जमा हुआ है। देश के दूसरे हिस्सों में हो रही बारिश में मरने, डूबने, बहने वालों की संख्या सैकड़ों में है। लेकिन लोग क्या कर सकते हैं? अगर किसी इन्फ्लूएंसर ने वीडिय़ो बनाने की कोशिश की तो उस पर कार्रवाई उलटे हो जाएगी।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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