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12-07-2025 Vol 19

कर ले ख़ुद से मोहब्बतः ‘मेट्रो… इन दिनों’

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इस फिल्म की एक ख़ूबसूरत बात ये है कि इसमें हर एज ग्रुप और हर दौर की लव स्टोरी है और वो भी बेहद ही रियल और थॉट प्रोवोकिंग तरीके से। आपके नज़दीकी सिनेमाघर में लगी है।…मेट्रो… इन दिनोंकी एक बड़ी खासियत है कि उनके किरदार कहीं से भी फिक्शनल नहीं लगते हैं। सब के सब बिलकुल रियल और मानवीय। किरदारों की टूट फूट उन्हें दिलचस्प बनाती है। फिल्म में एक साथ चार-पांच कपल्स की कॉम्प्लेक्स ज़िंदगियां चलती हैं।

सिने-सोहबत

महानगरीय ज़िंदगी में इंसान कई बार ख़ुद के बने सपनों की जाल में इस क़दर उलझ जाता है कि उसकी प्राथमिकताएं सेंसेक्स की तरह चंचल हो जाती हैं और वो समझ नहीं पाता कि कई ज़रुरी रिश्ते निचले पायदान पर चले जाते हैं। जब तक महसूस होता है तब तक ज़िंदगी की ट्रेन कहीं दूर चली गई होती है। आज के सिने-सोहबत में हाल ही में आई फ़िल्म ‘मेट्रो… इन दिनों’ की चर्चा करते हैं, जिसके निर्देशक हैं अनुराग बसु।

‘मेट्रो… इन दिनों’ की एक बड़ी खासियत है कि उनके किरदार कहीं से भी फिक्शनल नहीं लगते हैं। सब के सब बिलकुल रियल और मानवीय। किरदारों की टूट फूट उन्हें दिलचस्प बनाती है। फिल्म में एक साथ चार-पांच कपल्स की कॉम्प्लेक्स ज़िंदगियां चलती हैं। सभी कहीं न कहीं खुद को ‘आउट ऑफ लव’ महसूस करते हैं, मगर फिर फ़िल्म की स्टोरी और निर्देशक की स्टोरी टेलिंग का ऐसा संतुलन बैठता है कि न केवल फिल्म के किरदारों को, बल्कि दर्शकों को भी एक थॉट प्रोवोकिंग कल्मिनेशन मिलती है।

फिल्म का पहला भाग सरपट भागता है और इंटरवल के बाद कहानी की गति ज़रा धीमी सी लगती है, मगर फिर एक बेहतरीन क्लाइमेक्स सब कुछ संभाल लेता है। फिल्म में गानों की भरमार बचपन में दूरदर्शन के चित्रहार की याद दिलाती तो है मगर जल्दी ही दर्शकों को अपने म्यूज़िकल फॉर्मेट में बखूबी बांध लेती है। फ़िल्म के नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए निर्देशक ने हॉलीवुड म्यूजिकल की तरह प्रीतम, पापोन और चैतन्य राघव के गीत-संगीत को सूत्रधार के रूप में इस्तेमाल किया है, तो ये फिल्म में छाए रहते हैं।

फिल्म की कहानी मुंबई, पुणे, बेंगलुरू, दिल्ली और कोलकाता जैसे चार शहरों में सफर करती है। बीस सालों से शादी के बंधन में बंधे मोंटी (पंकज त्रिपाठी) और काजोल (कोंकणा सेन शर्मा) मुंबई में रहने वाला एक ऐसा कपल है, जो बाहरी तौर पर खुशहाल लगते हैं, मगर अंदरूनी तौर पर इनकी शादी में बोरियत और बहस ने अपनी जगह बना ली है। उनकी 15 साल की टीनएज बेटी है। मोंटी का एक दोस्त उसे सलाह देता है कि डेटिंग ऐप ज्वाइन करके वो अपनी जिंदगी में स्पाइस ला सकता है। मोंटी डेटिंग ऐप से जुड़ जाता है। इस बात से अनजान कि उसकी अपनी पत्नी काजोल ही उसकी जासूसी करने के लिए उसकी डेटिंग पार्टनर बनी हुई है।

उधर पुणे में काजोल की मां शिवानी (नीना गुप्ता) ने अपने कॉलेज के जमाने के प्यार परिमल (अनुपम खेर) और अपनी निजता को भुलाकर पिछले 40 सालों से संजीव (सास्वता चटर्जी) के साथ अपनी गृहस्थी को सींचने में लगी है। काजोल की छोटी बहन चुमकी (सारा अली खान) दिल्ली में एचआर की नौकरी करती है। जल्द ही उसकी शादी अपने मंगेतर आनंद (कुश जोतवानी) से होने वाली है, मगर एक बार जब वह बेंगलुरू में ब्लॉगर पार्थ (आदित्य रॉय कपूर) से टकराती है, तो आनंद से अपने रिश्ते को लेकर दोबारा सोच में पड़ जाती है।

पार्थ की दोस्त श्रुति (फातिमा सना शेख) अपने पति आकाश (अली फजल) के साथ बेंगलुरू में रहती है। एक-दूसरे से प्यार करने वाला यह जोड़ा भी करियर के सपनों और निजी जिंदगी के बीच प्यार को संतुलित करने की जद्दोजहद में उलझा नजर आता है। श्रुति मां बनना चाहती है, मगर आनंद अपनी कॉरपोरेट नौकरी छोड़ कर सिंगर बनने के सपने के पीछे दौड़ना चाहता है, वहां कोलकाता में अपनी जवान विधवा बहू के साथ रहने वाला परिमल अपने एकाकीपन से ज्यादा बहू के भविष्य को लेकर चिंतिंत है। परिमल और शिवानी की जिंदगी में तब बहुत कुछ बदल जाता है, जब वे कोलकाता में कॉलेज के रियूनियन के लिए मिलते हैं। कहानी में मोंटी और काजोल की बेटी का भी एक एंगल है, जो 15 साल की उम्र में अपनी सेक्शुएलिटी को लेकर कन्फ्यूजन में है।

ये सभी कहानियां एक-दूसरे से जुड़ने के साथ-साथ दर्शक को प्रेम और रिश्तों की गहराई तक ले जाती हैं। म्यूजिकल फिल्मों के शौकीनों के लिए संगीतकार प्रीतम ने कैसर उल जाफरी और मोमिन खान मोमिन जैसे शायरों की शायरियों को पिरोकर इन्हें मखमली बनाया है। फिल्म का रन टाइम थोड़ा ज्यादा लगता है, मगर इतने किरदारों को जोड़ने के लिए ये जरूरी भी लगता है। यूं तो फिल्म की सारी प्रेम कहानियां मजेदार हैं, मगर मोंटी और काजोल का ट्रैक सबसे ज्यादा दिलचस्प है। अभिषेक बसु और अनुराग बसु की सिनेमेटोग्राफी में सभी शहर खिले नजर आते हैं।

एक से एक मंझे कलाकारों की एक्टिंग के मामले में फिल्म समृद्ध है। आदित्य रॉय कपूर ने एक बोहेमियन शैली को अपने विशिष्ट अंदाज में निभाया है, तो वहीं सारा अली खान ने चुमकी की भूमिका को खूबसूरती से जिया है। पंकज त्रिपाठी और कोंकणा सेन शर्मा जैसे उम्दा कलाकारों ने अपने किरदारों के जरिए न केवल रिश्तों की जटिलताओं को दर्शाया है, बल्कि हंसाया भी खूब है। पंकज त्रिपाठी ने अब तक का अपना सबसे अलग और बेहतरीन काम करके एक बार फिर से सबका दिल बखूबी जीत लिया है। नीना गुप्ता और अनुपम खेर हमेशा की तरह शानदार रहे हैं। पर्दे पर इनकी केमिस्ट्री मजेदार लगती है। श्रुति के रूप में फातिमा सना शेख ने अपनी भूमिका को गहराई प्रदान की है, तो वहीं अली फजल ने आकाश की भूमिका को यादगार बनाया है। ये जोड़ा आपको उदास करता है, मगर आखिर में मुस्कान भी दे जाता है। संजीव की भूमिका में सास्वता चटर्जी याद रह जाते हैं। फिल्म में इम्तियाज अली जैसे प्रतिभाशाली और गुडलुकिंग निर्देशक का कैमियो और स्वयं इस मनोरंजक साज़िश के रचयिता अनुराग बसु की झलक मुस्कान दे जाती है। फ़िल्म के डायलॉग्स भी काफी यादगार हैं। कुछ संवाद अनुराग बसु की ही 2007 ‘लाइफ इन अ मेट्रो’ की याद दिलाते हैं, जैसी, ‘शादी कुछ और सिखाए न सिखाए, अच्छी एक्टिंग करना ज़रूर सीखा देती है’।

इस फिल्म की एक ख़ूबसूरत बात ये है कि इसमें हर एज ग्रुप और हर दौर की लव स्टोरी है और वो भी बेहद ही रियल और थॉट प्रोवोकिंग तरीके से। आपके नज़दीकी सिनेमाघर में लगी है। देख लीजिएगा।(पंकज दुबे मशहूर पॉप कल्चर कहानीकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, ‘स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़’ के होस्ट हैं।)

पंकज दुबे

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