The Storyteller : द स्टोरीटेलर अनंत नारायण महादेवन के निर्देशन में बनी एक हिंदी फ़ीचर फ़िल्म है, जो सत्यजीत राय की प्रसिद्ध लघु कथा ‘गोलपो बोलिये तारिणी खुरो’ पर आधारित है।
अहमदाबाद और कोलकाता की पृष्ठभूमि में रची-बसी यह कहानी न केवल दर्शकों को मनोरंजन का अद्भुत अनुभव प्रदान करती है, बल्कि कला बनाम व्यापार जैसे गहरे मुद्दों पर भी विचार करने के लिए मजबूर करती है।
सिने-सोहबत
बहुत दिनों बाद हिंदी फ़िल्मों की दुनिया में एक ऐसी फ़िल्म आई है, जिसमें ‘प्लेजरिज़्म’ (साहित्यिक चोरी) को कहानी के केंद्र में रखा गया है।
हिंदी फ़िल्म उद्योग ने समय समय पर ‘प्लेजरिज़्म’ जैसे अवगुण को इस क़दर अपनाया है जैसे कि ये एक अपरिहार्य और अनिवार्य बुराई हो।(The Storyteller)
दरअसल, किसी की कहानी या ‘स्टोरी आइडिया’ को चुरा लेने के कई मामले ख़बरों में भी आते रहते हैं। ‘कॉन्सेप्ट्स’ या ‘आइडियाज़’ के इन चोरों की एक बड़ी ख़ासियत ये होती है कि आत्मग्लानि तो दूर की बात है, इन्हें शर्म तक नहीं आती।
कहानी, प्लॉट, किरदारों को प्रेरणा के नाम पर उड़ाने की बात ग़लत तो है ही लेकिन अगर ये ‘आइडिया चोर’ किसी औपचारिक या अनौपचारिक महफ़िल में बैठे हों
इनकी कान तक किसी साहित्यकार, पटकथा लेखक, गीतकार किस्म के रचनात्मक प्राणी की जुबां से निकला कोई टाइटल (शीर्षक) भी पड़ गया तो ये फ़ौरन उसे अपने या अपनी कंपनी के नाम से रजिस्टर कराने की जुगत में लग जाते हैं। बेहद, दुर्भाग्यपूर्ण है।
‘द स्टोरीटेलर’ अनंत नारायण महादेवन के निर्देशन में बनी एक हिंदी फ़ीचर फ़िल्म है, जो सत्यजीत राय की प्रसिद्ध लघु कथा ‘गोलपो बोलिये तारिणी खुरो’ पर आधारित है।
अहमदाबाद और कोलकाता की पृष्ठभूमि में रची-बसी यह कहानी न केवल दर्शकों को मनोरंजन का अद्भुत अनुभव प्रदान करती है, बल्कि कला बनाम व्यापार जैसे गहरे मुद्दों पर भी विचार करने के लिए मजबूर करती है।
इस फ़िल्म का निर्माण किया है जियो सिनेमा ने और ओटीटी पर स्ट्रीमिंग के पहले ही ‘द स्टोरीटेलर’ दुनिया भर के फ़िल्म फ़ेस्टिवल सर्किट में ख़ासी सराहना बटोर चुकी है।(The Storyteller)
फ़िल्म की कहानी एक बुजुर्ग कहानीकार तारिणी बंदोपाध्याय (परेश रावल) के इर्द-गिर्द घूमती है। तारिणी बंदोपाध्याय अपने जीवन के अनुभवों और कहानियों के माध्यम से लोगों को प्रेरित करते हैं।
इनकी ज़िन्दगी में एक बड़ा कॉन्फ्लिक्ट ये होता है कि ये कहानियां तो बहुत डूब कर सुनाते हैं लेकिन उन्हें लिख नहीं पाते।
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कहानी में एक अहम मोड़ तब आता है जब उनके जीवन में एक ऐसा प्रसंग सामने आता है, जहां उन्हें अपनी सच्चाई और रचनात्मकता को साबित करना पड़ता है।
फ़िल्म में प्लेजरिज़्म (साहित्यिक चोरी) के संवेदनशील मुद्दे को बड़ी खूबसूरती से उठाया गया है। फ़िल्म की गति धीमी है, लेकिन यह धीमापन फ़िल्म का प्रमुख आकर्षण भी है।(The Storyteller)
इसे देख कर ऐसा महसूस होता है जैसे कोई स्वादिष्ट भोजन धीमी आंच पर पक रहा हो, जिसका हर निवाला दर्शक के लिए आनंददायक हो। दर्शक इस धीमी गति का आनंद लेने लगते हैं और फिल्म उन्हें अपने साथ बहा ले जाती है।
परेश रावल ने तारिणी बंदोपाध्याय के किरदार को जीवंत कर दिया है। उनका अभिनय सहज, प्रभावशाली और पूरी तरह से किरदार में डूबा हुआ है। आदिल हुसैन ने भी अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अहमदाबाद की एक लाइब्रेरियन की भूमिका में तनिष्ठा चटर्जी के साथ साथ रेवती ने भी उद्योगपति रतन गारोडिया की लव इंटरेस्ट की भूमिका में गहरी छाप छोड़ी है। हर क़िरदार अपनी भूमिका में सटीक बैठता है और कहानी को मज़बूत बनाता है।
इस फ़िल्म की कास्टिंग भी बेहद दिलचस्प अंदाज़ में की गई है। तारिणी बंदोपाध्याय जैसे घोर बंगाली किरदार निभाने वाले मंझे कलाकार परेश रावल गुजरात से आते हैं।(The Storyteller)
इस किरदार के लिए क़िस्से-कहानियों के अलावा ज़िन्दगी में सबसे अधिक रस अगर कहीं है तो वो है, माछ (‘मछली’ )और दुर्गो पूजो (दुर्गा पूजा)। परेश रावल ने एक बंगाली किरदार की भूमिका को कालजयी बना दिया है।
दूसरी तरफ़ गुजराती उद्योगपति रतन गारोडिया की भूमिका निभाने वाले आदिल हुसैन असम से आते हैं। जिन दर्शकों को इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि आदिल गुजराती नहीं हैं उन्हें ये कभी महसूस भी नहीं होगा कि वे गुज्जु डायलेक्ट की बारीकियों को पकड़ने में लेस मात्र भी चुके हों। कमाल है।
यह फ़िल्म कला और व्यापार के बीच के अंतर्विरोधों पर एक गहरी बहस प्रस्तुत करती है। यह सवाल उठता है कि क्या कला का मूल्य केवल उसकी व्यावसायिक सफलता से मापा जाना चाहिए, या फिर उसकी रचनात्मकता और मौलिकता अधिक महत्वपूर्ण है? तारिणी खुरो का जीवन और उनकी कहानियां इस सवाल का सटीक जवाब देती हैं।(The Storyteller)
फ़िल्म का प्लॉट बेहद शानदार(The Storyteller)
फ़िल्म का प्लॉट बेहद शानदार है और इसकी पटकथा दर्शकों को बांधे रखती है। सत्यजीत रे की इस शार्ट स्टोरी को इस फीचर फ़िल्म की स्क्रिप्ट में तब्दील किया है अनंत नारायण महादेवन और किरीट खुराना ने।
कहानी के केंद्र में एक कहानीकार है, जिसे एक अमीर बिज़नेसमैन ने कहानी सुनाने के काम में रखा है क्योंकि उसे अनिद्रा की समस्या है। सारे ऐशो आराम के बावजूद उसे नींद ही नहीं आती है।
लिहाजा, उसने कहानी सुनकर सोने की कोशिश करने के लिए एक स्टोरीटेलर को पेड जॉब पर रखा है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, दर्शक फिल्म के गहरे अर्थों में डूबते चले जाते हैं।(The Storyteller)
क्लाइमेक्स में आने वाला अप्रत्याशित मोड़ दर्शकों को हैरान कर देता है और फिल्म को एक यादगार अंत प्रदान करता है।
अनंत नारायण महादेवन का निर्देशन बेहद संवेदनशील और सौम्य है। उन्होंने सत्यजीत राय की मूल कहानी के प्रति ईमानदारी बनाए रखते हुए इसे आधुनिक दर्शकों के लिए प्रस्तुत किया है।
फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी काफ़ी उम्दा है और अहमदाबाद तथा कोलकाता की लोकेशन्स को खूबसूरती से कैप्चर किया गया है। संगीत और बैकग्राउंड स्कोर कहानी के साथ पूरी तरह मेल खाता है और फिल्म के मूड को गहराई प्रदान करता है।(The Storyteller)
दिल और दिमाग दोनों को छूने वाली
‘द स्टोरीटेलर’ न केवल एक मनोरंजक फिल्म है, बल्कि यह दर्शकों को गहरे सवालों से भी रूबरू कराती है। प्लेजरिज़्म का मुद्दा, कला और व्यापार के बीच की खींचतान और कहानीकारों की मौलिकता को बचाने का संदेश फिल्म को एक गहरी दृष्टि प्रदान करता है।
‘द स्टोरीटेलर’ एक धीमी आंच पर पकी हुई ऐसी फ़िल्म है जो दर्शकों के दिल और दिमाग दोनों को छू जाती है।(The Storyteller)
यह फ़िल्म न केवल कहानी कहने की कला का जश्न मनाती है, बल्कि समाज में मौलिकता के महत्व को भी रेखांकित करती है। शानदार अभिनय, संवेदनशील निर्देशन और अप्रत्याशित क्लाइमेक्स के साथ यह फिल्म निश्चित रूप से देखने लायक है।
अगर आप ऐसी फिल्में पसंद करते हैं जो आपको सोचने पर मजबूर करें और एक नई दृष्टि प्रदान करें, तो ‘द स्टोरीटेलर’ आपके लिए एक अनमोल अनुभव साबित होगी।
डिज़नी हॉटस्टार पर है। देख लीजिएगा। (पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़” के होस्ट हैं।)(The Storyteller)