delhi election result: अपनी छाती पर छप्पन किलो का पत्थर बांध कर चुपचाप यह स्वीकार कर लीजिए कि भारत की निर्वाचन व्यवस्था का राजीवकुमारकरण हो चुका है।
जैसे राम-नाम सत्य है, वैसे ही अब यह भी अंतिम सत्य है कि चेहरा बदलेगा, चरित्र नहीं। ढाल बदलेगी, चाल नहीं। अगर आप सच्चे राष्ट्रवादी हैं तो नाहक चूंचपड़ से बाज़ आइए।
हुक़्मउदूली के नतीजों की मिसालें अगर दस बरस में भी आप की आंखों के सामने से नहीं गुज़री हैं तो एक बार नज़रें घुमा कर देख लीजिए। फिर मत कहना कि पहले बताया नहीं।
अगर सचमुच सब साफ़-सुथरा है और कहीं कोई गड़बड़ नहीं है तो हमारे देश का निर्वाचन आयोग समूचे प्रतिपक्ष द्वारा मांगी जा रही जानकारियां नहीं देने पर इस तरह क्यों अड़ा हुआ है?
पूरे देश की और सभी प्रदेशों की मतदाता सूचियों की इस तरह पहरेदारी की क्या ज़रूरत है कि उसे परम गोपनीयता का जामा ओढ़ा दिया गया है?(delhi election result)
सकल विपक्ष तीन महीने से गुहार लगा रहा है कि महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव जिन मतदाता सूचियों के आधार पर कराए गए, उन की प्रामणित प्रतियां उसे उपलब्ध कराई जाएं। लेकिन निर्वाचन आयोग अपनी दरोगाई पर उतारू है।
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राहुल गांधी ने फिर यह आग्रह दोहराया
शुक्रवार को राहुल गांधी ने फिर यह आग्रह दोहराया। उन के साथ संवाददाता सम्मेलन में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के साथ लड़ने वाले राजनीतिक दलों – राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और उद्धव शिवसेना – के प्रतिनिधि भी थे।
सब ने मांग की कि महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनावों की संपूर्ण मतदाता सूची नाम, पते और मतदाताओं की तस्वीरों के साथ उन्हें दी जाए।(delhi election result)
राहुल ने कहा कि हम ने दोनों चुनावों की सूचियों में इतनी गड़बड़ियां पाई हैं कि सही स्थिति का पता लगाने के लिए निर्वाचन आयोग से प्रमाणित सूचियों की दरकार है।
मुझे पक्का यक़ीन है कि निर्वाचन आयोग की ढीठ पेशानी पर इस से कोई बल नहीं पड़ने वाला है और वह विपक्ष की इस मांग को तब तक ठेंगा ही दिखाता रहेगा, जब तक कि विपक्ष सर्वोच्च न्यायालय से इस बारे में कोई हुक़्मनामा ले कर नहीं आ जाता।(delhi election result)
ऐसा कोई आदेश सब से ऊंची अदालत कभी देगी या नहीं, कौन जाने, मगर इस मामले में प्रतिपक्ष के लिए अगर कोई आसरा दिखाई देता है तो वह यही है।
अब से दस दिन बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्त सेवा निवृत्त हो रहे हैं और उन्हें क्या पड़ी है कि जाते-जाते इस पचड़े में पड़ें और भविष्य की अपनी संभावनाओं की चमक धुंधली कर लें?(delhi election result)
करने को उन्होंने ऐलान किया है कि फ़िलहाल तो कुछ महीने वे पहाड़ों में जा कर ध्यान-योग करेंगे, मगर आप देखेंगे कि ये कुछ महीने कितनी जल्दी ख़त्म होते हैं।
भारत को विकसित कब बनाएं?(delhi election result)
मतदाता सूचियों को ले कर, और ख़ासकर महाराष्ट्र-मसले को ले कर, विपक्ष के शक़-शुबहे में, निर्वाचन आयोग और भारतीय जनता पार्टी के हिमायतियों को छोड़ कर बाकी सब को दम नज़र आता है।
इसलिए कि महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा चुनाव में कुल 9 करोड़ 13 लाख 64 हज़ार 255 मतदाता थे। पांच महीने बाद जब विधानसभा चुनाव की मतदाता सूची प्रकाशित हुई तो उस में मतदाताओं की तादाद 9 करोड़ 63 लाख 69 हज़ार 410 हो गई।
सौ-सवा सौ दिनों में 50 लाख 5 हज़ार 155 मतदाता बढ़ गए। यानी हर निर्वाचन क्षेत्र में औसतन 17 हज़ार 379 मतदाताओं की बढ़ोतरी हो गई।(delhi election result)
मतदाताओं की सब से ज़्यादा संख्या जहां-जहां बढ़ी, वहां-वहां से विधानसभा का चुनाव भाजपा जीती। क्या यह अनायास हुआ होगा?
लेकिन जब हमारे हुक़्मरान पूरे लोकतंत्र को दस साल से खूंटी पर लटका कर मनमानी के मोढ़े पर बैठे आराम से मदमस्ती का हुक्का फूंक रहे हैं तो काहे का तो विपक्ष और काहे की उस की मांग?
विपक्ष का धंधा तो चूंकि है ही देश को अस्थिर करने का और नरेंद्र भाई मोदी चल रहे हैं भारत को विश्वगुरु बनाने के अपने कर्तव्य पथ पर, सो, विपक्ष को झींकने दीजिए।(delhi election result)
अगर वे ऐसे ही सब के संशय दूर करते फिरें तो भारत को विकसित कब बनाएं? अपने प्रधानमंत्री के इस पावन यज्ञ में क्या निर्वाचन आयोग अपने हिस्से की आहुति न दे? इसलिए ज़ोरशोर से वह भी अपने काम में लगा है।
बस… बात ख़त्म।
लिपिक टोली के पास क़ानून-क़ायदों और नियम-उपनियमों की गठरी आख़िर होती किसलिए है?(delhi election result)
सो, 1961 की निर्वाचन प्रक्रिया नियमावली के नियम 85-डी के मुताबिक़ सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को उन के निर्वाचन क्षेत्र के लिए अंतिम तौर पर प्रकाशित मतदाता सूची की एक प्रति निःशुल्क दी जाती है।
बस। बात ख़त्म। निर्वाचन प्रक्रिया में ऐसा कोई प्रावधान कहीं नहीं है कि अगर कोई एक राजनीतिक दल या राजनीतिक दलों का कोई समूह मतदाता सूची की प्रमाणित प्रति मांगे तो वह उसे मुहैया कराई जाए।(delhi election result)
देश में 6 राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं, 8 प्रादेशिक दल हैं और 110 अन्य पंजीकृत दल हैं। यानी अगर हर निर्वाचन क्षेत्र में ये सभी अपने उम्मीदवार उतार दें तो एक लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र में अधिकतम 124 प्रत्याशी ऐसे होंगे, जिन्हें अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र की पूरी मतदाता सूची निःशुल्क हासिल करने का हक़ होगा।
अब इस से ज़्यादा और क्या अधिकारसंपन्न बनाए निर्वाचन आयोग किसी को? अब अगर वह यह व्यवस्था कर दे कि कोई भी राजनीतिक दल शुल्क चुका कर पूरे देश या किसी प्रदेश की मतदाता सूची ले सकता है तो फिर तो हो गया?
ऐसे तो राष्ट्रीय सुरक्षा ही खतरे में पड़ जाएगी। देखा नहीं आप ने कि किस तरह देश भर के नागरिकों के आधार कार्ड की फोटो-प्रतियां गली-गली मारी-मारी फिर रही हैं और उन का बेज़ा इस्तेमाल कर के क्या-क्या नहीं हो रहा है?
तो ऐसे में निर्वाचन आयोग मतदाता सूचियों को ताले में बंद कर के नहीं रखे तो क्या करे? क्या उन्हें ऐसे ग़ेरज़िम्मेदार विपक्ष के हवाले कर दे, जो जॉर्ज सोरोस के टुकड़ों पर पल रहा है?(delhi election result)
निर्णय तो बहुमत से होगा(delhi election result)
निर्वाचन आयोग को मजबूत बनाने के लिए ही तो निर्वाचन आयुक्तों के चयन के लिए बनाई गई समिति से देश के प्रधान न्यायाधीश को बाहर किया गया है।(delhi election result)
प्रधानमंत्री, नेता-प्रतिपक्ष और प्रधान न्यायाधीश वाली चयन समिति की सब से कमज़ोर कड़ी तो प्रधान न्यायाधीश ही थे।
उन्हें हटा कर, उन की ज़गह, गृह मंत्री अमित भाई शाह को समिति का सदस्य बनाते ही चयन प्रक्रिया में जान फुंक गई।(delhi election result)
अब शहरी नक्सल टाइप का कोई वकील सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में चला गया तो जाता रहे।
राहुल गांधी लोकसभा में विलाप करते रहें कि कुछ दिनों बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्त को चुनने के लिए मुझे चयन समिति की बेठक में जाना होगा, मगर मैं जा कर करूंगा क्या, क्यों कि जब नरेंद्र भाई और अमित भाई इकट्ठे हैं तो मैं तो वैसे ही अल्पमत में हो गया।
निर्णय तो बहुमत से होगा। राहुल ने इस सप्ताह राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कहा कि प्रधान न्यायाधीश सदस्य होते तो संतुलित निर्णय लेने के आसार तो होते। मगर राहुल के अरण्य-रोदन को सुनने की किसे फ़ुर्सत है?
इसलिए अपनी छाती पर छप्पन किलो का पत्थर बांध कर चुपचाप यह स्वीकार कर लीजिए कि भारत की निर्वाचन व्यवस्था का राजीवकुमारकरण हो चुका है।(delhi election result)
जैसे राम-नाम सत्य है, वैसे ही अब यह भी अंतिम सत्य है कि चेहरा बदलेगा, चरित्र नहीं। ढाल बदलेगी, चाल नहीं।
अगर आप सच्चे राष्ट्रवादी हैं तो नाहक चूंचपड़ से बाज़ आइए। हुक़्मउदूली के नतीजों की मिसालें अगर दस बरस में भी आप की आंखों के सामने से नहीं गुज़री हैं तो एक बार नज़रें घुमा कर देख लीजिए। फिर मत कहना कि पहले बताया नहीं।