सर्वजन पेंशन योजना
  • भारत में कसौटी पर चुनावी रेवड़ियां…!

    भोपाल। भारत में लोकतंत्र चाहे 75 साल का बूढ़ा हो गया हो किंतु इसके अपना चुनावी रेवड़ियां बांटने का फैसला बदला नहीं है, ...और भारत के वोटर...? वे तो इसी संस्कृति के आदी हो गए हैं। राजनीतिक दल व उसके नेता जनता के सामने लोकलुभावन वादों की सूची के साथ आते हैं और नतीजे आने के बाद यह विश्लेषण होने लगता है कि जीत-हार में किन वाद की क्या भूमिका रही। कर्नाटक जीत से उत्साहित कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में आगामी चुनाव से 6 महीने पहले ही एसे वादों की फेहरिस्त जारी कर दी है। दुविधा यह है...

  • 24 की जीत का माध्यम “साष्टांग राजनीति”…?

    भोपाल। “चौबीस की जंग” के फतेह करने के लिए इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक ऐसी नीति तैयार की है, जिसकी इजाद आजादी के बाद से लेकर अब तक किसी भी राजनीतिक दल या उसके नेता ने नहीं की थी, यह नीति है “साष्टांग दंडवत नीति”। मोदी चाहते हैं कि इस नीति से प्रतिपक्ष दल कुछ सीख ग्रहण करें और वह स्वयं मोदी जो आज देवी-देवताओं के या राष्ट्रीय धरोहरों के सामने कर रहे हैं, वही प्रतिपक्षी दल उनके (मोदी) सामने आकर करें और जहां तक प्रतिपक्षी दलों का सवाल है, वह मोदी की इस नीति का पालन...

  • आशियाना तो बच गया पर बस्ती बदरंग हो गयी हुजूर…!

    भोपाल। मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश की अवैध कालोनियों या कहे बस्तियो को वैध करके नगर विकास की गोदी में एक जारज को औरस बनाने का काम किया हैं। कहा जा सकता है की आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए ही यह राजनीतिक फैसला किया गया होगा। अन्यथा सैकड़ों सहकारी भवन समितियों के करता –धर्ताओं द्वारा हजारों लोगों से पैसा लेकर उनको भूमि का भाग भी नहीं दिया गया ! वहीं भ्रष्ट बिल्डरों द्वारा बिना नक्शा पास कराये बिना जल –बिजली और निकास का प्रविधान किए बिना ही । अब उनके पाप कर्मो को पुण्य का दर्जा मिल गया ! अब होगा...

  • संवैधानिक प्रमुख कौन… राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री…?

    भोपाल। आजादी के 75 साल बाद विश्व का सबसे अग्रणी 'लोकतंत्री देश' भारतवर्ष क्या आज भी 'लोकतंत्री देश'.... है? इस देश में क्या आज किसी भी क्षेत्र में प्रजातंत्र या लोकतंत्र के दर्शन होते हैं? जहां प्रजा या लोग नहीं बल्कि मुट्ठी भर राजनेता प्रजातंत्र के नाम पर छद्म तानाशाही चला रहे हो उस देश को प्रजातंत्री कैसे कहा जा सकता है? जहां चंद राजनेताओं ने स्वयं संवैधानिक प्रमुख के अधिकार हथिया लिया हो उस देश को संवैधानिक रूप से प्रजातंत्र कैसे कहा जा सकता है? ....जी हां... चर्चा यहां हमारे अपने भारत की ही कर रहा हूं जहां अब...

  • “घर का जोगी जोगड़ा…. आन गांव का सिद्ध”…?

    भोपाल। “घर का जोगी जोगड़ा.... आन गांव का सिद्ध”.... यह एक मालवी भाषा की प्रसिद्ध कहावत है जिसका भावार्थ है कि “किसी भी शख्स के अपने परिवार और गांव में इतनी कदर नहीं होती, जितनी कि बाहर वाले उसकी इज्जत करते हैं”, यह मालवीय कहावत आज हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी नरेंद्र भाई मोदी पर अक्षरश: सही साबित हो रही है, क्योंकि आज पूरी दुनिया मोदी जी को जगत प्रसिद्ध लोकप्रिय नेता मान चुकी है, जबकि हमारे अपने देश में उनकी ऐसी पहचान नहीं है, पिछले 9 साल से मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं और उनके प्रधानमंत्रीत्व काल का दूसरा...

  • धार्मिक आजादी पर अमेरिका ने साधा निशाना

    भोपाल। अकेले भारत में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में इन दिनों धर्म और राजनीति के घालमेल का दौर चल रहा है, कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने उपस्थित श्रोताओं से 'जय बजरंगबली' के नारे लगवाए, वहीं अब अमेरिका की एक ताजा रिपोर्ट सुर्खियों में है जिसमें भारत के साथ रूस चीन और सऊदी अरब के धार्मिक समुदायों को खुलेआम निशाना बनाने की बात कही गई है। रिपोर्ट में बाईडन प्रशासन ने कहा है कि रूस चीन भारत व सऊदी अरब सहित कई देशों की सरकारें खुलेआम धार्मिक समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाती...

  • ‘राज्यपाल’ विवाद : राजनीति ने संवैधानिक पद को बदनाम किया…?

    भोपाल। आज आजादी के 75 साल बाद देश के शिक्षित व जागरूक नागरिकों के दिल दिमाग में एक अहम सवाल बेचैनी पैदा कर रहा है और वह यह है कि क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की राजनीति की भावी पीढ़ी की सोच की कल्पना नहीं की थी या हमारी आज की पीढ़ी सोच के मामले में उस पीढ़ी से आगे निकल गई है, यह विचार आज हमारे मौजूदा संविधान को लेकर उठाया गया है, जिसमें सिर्फ विश्व को दिखावे भर के लिए देश का सर्वोच्च प्रशासक राष्ट्रपति जी को दिखाया गया है, जबकि वास्तव में आज राष्ट्रपति की नियुक्ति...

  • अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित संघ…?

    भोपाल । अपने आप को पूर्णता: स्वदेशी और हिंदूवादी बताने वाला संघ पिछले कुछ अर्से से अपने आप को उपेक्षित सा महसूस कर रहा है, क्योंकि पूरे देश की राजनीति नरेंद्र मोदी के आसपास ही केंद्रित हो गई है और हिंदूवादी सभी संगठन मोदी की निकटता में अपना उज्जवल भविष्य देखने लगे हैं, इसलिए संघ की पूछ परख कम हो गई है, स्वयं मोदी भी संघ को उतना महत्व देते नजर नहीं आते हैं जितना कि भाजपा का अन्य कोई वरिष्ठ नेता, इसलिए संघ को अब अटल-आडवाणी के कार्यकाल की याद सता रही है, कुल मिलाकर संघ को अब अपनी...

  • आज की राजनीति : ‘जहरीला सांप’ से ‘विषकन्या’ तक…?

    भोपाल। हमने एक वह जमाना देखा है, जब संसद में एक दूसरे की बखिया उधेड़ने वाले प्रतिपक्षी नेता राम मनोहर लोहिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू संसद से बाहर निकलते समय एक दूसरे के गले में हाथ डाले नजर आते थे, अर्थात वाणी की वैमनस्यता सदन में ही छोड़ कर आ जाते थे, किंतु आज शीर्ष राजनीति का स्तर काफी निम्न नजर आता है, संसद में उसी प्रतिपक्षी नेता की कुर्सी पर विराजित मौजूदा नेता चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री को "विषैला सर्प" बताते हैं और सत्तारूढ़ दल से जुड़े गुजरात के एक विधायक कांग्रेस की शीर्ष नेत्री को "विषकन्या"...

  • विपक्षी एकता मजबूरी या राष्ट्रहित का कदम…?

    मरता क्या नहीं करता...? भोपाल। यह एकदम सही है कि “इतिहास अपने आप को दोहराता है”, इसका एहसास आज देश की उस बुजुर्ग पीढ़ी को हो रहा है जो आजादी के बाद से अब तक का भारत के राजनीतिक घटनाक्रमों के चश्मदीद गवाह रहे हैं, क्योंकि आज देश में उसी राजनीतिक घटनाक्रमों की पुनरावृत्ति हो रही है, जो आज से करीब 50 साल पहले इंदिरा गांधी के शासनकाल में हुई थी, इंदिरा जी ने आपातकाल देश में घोषित करने के बाद जिस तानाशाही शासन के स्वरूप के दर्शन कराए थे, उससे आज प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी प्रेरणा ग्रहण कर प्रतिपक्ष...

  • राजनेताओं व दलों को आयकर से मुक्ति क्यों…?

    भारत में अरबपतियों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है, भारत में हमें जो विरासत में प्रजातंत्र मिला है उसका एक प्रमुख नारा सभी के बीच समान कानून, समान नीति और समान व्यवहार शैली है, फिर एक आम आदमी और एक नेता के बीच आयकर को लेकर भेदभाव क्यों? हर महीने अपना खून पसीना बहाकर 25-30 हजार वेतन के रूप में हासिल करने वाले से सख्ती से आयकर वसूला जाता है और यह कर नहीं अदा करने पर जेल भेजने तक की सजा दी जाती है, जबकि राजनेता और उनके राजनीतिक दल द्वारा अवैध तरीके से...

  • मुख्यमंत्री-राज्यपाल विवाद: संवैधानिक हस्तियों के बीच टकराव कितना सही…?

    भोपाल। भारत की आजादी के बाद लगभग दो दशक तक देश में कहीं भी मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच किसी तरह का विवाद पैदा नहीं हुआ था, उसका मुख्य कारण यह था कि राज्यपालों की नियुक्तियां राजनीतिक आधार पर नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के गुणों व योग्यता के आधार पर की जाती थी, किंतु उसके बाद जब से राज्यपालों की नियुक्ति में राजनीति संबंधित शख्स की विचारधारा और सत्तारूढ़ केंद्र के राजनीतिक दल को लाभ पहुंचाने की कसौटी पर मूल्यांकन होने लगा तब से इस महत्वपूर्ण संवैधानिक पद की गरिमा को काफी ठेस पहुंची है, आज देश के एक दर्जन से...

  • इस बीमारी का इलाज किसी के भी पास नहीं…?

    भोपाल। जब राजनीति में अपराधी होना एक “विशेष योग्यता” का दर्जा प्राप्त कर ले, हर तरह के अपराध में पारंगत शख्स को 'महान नेता' का तमगा दे दिया जाए, तो फिर ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग व सर्वोच्च न्यायालय भी क्या कर सकते हैं? कानून निर्मात्री संसद में जब आधे से अधिक सदस्य अपराधी हो जिनका संसद से अधिक समय न्यायालयों में गुजरता हो वे देश के भाग्य विधाता कैसे हो सकते हैं? भारत में पिछले 3 दशक में प्रजातंत्र से जन विश्वास कम होने का यह भी एक मुख्य कारण है। भारत की राजनीति में अपराधीकरण रोकने की चर्चा...

  • वादों में गुम प्रजातंत्र

    भोपाल। राष्ट्रकवि एवं फिल्मी गीतकार इंदीवर ने ये क्या खूब पंक्तियां लिखी है, हमें 15 अगस्त 1947 को वादों में लिपटी आजादी ही मिली। उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले से सपनों की कितनी ऊंची उड़ान भरी थी, क्या देश पर करीब 17 साल राज करने वाले पंडित नेहरू इतनी लंबी अवधि में भी स्वयं द्वारा निर्धारित ऊंचाई तक पहुंच पाए और उनके बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने भी लगभग 17 साल ही इस देश पर एकछत्र राज किया उन्होंने भी अपने पिताजी से कम ऊंचाई के सपने नहीं परोसे, किंतु क्या वे सपने भी...

  • अब बच्चे वही पढ़ेगे, जो राजनेता चाहेंगे…?

    भोपाल। अभी तक देश के विद्यालयों व महाविद्यालयों में वही पढ़ाया जाता रहा, जो शिक्षा पाठ्यक्रमों का अंग रहा, किंतु अब देश की नई पीढ़ी का भविष्य तय करने वाली शिक्षा को भी राजनीति का अंग बनाया जा रहा है और अब देश की भावी पीढ़ी वहीं पढ़-जान पाएगी, जो आज के राजनेता चाहेंगे, नई पीढ़ी को आजादी के बाद से अब तक के उन घटनाक्रमों के आवश्यक घटनाक्रमों से वंचित रखने की तैयारी कर ली गई है, जो देश के काले राजनीतिक इतिहास को समेटे हुए हैं और जिन से वह राजनीति जुड़ी है, जो आज देश की कर्णधार...

  • सरकार भाड़े…. राजनीति भाड़े…. राजनेता जलेबी झाड़े…?

    भोपाल । आजकल राजनीति में भी "आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया" का बोलबाला है, केंद्र से लेकर राज्य तक की लगभग सभी सरकारें इसी लीक पर चल रही है, आज यह सभी सरकारें ना राजनीतिक रूप से सुदृढ़ है और ना ही आर्थिक रूप से, हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट से जहां केंद्र सरकार के जीएसटी संग्रह में काफी इजाफा उजागर हुआ है, वही तिमाही में केंद्र की देनदारी में भी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है, यही स्थिति राज्य सरकारों की भी है, यदि हम हमारे मध्यप्रदेश की ही बात करें, तो हमारे इस चुनावी साल में सरकारी खर्च बढ़ने...

  • अगले चुनाव में मुख्य मुकाबला सोनिया-मोदी के बीच..!

    भोपाल। इन दिनों देश की समूची राजनीति सिर्फ और सिर्फ करीब एक साल बाद होने वाले आम चुनाव पर केंद्रीय है, अब हर राजनीतिक दल सब कुछ भूल कर फिर अगले चुनाव के बाद अपने भविष्य की चिंता से ग्रस्त है। अगले चुनाव के बाद सत्ता का सिंहासन हथियाने की यह स्पर्धा मुख्य रूप से देश पर राज कर रही भाजपा तथा मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस के बीच है और इसी वास्तविकता को समझकर देश के करीब-करीब सभी प्रतिपक्षी दलों ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री सोनिया गांधी को अपनी संयुक्त नेत्री मान लिया है, इसी से यह अभी से स्पष्ट...

  • प्रजातंत्र के तीनों अंग विलुप्ति के कगार पर…?

    यदि हम प्रजातंत्र के तीनों अंगों के परिपेक्ष में हमारे मौजूदा देश का ईमानदारी से विश्लेषण करें तो हमें ना तो यहां प्रजा स्वतंत्र दिखाई दे रही है और ना तंत्र। मुट्ठी भर राजनेताओं ने इस देश को अपने कब्जे में कर रखा है, जिनकी लोकतंत्र या प्रजातंत्र के प्रति कोई आस्था नहीं है, आज प्रजातंत्र के तीनों अंग अपनी-अपनी ढपली पर अपने-अपने राग अलाप रहे हैं और इनमें से दो अंगों कार्यपालिका और न्यायपालिका पर विधायिका अपना वर्चस्व स्थापित कर अपने कब्जे में रखना चाहती है, कार्यपालिका तो वैसे ही विधायिका के नियंत्रण में है और अब न्यायपालिका पर...

  • सवाल… राजनीतिक कब्र के दायरे का…?

    भोपाल। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्री भारत की राजनीति आज एक अजीब आत्मघाती मोड़ पर है और इस आत्मघाती मोड़ का सिरा कब्रिस्तान में खोजा जा रहा है, भारत में कब्रिस्तान की चर्चा छेड़ने वाला प्रमुख प्रतिपक्षी दल कांग्रेस है, जिसने पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी को राजनीतिक कब्र में दफनाने का नारा लगाया था...। अब अगले साल आम चुनाव के समय कौन किसकी कब्र खोद पाता है और उसमे किसे दफनाता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है किंतु आज देश के आम जागरूक व शिक्षित भारतवासी को आज की राजनीति के इस स्तर को देखकर काफी पीड़ा पहुंच...

  • संवैधानिक पद पर रहते गिरफ्तारी, क्या संविधान का अपमान नहीं…?

    भोपाल। अब इसे हमारे संविधान निर्माताओं की भूल कहा जाए या हमारी कानूनी गलती, कि पवित्र संविधान की कसम खाकर पद प्राप्त करने वाले हमारे आधुनिक भाग्यविधाता (नेता) संवैधानिक पद पर रहते जेल जा रहे हैं, क्या कोई ऐसी कानूनी प्रक्रिया या बंधन नहीं है कि इनकी गिरफ्तारी या जेल भेजे जाने से पूर्व इनसे संवैधानिक पदों से इस्तीफे ले लिए जाएं? क्या संविधान की शपथ लेकर जेल जाने वालों को अपराधी घोषित होते ही स्वत: अपने संवैधानिक पद से इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए। आज तो स्थिति यह है कि सत्येंद्र जैन जैसे ऐसे नेता है जो गिरफ्तारी के...

और लोड करें