ओमप्रकाश मेहता
मेरे इस कथन के एक नहीं अनेक सबूत है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण इंदिरा जी द्वारा आरोपित 19 महीने का आपातकाल है
जवाहरलाल नेहरू द्वारा लागू किए गए पंचशील सिद्धांतों में हमारे देश का मूल आधार हमारी धर्म निरपेक्षता रही है
आजादी के 75 साल में यह एक चौंकने वाला सवाल सामने आया है कि क्या हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति आस्था में कमी आती जा रही है?
बीबीसी द्वारा हाल ही में जारी की गई डॉक्यूमेंट्री का सवाल है मोदी सरकार ने तो उसके प्रसारित होते ही भारत में उस पर प्रतिबंध लगा दिया
विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री पेश कर यह खुलासा कर दिया कि यह डॉक्यूमेंट्री किसी बड़ी साजिश का छोटा सा हिस्सा है।
आज गंभीर चिंतन का समय है क्या आज का यह दिन देखने के लिए हमने अंग्रेजों को भगाकर आजादी हासिल की थी?
हमारे देश की देवभूमि उत्तराखंड इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही है, करोड़ों भारतीयों की धार्मिक भावना का यह केंद्र इन दिनों प्राकृतिक प्रकोप का केंद्र बिंदु बना हुआ है
क्या हमारे देश के मुख्य कर्णधारो ने कभी इस सच्चाई पर भी गौर किया कि बिना अधिकारिक या संवैधानिक विपक्ष के लोकतंत्र अधूरा है?
इन दिनों देश में गुजरात चुनाव का शोर है और गुजरात के चुनावी मंचों पर रामलीला मंचन।
जहां एक राज्य के चुनाव परिणाम देश की भावी राजनीति को प्रभावित करने जा रहे है, वहीं एक अदना सा नवजात राजनीतिक दल राष्ट्रीय परिदृष्य में अपनी उपस्थिति की परिकल्पना कर रहा है।
कुदरत का यह नियम अब भारतीय राजनीति में लागू हो रहा है, जिसमें कहा गया है कि ‘जो जन्मदाता होता है, वहीं मानव जीवन का अंतिम सत्य होता है।’
अब देश में न तो संविधान सर्वोपरी रहा है और न ही राजनीति के माध्यम से जनसेवा अब सबसे सर्वोपरी हो गया है चुनावी जीतना
हाँ…. तो मूल चर्चा का विषय आज संवैधानिक मर्यादा है, प्रजातंत्र की मूल परिभाषा-‘‘जनता की, जनता के लिए और जनता के द्वारा सरकार’’ है
राष्ट्रीय पटल से अब धीरे-धीरे विलोपित होती जा रही कांग्रेस अब राज्यों की ओर मुखातिब हो गई है?
आज देश के बीस राज्य कर्ज के बोझ से कराह रहे है, जिनमें हमारा अपना मध्यप्रदेश भी शामिल है, जिस पर दो लाख पिंचान्वे हजार करोड का कर्ज है