सर्वजन पेंशन योजना
जिसकी केंद्र में सरकार उसी का अब लोकतंत्र…?

मेरे इस कथन के एक नहीं अनेक सबूत है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण इंदिरा जी द्वारा आरोपित 19 महीने का आपातकाल है

हमारी जग में यह पहचान, हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान….!

जवाहरलाल नेहरू द्वारा लागू किए गए पंचशील सिद्धांतों में हमारे देश का मूल आधार हमारी धर्म निरपेक्षता रही है

क्या लोकतांत्रिक आस्था में कमी आ रही है…?

आजादी के 75 साल में यह एक चौंकने वाला सवाल सामने आया है कि क्या हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति आस्था में कमी आती जा रही है?

डॉक्यूमेंट्री का खौफ या और कुछ….?

बीबीसी द्वारा हाल ही में जारी की गई डॉक्यूमेंट्री का सवाल है मोदी सरकार ने तो उसके प्रसारित होते ही भारत में उस पर प्रतिबंध लगा दिया

मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार सोची-समझी राजनीति का हिस्सा…

विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री पेश कर यह खुलासा कर दिया कि यह डॉक्यूमेंट्री किसी बड़ी साजिश का छोटा सा हिस्सा है।

आज की राजनीति: ‘लोकतंत्र’ से ‘लोक’ का ‘लोप’ सत्ता का उदय…?

आज गंभीर चिंतन का समय है क्या आज का यह दिन देखने के लिए हमने अंग्रेजों को भगाकर आजादी हासिल की थी?

पहाड़ों में दरार प्राकृतिक प्रकोप या हमारी भूल…?

हमारे देश की देवभूमि उत्तराखंड इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही है, करोड़ों भारतीयों की धार्मिक भावना का यह केंद्र इन दिनों प्राकृतिक प्रकोप का केंद्र बिंदु बना हुआ है

विपक्षहीन लोकतंत्र : निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय….

क्या हमारे देश के मुख्य कर्णधारो ने कभी इस सच्चाई पर भी गौर किया कि बिना अधिकारिक या संवैधानिक विपक्ष के लोकतंत्र अधूरा है?

गुजरात… मंच पर तीर-कमान और रावण…!

इन दिनों देश में गुजरात चुनाव का शोर है और गुजरात के चुनावी मंचों पर रामलीला मंचन।

गुजरातः चुनाव परिणाम राजनीति की नई दिशा तय करेगें….?

जहां एक राज्य के चुनाव परिणाम देश की भावी राजनीति को प्रभावित करने जा रहे है, वहीं एक अदना सा नवजात राजनीतिक दल राष्ट्रीय परिदृष्य में अपनी उपस्थिति की परिकल्पना कर रहा है।

अब काँग्रेस की जगह ‘आप’ ने ले ली…?

कुदरत का यह नियम अब भारतीय राजनीति में लागू हो रहा है, जिसमें कहा गया है कि ‘जो जन्मदाता होता है, वहीं मानव जीवन का अंतिम सत्य होता है।’

प्रस्तावित कानून को चुनावी मुद्दा बनाना कहाँ तक उचित…?

अब देश में न तो संविधान सर्वोपरी रहा है और न ही राजनीति के माध्यम से जनसेवा अब सबसे सर्वोपरी हो गया है चुनावी जीतना

क्या संवैधानिक संगठन अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघ रहे है….?

हाँ…. तो मूल चर्चा का विषय आज संवैधानिक मर्यादा है, प्रजातंत्र की मूल परिभाषा-‘‘जनता की, जनता के लिए और जनता के द्वारा सरकार’’ है

क्या पायलट का विमान भी भाजपा के विमानतल पर ‘लैण्ड’ करेगा…?

राष्ट्रीय पटल से अब धीरे-धीरे विलोपित होती जा रही कांग्रेस अब राज्यों की ओर मुखातिब हो गई है?

कर्ज में सरकारें…. अरबपति राजनीतिक दल….?

आज देश के बीस राज्य कर्ज के बोझ से कराह रहे है, जिनमें हमारा अपना मध्यप्रदेश भी शामिल है, जिस पर दो लाख पिंचान्वे हजार करोड का कर्ज है

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