भारत में कसौटी पर चुनावी रेवड़ियां…!
भोपाल। भारत में लोकतंत्र चाहे 75 साल का बूढ़ा हो गया हो किंतु इसके अपना चुनावी रेवड़ियां बांटने का फैसला बदला नहीं है, ...और भारत के वोटर...? वे तो इसी संस्कृति के आदी हो गए हैं। राजनीतिक दल व उसके नेता जनता के सामने लोकलुभावन वादों की सूची के साथ आते हैं और नतीजे आने के बाद यह विश्लेषण होने लगता है कि जीत-हार में किन वाद की क्या भूमिका रही। कर्नाटक जीत से उत्साहित कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में आगामी चुनाव से 6 महीने पहले ही एसे वादों की फेहरिस्त जारी कर दी है। दुविधा यह है...