भाजपा विरोधी पार्टियों को ‘संविधान खतरे में है’ का मुद्दा एक बार फिर मिल गया है और उन्होंने इसे जोर शोर से उठाना शुरू कर दिया है। संविधान को खतरे में बता कर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के कई नेताओं ने दावा किया था कि अगर चार सौ सीटें आ जाएंगी तो संविधान बदल दिया जाएगा। यह दावा करने वालों में उत्तर प्रदेश की फैजाबाद सीट के भाजपा सांसद लल्लू सिंह भी थे, जो समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद से हारे। उत्तर प्रदेश में संविधान का मुद्दा इतना बड़ा बना कि भाजपा साफ होते होते बची। पूरे देश में उसकी 60 सीटें कम हो गईं। एक बार कामयाबी चख लेने के बाद विपक्षी पार्टियों ने संविधान को मुद्दा बना लिया। राहुल गांधी हाथ में संविधान की कॉपी लेकर देश घूम रहे हैं। ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ रैली हो रही है। इस बीच संविधान की प्रस्तावना में से दो शब्द ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवादी’ हटाने के संघ के नंबर दो पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबाले के बयान से यह मुद्दा ज्यादा गरमा गया है।
ध्यान रहे चार महीने के भीतर बिहार विधानसभा का चुनाव होना है। ठीक 10 साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संविधान की समीक्षा का बयान दिया था, जिसका बहुत बड़ा मुद्दा बन गया था। उस समय नीतीश कुमार भाजपा से अलग थे और लालू प्रसाद की पार्टी राजद से मिल कर लड़ रहे थे। दोनों पिछड़ा मसीहा साथ थे को उन्होंने संविधान की समीक्षा की बात को आरक्षण खत्म करने से जोड़ दिया और बहुत प्रभावी तरीके से बिहार के चुनाव को अगड़ा बनाम पिछड़ा बना दिया। नतीजा यह हुआ है कि 2014 लोकसभा चुनाव की विशाल जीत के डेढ़ साल बाद ही भाजपा बिहार में बुरी तरह हारी। उसके गठबंधन को जबरदस्त हार मिली। अब फिर बिहार का चुनाव है और उससे पहले संविधान बदलने की बहस शुरू हो गई है।
सवाल है कि क्या संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय को संविधान की प्रस्तावना में बदलाव करने की बात की संवेदनशीलता का अंदाजा नहीं था या किसी योजना के तहत उन्होंने यह बात कही? उनके कहने के बाद केंद्रीय मंत्रियों शिवराज सिंह चौहान औरर जितेंद्र सिंह ने इसका समर्थन किया और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी प्रस्तावना बदलने की बात कही। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी कहा कि प्रस्तावना अपरिवर्तनीय था, जिसे इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी में बदला था। अब इस पर विचार होना चाहिए। इससे ऐसा लग रहा है कि संघ और भाजपा में इस बात पर एक राय है कि ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवादी’ प्रस्तावना से हटाया जाए। लेकिन विपक्ष इसी आधार पर संविधान बदलने का आरोप लगा रहा है। राहुल गांधी कह रहे हैं कि भाजपा को संविधान नहीं मनुस्मृति पसंद है। बिहार में राजद और कांग्रेस के नेता कसमें खा रहे हैं कि भाजपा को संविधान नहीं बदलने देंगे। आरोप लगाए जा रहे हैं कि संविधान बदल कर भाजपा दलितों, पिछड़ों, वंचितों के अधिकार छीन लेगी। लेकिन सवाल है कि क्या संविधान बदलने का मुद्दा फिर से राजनीतिक लाभ पहुंचा पाएगा? अगर बिहार की बात करें तो जब यह मुद्दा पूरे देश में चला तब भी बिहार में नहीं चला था। इसलिए काठ की हांडी दोबारा चढ़ेगी इसमें संदेह है।