Democracy

  • सच्चे संघवाद की समझ कब होगी?

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • लोकतंत्र का परिपक्व होना जरूरी!

    जनसंवाद के कई लाभ होते हैं। एक तो जनता की बात नेता तक पहुँचती है दूसरा ऐसे संवादों से जनता जागरूक होती है। अलबत्ता शासन में जो दल बैठा होता है वो कभी नहीं चाहता कि उसकी नीतियों पर खुली चर्चा हो। इससे माहौल बिगड़ने का खतरा रहता है। हर शासक यही चाहता है कि उसकी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर मतदाता के सामने पेश किया जाए। अभी आम चुनाव का पहला चरण ही पूरा हुआ है पर ऐसा नहीं लगता कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव जैसी कोई महत्वपूर्ण घटना घट रही है। चारों ओर एक अजीब सन्नाटा है।...

  • दुनिया सब देखती है

    बुनियादी सवाल यह है कि आज दुनिया को भारत में लोकतंत्र की हालत पर चिंता जताने का मौका क्यों मिल रहा है? भारत ने दुनिया में अपना जो सॉफ्ट पॉवर बनाया था, आज वह अपनी साख क्यों खोने लगा है?  यह निर्विवाद है कि हर देश किसी दूसरे देश की अंदरूनी हालत के बारे में टिप्पणी अपने भू-राजनीतिक हितों को ध्यान में रखकर ही करता है। इसलिए बहुत-से मामलों पर बहुत-से देश चुप रहते हैं या मद्धम टिप्पणी करते हैँ। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि बाकी दुनिया किसी देश के अंदर क्या हो रहा है, उससे नावाकिफ रहती...

  • गायब हो गई चमक

    सम्मेलन उस समय हुआ, जब फिलस्तीन में इजराइल के नरसंहार के पक्ष में खड़ा होकर अमेरिका ने अपने सॉफ्ट पॉवर को लहू-लुहान कर रखा है। दूसरी तरफ इस वर्ष ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति चुन लिए जाने की संभावना प्रबल होती जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद बड़े धूम-धाम से समिट ऑफ डेमोक्रेसीज- यानी लोकतांत्रिक देशों के सम्मेलन का आयोजन किया था। सबसे पहले इस सम्मेलन का विचार उन्होंने 2020 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान रखा था। तब अमेरिकी जनमत के एक बड़े हिस्से में आशंका पैदा हुई थी कि...

  • समस्या बहुत गंभीर है

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • ‘‘उलझी है सारी सियासत, चुनावी जाल में”…!

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • इंडोनेशिया के चुनाव में लोकतंत्र को खतरा?

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • क्यों लिबरल डेमोक्रेसी हर जगह संकट में?

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • लोकतंत्र के लिए अहम नया साल

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • चरमरा रहा है लोकतंत्र

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • भारत में कार्यपालिका की सर्वोच्चता

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • लोकतंत्र पर रोना/गाना हास्यास्पद है

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • लोकतंत्र के संकट के बीच नए अवसर भी मौजूद

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • अहिंसा लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत: सीएम योगी

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

  • लोकतंत्र…. विभत्स चेहरा: प्रजातंत्र के लिए ये ही दिन देखना शेष थे…?

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  • नागरिकों का प्रजा में बदल जाना

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  • लोकतंत्र का सच झूठ

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  • पाकिस्तान का फर्जी लोकतंत्र

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  • प्रजातंत्र में ‘बहुमत’ वरदान या अभिशाप…?

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  • आपातकाल को नहीं भुला सकते: पीएम मोदी

    लिबरल डेमोक्रेसी के पैरोकारों के लिए यह गंभीर आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए। उन्हें विचार इस सवाल पर करना चाहिए कि लिबरल डेमोक्रेसी जन आकांक्षाओं को पूरा करने में क्यों विफल रही, जिससे लोगों की निगाह में इसका आकर्षण घट गया है? जब कोई घटना इक्का-दुक्का ना रह कर व्यापक रूप से होती दिखे, तो फिर उसकी वजह को सतही तौर पर नहीं समझा जा सकता। ऐसी परिघटना को प्रेरित करने वाले कारणों की जड़ें कहीं गहरी होती हैं। आज की एक परिघटना यह है कि उदार लोकतंत्र दुनिया भर में कमजोर हो रहा है। इस घटनाक्रम पर नजर रखने...

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