Democracy
सपा अकेली पार्टी नहीं है, जिसे प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के नेता आतंकवादियों का सरपरस्त मानते हैं।
दुनिया के किन-किन देशों में कैसा-कैसा लोकतंत्र है, इसका सर्वेक्षण हर साल ब्लूमबर्ग नामक संस्था करती है। इस साल का उसका आकलन है कि दुनिया के 167 देशों में से सिर्फ 21 देशों को आप लोकतांत्रिक कह सकते है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार बड़े गर्व से बताया था कि वे गुजराती हैं और उनकी नस नस में बिजनेस है। सो, अब देश में हर चीज बिजनेस है।
भारत की राजधानी में हमारे गणतंत्र दिवस पर घटी इस घटना ने हमारे लोकतंत्र को दागदार बना दिया, वैसे इस वर्ष के दौरान ‘लोकतंत्र’ को बदनाम कर दागदार बनाने वाली तीन घटनाऐं हुई
2001 Parliament attack: 20 साल पहले, भारत के लोकतंत्र के मंदिर के परिसर में आतंकियों ने की थी घुसपैठ
एके47 राइफल, ग्रेनेड लांचर, पिस्टल और हथगोले लेकर आतंकवादियों ने संसद परिसर के चारों ओर तैनात सुरक्षा घेरा तोड़ दिया
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने विश्व लोकतंत्र सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन में दुनिया के लगभग 100 देशों ने भाग लिया लेकिन इसमें रुस, चीन, तुर्की, पाकिस्तान और म्यांमार जैसे कई देश गैर-हाजिर थे।
अमेरिका के न्योते के बावजूद पाकिस्तान लोकतंत्र सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ। चीन के दबाव में उसने इस सम्मेलन में शामिल होने से इनकार कर दिया।
अमेरिका में गुरुवार को दो दिन का लोकतंत्र सम्मेलन शुरू हुआ। पहले दिन राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में लोकतंत्र की स्थिति में गिरावट पर चिंता जताई।
चीन ने सिर्फ आर्थिक और सैनिक शक्ति से ही नहीं, बल्कि अब वैचारिक ताकत से भी अमेरिका को चुनौती देने की तैयारी कर ली है।
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों प्रस्तावित डेटा प्राइवेसी बिल का प्रारूप सार्वजनिक किया। उससे यह बेलाग सामने आया कि सरकार का मकसद सिर्फ प्राइवेट सेक्टर के लिए नियम तय करने का है।
कई विशेषज्ञ लोकतंत्र की परिभाषा विचार-विमर्श से शासन के रूप में करते हैँ। विचार-विमर्श में निहित है कि सरकार विपक्षी विचारों का सम्मान करेगी और अधिकतम सहमति बनाते हुए राजकाज चलाएगी।
राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र सरकार चाहती है कि तीन-चार बड़े पूंजीपतियों के हिसाब से देश चले लेकिन यह लोकतंत्र…
संविधान-दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह का कुछ विपक्षी दलों ने बहिष्कार क्यों किया, यह समझ में नहीं आता।
दुनिया भर के सभ्य और आधुनिक लोकतंत्र में सरकारें आम नागरिकों के लिए काम करती हैं, लेकिन भारत में इसका उलटा है।
अभी एक दशक पहले तक यह मान कर चला जाता था कि उदार लोकतंत्र दुनिया की सर्व मान्य व्यवस्था है। जिन देशों में इसका अभाव था, उनके बारे में समझा जाता था कि देर-सबेर वहां भी ये व्यवस्था कायम हो जाएगी।