संपादकीय
भारत ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है, जबकि जी-7 के देश उसे अपनी रणनीति में एक महत्त्वपूर्ण जगह देते हैं।
यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी देशों की रणनीति अगर कारगर नहीं हुई है, तो उसका बड़ा कारण रूस के पास मौजूद तेल की ताकत है।
गर्भावस्था की वजह से महिलाओं को जीवन में अवसरों से वंचित होते रहना पड़ा है। अगर समाज अब अपने को आधुनिक कहता है, तो उसे अपना यह नजरिया अवश्य ही बदलना चाहिए।
बीते कई महीनों से नेपाल महाशक्तियों- यानी अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता का एक रण क्षेत्र बना हुआ है।
भारत में प्रतीक और प्रतिनिधित्व की सियासत तो आजादी के ठीक बाद से ही शुरू हो गई थी, लेकिन 1990 के दशक में आकर यही मुख्यधारा बन गई।
उचित ही विश्लेषकों ने इसे फ्रांस में में सियासी भूचाल कहा है। संसदीय चुनाव के नतीजों का असल मतलब यही है। इस चुनाव में असली विजेता धुर वाम और धुर दक्षिणपंथी पार्टियां रहीं।
कानून के राज और मर्यादाओं की सर्वोच्चता को समाज के सभ्य होने या बने रहने के लिए अनिवार्य समझा जाता है। आज भारत में ये दोनों ही चीजें दुर्लभ होती जा रही हैँ।
अब यह कोई छिपी बात नहीं है कि चीन और रूस दुनिया में एक ऐसी धुरी बनाना चाहते हैं, जो अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे।
इस अनुभव के आधार पर यह साफ कहा जा सकता है कि जनता के रोजमर्रा के संघर्षों से राजनीतिक दलों का अब कोई नाता नहीं बचा है।
2019-20 में बेरोजगारी दर 4.8 थी। 2020-21 में यह गिर कर 4.2 पर आ गई थी। क्या सहज ही आपको इस बात पर यकीन होगा?
सरकार की अग्निपथ योजना से सचमुच देश में आग भड़क उठेगी, सत्ता में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को इसका अंदाजा नहीं रहा होगा।
भारत में दहेज के गैर-कानूनी घोषित हुए 60 साल से ज्यादा हो गए हैं। दहेज के लिए परेशान करना या पैसे मांगना कानूनन अपराध है।
महंगाई से फिलहाल राहत नहीं मिलने वाली है। इस हफ्ते थोक भाव सूचकांक (डब्लूपीआई) के जारी आंकड़े का यही संदेश है।
क्या इस योजना का परिणाम यह नहीं होगा कि अग्निवीरों के आगे का रास्ता अग्निपथ बन जाएगा?
यूक्रेन में रूसी सेना को मिली बड़ी कामयाबियों के बाद अब ऐसा लगता है कि अमेरिका में अपनी छवि बचाने की कोशिश शुरू हो गई है।