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जब हित मिलते ना हों

भारत-ईयू के बीच फिलहाल सबसे विवादास्पद मुद्दा ईयू का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म है। इसके तहत जनवरी 2026 से दूसरे देशों से ईयू आने वाले कुछ उत्पादों पर कार्बन टैक्स लगेगा। इन देशों में भारत भी शामिल है।

भारत और यूरोपियन यूनियन (ईयू) के आर्थिक हितों में समानता नहीं है, यह बात बार-बार जाहिर हुई है। लेकिन दोनों पक्षों की कूटनीतिक जरूरतें संभवतः अवश्य समान हैं। इसलिए दोनों पक्षों में बार-बार व्यापार समझौते पर वार्ता आयोजित की जाती है, हालांकि वह कहीं पहुंचती नहीं दिखती। वार्ता के ताजा संस्करण का हाल इससे अलग होगा, इसकी संभावना कम ही है। भारत सरकार के तीन मंत्री इस वार्ता में भाग लेने के लिए ब्रसेल्स पहुंचे। वहां भारत-ईयू व्यापार और तकनीक परिषद की बैठक शुरू हुई है। लेकिन यह आरंभ में ही स्पष्ट हो गया कि बैठक से बड़ी घोषणाओं की उम्मीद नहीं है। ईयू के एक नियम को लेकर दोनों पक्षों के बीच तनाव बरकरार है। इस परिषद की के गठन घोषणा 2022 में यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फोन डेय लायन की भारत यात्रा के दौरान हुई थी। फरवरी 2023 में आधिकारिक रूप से परिषद की स्थापना की गई और अब बेल्जियम में इसकी पहली शीर्ष बैठक आयोजित हुई है। परिषद का उद्देश्य भारत और ईयू के बीच व्यापार और तकनीक के क्षेत्रों में रणनीतिक संबंधों को मजबूत करना है।

भारत और ईयू के बीच इस समय सबसे विवादास्पद मुद्दा हाल ही में ईयू द्वारा मंजूर किया गया ईयू कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म है। इसके तहत जनवरी 2026 से दूसरे देशों से ईयू आने वाले कुछ उत्पादों पर कार्बन टैक्स लगेगा। यह टैक्स उन देशों के उत्पादों के आयात पर लगेगा, जहां उत्पादन मुख्य तौर पर कोयले से मिलने वाली ऊर्जा पर निर्भर है। इनमें भारत भी शामिल है। लिहाजा भारत से स्टील, एल्यूमीनियम, सीमेंट और खाद जैसे उत्पाद ईयू निर्यात करने वाली कंपनियों को यह कर भरना पड़ेगा। इससे ईयू में इन उत्पादों का दाम भी बढ़ जाएगा और उनके लिए दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो जाएगा। भारत ने कहा है कि यह टैक्स व्यापार के रास्ते में एक अवरोधक है। इससे विश्व व्यापार संगठनों के नियमों का उल्लंघन भी हो सकता है। मगर ईयू फिलहाल इस तर्क को स्वीकार करने को तैयार नहीं दिख रहा है। जाहिर है, दोनों पक्षों की समझ और हितों में टकराव बना हुआ है।

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By NI Editorial

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