सर्वजन पेंशन योजना
  • यूक्रेन का शुरू जवाबी हमला!

    यूक्रेन-रूस युद्ध में अहम मोड़ आया है। सोमवार पांच जून को यूक्रेन हमलावर हुआ। यूक्रेन ने जवाबी हमला शुरू किया। वैसे इस युद्ध को लेकर दुनिया ने, हम सबमें से अधिकांश ने तय कर लिया है कि वह किसके साथ है (हालाँकि भारत अब तक तय नहीं कर पाया है!)।को युद्ध के बारे में जानने-समझने वालों में एक वर्ग के लिए पांच जून जोश का दिन था। नहीं, मैं मजाक नहीं कर रही हूँ। यह खबर फ़्लैश होते ही कि यूक्रेन का जवाबी हमला शुरू हुआ है, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में मानों रोमांच की एक लहर सी दौड़ गई। रूस-यूक्रेन युद्ध...

  • कांग्रेस लौटी धर्मनिरपेक्षता के एजेंडे में!

    कांग्रेस पार्टी धर्मनिरपेक्षता के मसले पर दुविधा में थी। आजादी के बाद से वह जिस किस्म की धर्मनिरपेक्षता की प्रैक्टिस कर रही थी उसे लेकर वह संशय में थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद उसका विश्लेषण करने के लिए एके एंटनी की अध्यक्षता में जो कमेटी बनी थी उसकी रिपोर्ट ने कांग्रेस को बदलने का रास्ता दिखाया था। एंटनी कमेटी ने कहा था कि कांग्रेस का मुस्लिमपरस्त दिखना या उस रूप में ब्रांड होना पार्टी के लिए घातक हो गया। उसके बाद ही राहुल को मोदी और कांग्रेस को भाजपा बनाने का अभियान शुरू हुआ था।...

  • भागलपुर का पुल

    जब हादसा होता है, तो कुछ दिन तक मीडिया में उसकी चर्चा रहती है और लोग भी उस पर बातें करते हैं। हर ऐसी बड़ी घटना पर जांच का एलान किया जाता है। फिर धीरे-धीरे सब कुछ ‘सामान्य’ हो जाता है। बिहार के भागलपुर में गंगा नदी पर बन रहे पुल के गिरने का वीडियो दुनिया भर में चर्चित हुआ है। चूंकि ऐसे विजुअल कम ही मिलते हैं, इसलिए मेनस्ट्रीम से लेकर सोशल मीडिया तक पर लोगों ने इसे खूब देखा। और चूंकि यह घटना ओडिशा के बालासोर में हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना से बने माहौल के बीच हुई, तो...

  • भारत आकर क्यों घिरे?

    इल्जाम है कि पिछले हफ्ते हुई भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री दहल ने नेपाल को पूरी तरह भारत पर निर्भर बना दिया। जबकि इस यात्रा के दौरान नेपाल को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ। नेपाल के विपक्षी दलों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को घेरने में जुट गया है। उनका इल्जाम है कि पिछले हफ्ते हुई भारत यात्रा के दौरान दहल ने नेपाल को पूरी तरह ‘भारत पर निर्भर’ बना दिया। इस यात्रा के दौरान नेपाल को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ। कहा गया है कि दहल सीमा विवाद, विमान रूट,...

  • हादसों से सबक नहीं लेतीं सरकारें

    ओडिशा के बालासोर में भयंकर ट्रेन हादसे के बाद घनघोर शोक और निराशा के समय में भी एक समूह ऐसा है, जो यह समझाने में लगा है कि ट्रेन हादसे पहले भी होते थे और अब प्रति लाख किलोमीटर की यात्रा में हादसों की संख्या पहले से बहुत कम हो गई है। इस तरह के किसी भी आंकड़े पर संशय नहीं किया जा सकता है। लेकिन क्या इससे ऐसा नहीं लगता है कि यह जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का एक मजबूत आधार तैयार करने की कोशिश है? यह भी सही है कि किसी का इस्तीफा लेने से मरने वालों का...

  • मौसम डरावना, धान संकट में!

    मई में खूब पानी बरसा, आंधी चली और बिजली चमकी। मौसम जितना सुहाना था उतना ही मनमौजी भी। गर्मी का मौसम बरसात के मानिंद लग रहा था और दिल्ली, लन्दन जैसा। श्रीनगर में मई में अक्टूबर का आभास हो रहा था। आकाश में बादल थे, आसमान का रंग धूसर था और लोग फिरन, पश्मीना और गर्म पानी की बोतलों का इस्तेमाल कर रहे थे। ये बेमौसम का सुहाना मौसम, दरअसल, डरावना है और हमें बताता है कि ग्लोबल वार्मिंग कितना गंभीर रूप अख्तियार कर चुकी है। ऐसा बताया जा रहा है कि जून में जलाने वाली गर्मी पड़ेगी। इस बेमौसमी...

  • रेल दुर्घटनाः जवाबदेही है ही नहीं!

    बालासोर ट्रेन हादसे के लिए आखिर कोई तो उत्तरदायी होगा? लेकिन वर्तमान सरकार के तहत उत्तरदायित्व एक अप्रचलित शब्द है। सरकार ने जो किया है, भले के लिए किया होगा- यह इस बात को मान कर चलने का दौर है! ओडिशा के बालासोर में हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना की जांच सीबीआई को सौंपने की खबर अगर बहुत से लोगों के गले नहीं उतरी है, तो उसका कारण है। सीबीआई अपराधों की जांच करने वाली एजेंसी है। तो क्या सरकार को कहीं से इस बात के संकेत मिले हैं कि इस दुर्घटना के पीछे तोड़फोड़ हुई हो सकती है? जबकि रेलवे...

  • नीतिगत अस्थिरता ठीक नहीं

    अब सौर पैनलों पर टैक्स घटा, तो चीन से ही आयात बढ़ेगा। इससे भारत के बारे में क्या धारणा बनेगी? इसीलिए अपेक्षित यह है कि कोई कदम सभी पहलुओं पर पूरे विचार-विमर्श के बाद ही उठाया जाए।  एक खबर के मुताबिक भारत सरकार अब चीन से सौर पैनलों के आयात पर टैक्स घटाने पर विचार कर रही है। जबकि इसके पहले भारत ने चीन से आयात कम करने के लिए सौर पैनलों पर 40 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाया था। सवाल है कि जब यह फैसला लिया गया, उसके बाद स्थिति में ऐसा क्या बदलाव आ गया है? एक विदेशी एजेंसी...

  • तियानमेन नरसंहार की जिंदा है याद!

    बीजिंग के तियानमेन चौक के नरसंहार को 34 साल हो गए हैं। चार जून 1989 को हुए उस बेरहम दमन ने पूरी दुनिया को स्तंभित कर दिया था। तब का एक फोटो, जिसमें अपने हाथों में दो शॉपिंग बैग लिए एक अकेला निहत्था आदमी भीमकाय टैंकों की लम्बी लाइन के सामने डटा हुआ है, सत्ता के प्रतिरोध का सिम्बल बना था। तबसे ही तियानमेन नरसंहार चीन में संवेदनशील और विवादस्पद मुद्दा है। चीन ने इस घटना को अपने देश के लोगों की यादों से गायब करने के भरपूर प्रयास किये हैं। नंबर 64 (जैसा कि इस घटना को कहा जाता...

  • सरकार की यह कैसी नैतिकता?

    पहलवान यौन उत्पीड़न का मामला सियासत का नहीं है। यह एक के जघन्य अपराध का मामला है। इस तरह इस मामले में जिन पर भी आंच आई है, उनकी नैतिक साख का क्षरण लाजिमी है। यह बात बेहिचक कही जा सकती है कि नरेंद्र मोदी के बतौर प्रधानमंत्री नौ साल के कार्यकाल में उनकी सरकार की नैतिक साख का जितना क्षरण पहलवान यौन उत्पीड़न मामले में हुआ है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। इस दौरान राफेल और अडानी जैसे मामलों में सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। चीन से विवाद के क्रम में सरकार की नाकामियां खूब चर्चित हुईं।...

  • भारत-चीनः सूचना आवाजाही पर रोक

    भारत का चीन के खिलाफ प्रभावी कदम उठाना सही रास्ता होगा। लेकिन यह कदम दोनों तरफ सूचनाओं का अंधकार कर देना कतई नहीं हो सकता। इसलिए चीन और भारत दोनों को इस मामले में तुरंत पुनर्विचार करना चाहिए। कहा जाता है कि कूटनीति की जरूरत वहां अधिक होती है, जहां रिश्ते अच्छे ना हों। इसी तरह उस पक्ष के बारे में जानना ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है, जिससे किसी देश के हितों को नुकसान पहुंचने की ज्यादा आशंका हो। लंबे समय से बनी और समय की कसौटी पर खरी उतरी इस समझ की रोशनी में देखें, तो यह खबर गहरी चिंता...

  • पुतिन, जिनफिंग से पल्ला छूटा?

    यह हेडिंग कूटनीति के मिजाज में सही नहीं है। एक सियासी शीषर्क है। मगर भारत की विदेश नीति की हाल में जो नई दिशा बनी है वह वैश्विक मायने वाली है। पहले जापान, ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री मोदी की पश्चिमी नेताओं के साथ गलबहियां हुईं! फिर इस सप्ताह चीन की छत्रछाया के शंघाई सहयोग संगठन की दिल्ली शिखर बैठक को भारत ने रद्द किया। अचानक सब तैयारियों, न्योता देने के बाद भारत ने जुलाई में पुतिन और शी जिनफिंग, शहबाज शरीफ आदि की प्रत्यक्ष मेजबानी से किनारा काटा। सभी नेताओं की प्रत्यक्ष उपस्थिति की बजाय तीन-चार घंटों की मोदी की अध्यक्षता...

  • मोदी हों या राहुल, सबका मक्का अमेरिका-लंदन!

    यह सच्चाई है। तभी आजाद भारत की मनोदशा का यह नंबर एक छल है कि हम रमते हैं पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति में लेकिन तराना होता है हिंदी-चीनी भाई-भाई या रूस-भारत भाई-भाई। यों आजाद भारत का पूरा सफर दोहरे चरित्र व पाखंडों से भरा पड़ा है लेकिन भारत की विदेश नीति में जितना पाखंड, दिखावा और विश्वगुरू बनने की जुमलेबाजी हुई वह रिकार्ड है। मैंने अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले, शीतयु्द्ध के पीक वक्त में अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर लिखना शुरू किया था। तब से आज तक वैश्विक मामलों में भारत की विदेश नीति के दिखावे और हकीकत, झूठ और सत्य के...

  • उत्तर कोरिया जब चाहे बढ़ा देगा घबराहट!

    अभी एक दिन पहले, चीखते सायरनों की आवाज़ से दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल के रहवासियों की देर रात नींद टूटी। लोगों से कहा जा रहा था कि वे सुरक्षित जगहों पर चले जाएं। अफरातफरी और अराजकता का माहौल बन गया। सरकार ने यह चेतावनी इसलिए जारी की थी क्योंकि उत्तर कोरिया में सेटेलाइट छोड़ने की तैयारी की भनक लगी थी। फिर पता चला कि उसकी कोशिश असफल हुई है। इसके बाद चेतावनी वापस ले ली गई और लोगों से कहा गया कि वे अपने रोज़मर्रा के काम शुरू कर सकते हैं। परन्तु इसके बाद भी लोगों में घबड़ाहट कम...

  • मोदी को वोट के मूड का आधार क्या?

    केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के मौके पर कई तरह के सर्वेक्षण हुए, जिनसे मोदी सरकार की लोकप्रियता बरकरार रहने का निष्कर्ष जाहिर हुआ। यह भी बताया गया कि प्रधानमंत्री के लिए मोदी सबसे ज्यादा लोगों की पसंद हैं और अगर आज चुनाव हो तो उनको पिछली बार से कुछ ज्यादा वोट मिलेंगे। ध्यान रहे मोदी का लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा होने वाला है। उससे पहले यदि देश में यह राय है तो यह सरकार की बड़ी सफलता है। हालांकि इन सर्वेक्षणों की गुणवत्ता और वस्तुनिष्ठता को लेकर उठने वाले सवाल अपनी जगह हैं। यह...

  • भारत के लिए मौसम होगा बड़ी चुनौती

    एक ताजा शोध में कहा गया है कि अगर दुनिया का तापमान बढ़ता रहा, तो सबसे ज्यादा असर भारत पर होगा। इस शोध के मुताबिक तापमान में  2.7 डिग्री की वृद्धि का असर 60 करोड़ से ज्यादा भारतीयों पर पड़ेगा। भारत में असामान्य मौसम ही अब सामान्य बन चुका है। मई में जैसी बारिश इस बार हुई है, वह इसी बात की पुष्टि करती है। अब आपने वाले दिनों में कैसा मौसम होगा, इस बारे में भविष्यवाणी करना मुश्किल हो गया है। असल में जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ता तापमान पूरी दुनिया नए संकट पैदा कर रहा है। लेकिन...

  • बेरोजगारी है विकराल, गंभीर बने!

    भारत में बेरोजगारी असल समस्या का मुखौटा मात्र है। उस मुखौटे के पीछे अंडरइंपलॉयमेंट और परोक्ष बेरोजगारी का विशाल संकट है। जाहिर है, भारत के सामने एक एक दुश्चक्र में फंसने का खतरा है। भारत सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में वेतनभोगी महिला कर्मियों की संख्या दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। वैसे कुल मिला कर रोजगार की स्थिति भी चिंताजनक बनी हुई है, भले शहरों में युवा कर्मियों के लिए स्थिति कुछ बेहतर हुई हो। सावधिक श्रम शक्ति सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक (पीएलएफएस) की यह रिपोर्ट का संदेश यह है कि भारत...

  • एवरेस्ट भी जलवायु परिवर्तन का मारा!

    इंसान ने 70पहले दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर विजय पताका फहराई थी। लेकिन अब वहा भी जलवायु परिवर्तन का संकट है। गुजरे 60 वर्षों में एवरेस्ट के चारों तरफ मौजूद 79 ग्लेशियरों की मोटाई 100 मीटर घट चुकी है। climate-change:इस हफ्ते दुनिया ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर इनसान के पहुंचने की 70वीं सालगिरह मनाई। न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाल के तेंजिंग नोर्गे 29 मई 1953 को ऐसे पहले मनुष्य बने थे, जिन्होंने दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने का गौरव प्राप्त किया था। लेकिन 70वीं सालगिरह पर लोगों ने जितना गर्व महसूस किया, उतनी...

  • भारत असेंबलिंग करेगा या उत्पादन?

    रघुराम राजन ने उचित ही बनाई गई धारणाओं को लेकर आगाह किया है। उन्होंने कहा है कि असल में भारत उत्पादन के बजाय असेंबलिंग का केंद्र बनकर उभरा है। मोबाइल कंपनियां बाहर से पाट-पुर्जे लाकर यहां उन्हें असेंबल कर रही हैँ। भारत में इस बात पर सुखबोध का माहौल है कि देश तेजी से मोबाइल फोन के निर्यात का केंद्र बनता जा रहा है। इसे केंद्र सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) योजना की एक बड़ी सफलता के रूप में पेश किया गया है। हालांकि इस दावे पर पहले भी कई हलकों से सवाल उठाए गए हैं, लेकिन अब भारतीय...

  • एमपी, एमएलए की ऐसे सदस्यता जाने लगी तो आगे क्या?

    समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान की हेट स्पीच मामले में रिहाई ने विधायकों, सांसदों की आनन-फानन में सदस्यता समाप्त करने, उनकी सीटों को खाली घोषित करने और उपचुनाव कराने की जल्दी पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। इस बारे में विधानमंडल और संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों के साथ साथ चुनाव आयोग को भी गंभीरता से विचार करना चाहिए। निश्चित रूप से देश की सर्वोच्च अदालत को भी अपने 2013 के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। क्योंकि इस पर अमल करने से ऐसी गलतियां होने की संभावना है, जिनका सुधार संभव ही नहीं है। आजम खान...

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