• अमेरिका सचमुच गंभीर है

    साफ है कि अमेरिका पन्नूं मामले की तह तक जाने को लेकर अडिग है। भारत भी इस मामले में अमेरिका को संभवतः वैसी चुनौती नहीं देना चाहता, जैसा उसने कनाडा के मामले किया था। ऐसे में अब सब कुछ भारतीय जांच की रिपोर्ट पर निर्भर है। खालिस्तानी कार्यकर्ता गुरपतवंत सिंह पन्नूं की हत्या की कथित कोशिश के मामले में अमेरिका भारत के प्रति कोई रियायत बरतने के मूड में नहीं दिखता। लगभग रोजमर्रा के स्तर पर वहां के सरकारी अधिकारी या प्रवक्ता ऐसे बयान दे रहे हैं, जिनका सार यह होता है कि अमेरिका इस मामले में दबाव बनाए हुए...

  • क्यों बेलगाम हैं अपराध?

    यह सिर्फ अवधारणा नियंत्रण की भाजपा की ताकत है, जिस कारण उलटी हकीकत के बावजूद इस पार्टी की सरकारें बेहतर कानून-व्यवस्था के दावे को अपना कथित यूएसपी बनाए रख पाती हैँ। वरना, हकीकत बिल्कुल ऐसे दावों के विपरीत है। हत्या, लूट, बलात्कार, साइबर क्राइम- इन सभी अपराधों में लगातार इजाफा होने का सिलसिला थम नहीं रहा है। यह सिर्फ अवधारणा नियंत्रण की भारतीय जनता पार्टी की ताकत है, जिस कारण उलटी हकीकत के बावजूद इस पार्टी की सरकारें बेहतर कानून-व्यवस्था के दावे को अपना कथित यूएसपी बनाए रख पाती हैँ। जबकि खुद सरकारी आंकड़े ऐसे दावों की पोल खोलते हैं।...

  • उत्तर-दक्षिणः विवेकहीन विवाद

    सेंतिलकुमार ने बाद में माफी मांग ली, लेकिन उनकी जैसी सोच वाले लोगों को यह भी बताना चाहिए कि जब डीएमके अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में शामिल हुई थी, तब क्या उसने ऐसा “गौ मूत्र” को अपना कर किया था? जो (कु)तर्क रविवार शाम से सोशल मीडिया पर बहुचर्चित है, डीएमके के नेता डीएनवी सेंतिलकुमार ने उसे संसद में कह दिया। (कु)तर्क यह है कि दक्षिण भारत प्रगतिशील और विकसित है, इसलिए वहां भारतीय जनता पार्टी चुनाव नहीं जीत पाती। जबकि उत्तर भारत “गोबर पट्टी” या “गौ मूत्र प्रदेश” है, इसलिए वह हिंदुत्ववादी भाजपा का गढ़ बना हुआ है। यह...

  • ईवीएम का विवादित मसला

    अगर ईवीएम अविश्वसनीय हैं, तो फिर कांग्रेस या संपूर्ण विपक्ष को इस मुद्दे को एक संगठित ढंग से उठाना चाहिए। साथ ही इन दलों को यह कहना चाहिए कि वे चुनाव में भाग तभी लेंगे, जब इन्हें विश्वसनीय विधि से कराया जाएगा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को दो बड़े नेताओं- दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने जो कहा है, उसका संकेत है कि वे राज्य में अपनी पार्टी की हुई हार को स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने साफ कहा है कि उन्हें ईवीएम पर भरोसा नहीं है। इसके पहले जब एक एग्जिट पोल में भाजपा को...

  • ऊबे मतदाताओं का जनादेश

    लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाता अक्सर हर उस नई शक्ति को मौका देने का जोखिम उठाते हैं, जिसमें उन्हें संभावना नजर आती है। दूसरी तरफ अगर राजनीतिक दल और नेता लगातार अपना पुनर्आविष्कार ना करते रहें, तो वे लोगों में एक ऊब पैदा कर देते हैं। छत्तीस वर्ष पहले पूर्ण राज्य बनने के बाद से मिजोरम ने अब तक दो पार्टियों- कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट- का राज ही देखा था। इस पूरे दौर में दो नेता- ललथनहवला और जोरामथंगा- ही वहां की सियासत पर छाये रहे। इस गतिरुद्धता से ऊबे मिजोरम के मतदाताओं ने अब इन दोनों ही पार्टियों को...

  • इंडिया गठबंधन का संकट

    विधानसभा चुनावों के दौर में ऐसा लगा कि इंडिया एलायंस को एक तरह से अवकाश पर भेज दिया गया है। अब जबकि उसे छुट्टी से वापस बुलाया जा रहा है, तो वह चोटिल अवस्था में है। इसका असर आज गठबंधन की बैठक में दिखेगा। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन को ठेंगे पर रखा। तो अब बारी उसकी कीमत चुकाने की है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद हवा में उछल रही कांग्रेस की गणना संभवतः यह थी कि पांच विधानसभा के चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन करने के बाद उसकी हैसियत इतनी बढ़...

  • कॉप समिट का क्या अर्थ?

    यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठा है कि जब मेजबान देश ही जलवायु सम्मेलन का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन रोकने के मकसद के खिलाफ कर रहा हो, तो फिर ऐसे आयोजन की क्या प्रासंगकिता रह जाती है? जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की कॉप (कॉन्फरेंस ऑफ पार्टीज) प्रक्रिया की प्रासंगिकता पर अब वाजिब सवाल उठ रहे हैँ। फिलहाल इस प्रक्रिया के तहत 28वां सम्मेलन संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में हो रहा है। वैसे भी पिछले 27 सम्मेलनों में यह प्रक्रिया ज्यादा कुछ हासिल करने में नाकाम रही। लेकिन तब कम-से-कम इतना होता था कि जलवायु परिवर्तन के खतरों को...

  • आज का सामाजिक सच

    ओबीसी अस्मिता का उभार अब गुजरे जमाने की बात हो चुका है। इस बीच खुद ओबीसी के अंदर विभिन्न जातीय अंतर्विरोध तीखा रूप ले चुके हैं। दूसरी तरफ ओबीसी अस्मिता का दलित-आदिवासी समूहों के साथ टकराव खड़ा हुआ है। तीन हिंदी भाषी राज्यों के चुनाव नतीजों से साफ है कि जातीय अस्मिता को अपनी चुनावी रणनीति का आधार बनाने की कांग्रेस की रणनीति उसे बहुत महंगी पड़ी। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह रणनीति आज की सामाजिक हकीकत की नासमझी पर आधारित है। इसमें इस समझ का अभाव है कि 1990 के दशक में हुआ ओबीसी अस्मिता का उभार अब गुजरे...

  • विपक्ष के लिए विचारणीय

    बेशक, आज भाजपा के पास अकूत संसाधन हैं। लेकिन उसकी जीत का सिर्फ यही कारण नहीं है। बल्कि वह अपनी हिंदुत्व की राजनीति के पक्ष में इतनी ठोस गोलबंदी कर चुकी है कि चुनावों में उसे परास्त करना अति कठिन हो गया है। चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों का केंद्रीय संदेश यह है कि विपक्ष के पास भारतीय जनता पार्टी की राजनीति की कोई काट नहीं है। तेलंगाना का नतीजा अपवाद है- इसलिए कि वहां सत्ता एक गैर-भाजपा पार्टी के हाथ से निकल कर दूसरी गैर-भाजपा पार्टी के हाथ में गई है। इससे राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा को...

  • कांग्रेस का आत्मघाती कार्ड

    समय के चक्र को पीछे लौटा कर सियासी चमत्कार कर दिखाने की सोच असल में समझ के दिवालियेपन का संकेत देती है। इस प्रयास में कांग्रेस ने सबकी पार्टी होने की अपनी विशिष्ट पहचान को संदिग्ध बना दिया है। चूंकि विचारधारा और जन-गोलबंदी के मोर्चों पर कांग्रेस नेतृत्व दीर्घकालिक रणनीति के जरिए राजनीति की नई समझ बनाने में विफल है, इसलिए अक्सर वह चुनाव जीतने के ऐसे टोना-टोटकों करने में लग जाता है, जिनके सफल होने की कोई गुंजाइश नहीं होती। हाल में उसने जातीय जनगणना और अस्मिता की राजनीति के ऐसे टोटके अपनाए हैँ। इसके पीछे सोच संभवतः यह...

  • गंभीर आरोप, चिंताजनक

    अब कनाडा की तरह अमेरिका आरोप लगा रहा है लेकिन इस पर भारत की प्रतिक्रिया वैसी नहीं है, जैसी कनाडा के आरोपों पर थी। तभी यह चिंता की बात लगती है क्योंकि इस तरह की घटनाओं और आरोपों से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की एक सभ्य, उदार और लोकतांत्रिक देश की छवि प्रभावित होती है। खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश में अमेरिका द्वारा भारत के एक अधिकारी के शामिल होने का आरोप लगाना सचमुच गंभीर चिंता विषय है। अमेरिका के आरोपों पर पहली प्रतिक्रिया में भारत ने कहा है कि यह ‘चिंता का विषय’ है...

  • समाप्त होगा यूक्रेन युद्ध?

    जेलेन्स्की की पार्टी के एक सांसद ने एक इंटरव्यू में कहा है कि मार्च-अप्रैल 2022 में यूक्रेन और रूस में इस शर्त पर युद्ध खत्म करने पर सहमति बन गई थी कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा। लेकिन तब पश्चिम ने यूक्रेन को रोक दिया। पश्चिमी मीडिया में छपी खबरों का संकेत है कि अमेरिका और उसके साथी देश अब यूक्रेन युद्ध से पीछा छुड़ाने जुट गए हैँ। अमेरिका में यह युद्ध इतना अलोकप्रिय हो चुका है कि रिपब्लिकन पार्टी खुलेआम यूक्रेन को कोई मदद देने का विरोध कर रही है। कांग्रेस में उसने इससे संबंधित प्रस्ताव को पारित...

  • न्यायपालिका के समक्ष चुनौतियां

    अगर मुकदमों का निपटारा समयबद्ध तरीके से नहीं होता है तो नागरिकों के अदालत का दरवाजा खटखटाने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अब भी लोग न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं। अकेले अक्टूबर के महीने में देश भर की अदालतों में 16 लाख से ज्यादा मामले पहुंचे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के जरिए जजों की बहाली का सुझाव दिया तो उनके सामने ही देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने नागरिकों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें न्यायालय का दरवाजा खटखटाने...

  • आयात आंकड़ों का अंतर

    साल 2016 में अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी की रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में टैक्स बचाने के लिए अंडर इनवॉयसिंग बड़े पैमाने पर होती है। जीएफआई ने अंडर इनवॉयसिंग और ओवर इनवॉयसिंग को काला धन का एक प्रमुख स्रोत बताया था। चीन से होने वाले आयात में कथित घपले का अंदेशा गहरा गया है। यह अंदेशा बीते कई वर्षों से जारी है। मुद्दा यह है कि चीन के सरकारी आंकड़ों में भारत को हुए निर्यात की जो मात्रा बताई जाती है, वह भारत सरकार के आयात आंकड़ों से काफी ज्यादा है। 2022 की तुलना में 2023 के...

  • भेदभाव का नायाब नमूना

    नोएडा में लड़कियां अब आठ बजे शाम के बाद क्लास ज्वाइन नहीं कर पा रही हैं। ऐसी रोक लगाते हुए इसे ध्यान में नहीं रखा गया है कि अनगिनत लड़कियां आर्थिक उपार्जन के लिए दिन भर कहीं काम करने के बाद शाम को क्लास ज्वाइन करती हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लगे उत्तर प्रदेश के नोएडा पुलिस ने अपनी सेफ सिटी प्रोजेक्ट के तहत लड़कियों/महिलाओं के खिलाफ भेदभाव भरा कदम उठाया है। यह पुलिस का अपने दायित्व से मुकरना भी है और महिलाओं को घर के दायरे में धकेलने की उसकी सोच को भी जाहिर करता है। इस परियोजना के...

  • ब्रह्म-वाक्य का प्रश्न नहीं

    निश्चित रूप से मीडिया जो कहता है या जो भंडाफोड़ करता है, वो ब्रह्म-वाक्य नहीं होते, जिन्हें हर हाल में स्वीकार कर लिया जाए। लेकिन उससे जो संदेह पैदा होता है, उससे संबंधित प्रकरण की निष्पक्ष और प्रभावी जांच के सूत्र अवश्य मिलते हैँ। अडानी समूह से संबंधित हिंडनबर्ग और मीडियाकर्मियों के समूह ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) की रिपोर्टों के बारे में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ये रिपोर्टें ब्रह्म-वाक्य नहीं हैं। ना ही किसी विदेशी वित्तीय अखबार में छपी रिपोर्ट ऐसा सच है, जिसे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को अनिवार्य रूप से...

  • भारत की ब्रिक्स दुविधा

    पाकिस्तान ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए अर्जी दे दी है। ब्रिक्स में परंपरा आम-सहमति से निर्णय लेने की है। ऐसे में भारत की अकेली असहमति भी पाकिस्तान की सदस्यता रोक सकती है। मगर ऐसा करते हुए भारत के अलग-थलग पड़ने का अंदेशा है। पाकिस्तान ने ब्रिक्स की सदस्यता लेने के लिए औपचारिक रूप से आवेदन कर दिया है। गौरतलब है कि इसका एलान सबसे पहले मास्को स्थित पाकिस्तानी राजदूत ने किया। खबरों के मुताबिक रूस पाकिस्तान को ब्रिक्स समूह में लाने का पूरा समर्थन कर रहा है। हाल में रूस और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक और राजनयिक संपर्क बढ़ा...

  • क्योंकि सवाल राजनीतिक है

    जो समस्या पैदा हुई है, उसका कारण संविधान की अस्पष्टता नहीं है। अगर केंद्र में सत्ताधारी पार्टी सर्वसत्तावादी महत्त्वाकांक्षाएं पाल ले, तो वे तमाम संवैधानिक प्रावधान महज कागज पर लिखी लकीर बन जाते हैं, जिनका मकसद व्यवस्था को नियंत्रित और संतुलित रखना है। विधेयकों को मंजूरी देने के मामले में राज्यपालों की अपेक्षित भूमिका के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है, उससे व्यवहार में कितना फर्क पड़ेगा, यह कहना मुश्किल है। कोर्ट इस बारे में संविधान के प्रावधान की उचित व्याख्या की है। लेकिन यह प्रावधान तो पहले से मौजूद है और उसमें कोई अस्पष्टता नहीं है। पंजाब...

  • डूबती उम्मीदों के बीच

    वाजिब आशंका है कि बचाव कार्य लंबा खिंचा, तो डूबती-उतराती उम्मीदों के बीच जी रहे मजदूर क्या तब तक अपना जीवन संघर्ष जारी रख पाएंगे। फिलहाल यह साफ है कि मीडिया में बनाया गया यह माहौल निराधार था कि अब कुछ घंटों का ही इंतजार बाकी है। उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के जल्द निकल आने की उम्मीदें अब कमजोर पड़ गई हैँ। इस कार्य के लिए ऑस्ट्रेलिया से बुलाए गए विशेषज्ञ ने तो इस कार्य के पूरा होने की समयसीमा क्रिसमस तक बढ़ा दी है। यानी पूरा एक महीना और। यह आशंका वाजिब है कि सचमुच...

  • पड़ोस नीति का पेच

    कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तरजीह राष्ट्र हित को दी जानी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई उभरती परिस्थितियों के कारण अफगानिस्तान एक ऐसा देश बना हुआ है, जहां भारत को लगातार अपना अधिकतम प्रभाव बनाए रखने की कोशिश में जुटे रहना चाहिए। नई दिल्ली स्थित अफगानिस्तान दूतावास के अधिकारी जब पिछले 30 सितंबर को यहां से चले गए, तब उसके बाद भारत सरकार के पास लगभग आठ हफ्तों का वक्त था, जिस दौरान वह देश में अफगानिस्तान की राजनयिक उपस्थिति को सुनिश्चित कर सकती थी। लेकिन अब यह साफ है कि ऐसा करने में भारत सरकार ने दिलचस्पी नहीं ली।...

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