संयुक्त बयान में कहीं उल्लेख नहीं किया गया कि भारत चर्चा का हिस्सा नहीं था। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अलग से बयान जारी कर चर्चा से भारत की अनुपस्थिति और संयुक्त बयान से भारत की असहमति की जानकारी दी।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भारत की असहजता बढ़ रही है, यह पहले से साफ था। दो साल पहले चीन की महत्त्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को पूर्ण समर्थन देने के मुद्दे पर भारत इसमें अकेला पड़ गया था। तब जारी साझा बयान में समर्थन देने वाले देशों का नाम लेकर जिक्र किया गया। तभी बाकी देशों ने संकेत दे दिया था कि जिन भू-राजनीतिक मुद्दों पर भारत से मतभेद हैं, उन पर भी बिना भारत का ख्याल किए वे आगे बढ़ेंगे।
उसके बाद हुई एससीओ शिखर बैठकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं गए। इस तरह भारत ने अपनी नुमाइंदगी का दर्जा घटा दिया। इस वर्ष शिखर सम्मेलन चीन में होने वाला है। वहां भी मोदी के जाने की संभावना कम ही है। उससे पहले ईरान पर इजराइली हमले और उस पर ईरान के जवाब के मामले में जो हुआ है, उसने अब तक कयासों के दायरे में चल रही बात को सामने ला दिया है। इस मामले पर शनिवार को एससीओ ने चर्चा की, जिसमें भारत शामिल नहीं हुआ। चर्चा के बाद एससीओ ने इजराइली हमलों की निंदा करते हुए संयुक्त वक्तव्य जारी किया। इसमें कहीं उल्लेख नहीं किया गया कि भारत चर्चा का हिस्सा नहीं था।
इस वक्तव्य के जारी होने के कुछ ही समय बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर चर्चा से भारत की अनुपस्थिति और संयुक्त बयान से भारत की असहमति की जानकारी दी। इससे यूरेशियन देशों के इस सुरक्षा संबंधी संवाद ढांचे की समझ एवं उद्देश्यों से भारत का अलगाव जग-जाहिर हो गया है। अनुमान लगाया जा सकता है कि इस घटनाक्रम का असर विकासशील देशों के उभरे दूसरे समूहों के साथ भारत के संबंधों पर भी पड़ेगा। वहां भारत की असहजता बढ़ेगी। इन समूहों में ब्रिक्स+ प्रमुख है। कहा जा सकता है कि विदेश नीति संबंधी भारत की वर्तमान प्राथमिकताओं का यह स्वाभाविक परिणाम है। अब देखने की बात यह होगी कि क्या इस अलगाव से पश्चिमी धुरी के साथ भारत की निकटता बढ़ाने में मदद मिलती है। हकीकत तो यही है कि दुनिया आज तेजी से इन्हीं दो धुरियों पर गोलबंद हो रही है।