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10-06-2025 Vol 19

सिस्टम ब्रेकडाउन की ओर?

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अमेरिका में बढ़ रहे ध्रुवीकरण और गहराते सामाजिक अविश्वास की चर्चा कई वर्षों से है। कई राजनेता और विशेषज्ञ इसको लेकर गृह युद्ध की आशंका जता चुके हैं। कैलिफोर्निया की घटनाएं उन आशंकाओं को और बल प्रदान कर रही हैं।

अमेरिका के कैलिफॉर्निया में भड़की नागरिक अशांति और उसको लेकर संघीय और राज्य प्रशासनों के बीच खड़ा हुआ टकराव अमेरिका के लिए अशुभ है। कुछ अमेरिकी संगठनों ने तो इसे नए ‘सिविल वॉर’ का पहला लक्षण बता दिया है। ताजा घटनाओं के क्रम में संघ, राज्य, और नगर प्रशासनों के अधिकार और कार्य क्षेत्रों को लेकर ऐसा विवाद उठा है, जिसे आम राय से हल करना फिलहाल तो नामुमकिन दिखता है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मुहिम के तहत संघीय एजेंसी आईसीई (इमिग्रेशन एंड कस्टम इन्फोर्समेंट) बिना राज्यों की इजाजत लिए कथित अवैध आप्रवासियों की पहचान कर उन्हें देश से निकाल रही है। कैलिफॉर्निया इलाकाई तौर पर मेक्सिको से जुड़ा राज्य है।

अमेरिका ने 1846-48 तक चले युद्ध के दौरान उसे मेक्सिको से छीन लिया था और 1850 में उसे अमेरिकी राज्य बनाया गया। इस इतिहास के कारण वहां मेक्सिको के लोगों का बिना कानूनी औपचारिकताएं पूरी किए आना-जाना आम चलन रहा है। ट्रंप प्रशासन इसे रोकने के प्रयास में है, जिस पर वहां विरोध भड़क उठा। इस क्रम में राज्य प्रशासन को बिना भरोसे में लिए आईसीई ने 40 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। ट्रंप ने आरोप लगाया कि राज्य के गवर्नर गेविन न्यूसम और लॉस एंजिल्स शहर की मेयर केरन बैस आंदोलनकारियों को भड़का रहे हैं। इसलिए उन्होंने केंद्रीय बल- नेशनल गार्ड्स को भेज दिया। न्यूसम और बैस के साथ-साथ पूर्व उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी इसे राज्य के अधिकार क्षेत्र में संघ का अनाधिकार दखल बताया है।

न्यूसम ने नेशनल गार्ड्स को तुरंत वापस बुलाने की मांग की है। इन गार्ड्स के खिलाफ नए सिरे से विरोध प्रदर्शन भड़क उठे हैं। ट्रंप ने उनका दमन करने के लिए विशेष सैन्य बल- मैरीन्स को सतर्क कर दिया है। इस तरह अमेरिका एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा है, जिसके परिणाम का अनुमान लगाना अभी कठिन है। अमेरिका में बढ़ रहे सामाजिक- राजनीतिक ध्रुवीकरण और गहराते सामाजिक अविश्वास की चर्चा कई वर्षों से है। कई राजनेता और विशेषज्ञ इसको लेकर गृह युद्ध होने की आशंका जता चुके हैं। कैलिफोर्निया की घटनाएं उन आशंकाओं को और बल प्रदान कर रही हैं।

NI Editorial

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