मणिपुर की ताजा अशांति बेहद चिंताजनक है। यह प्रदेश प्रशासन और केंद्र सरकार के सामने कठिन प्रश्न खड़ा करती है। उनमें सबसे अहम यह है कि क्या उन्होंने मान लिया है कि राज्य में फैला नासूर अब लाइलाज हो गया है?
मणिपुर फिर अशांत है। हर महीने- दो महीने पर हिंसा का नए सिरे भड़क उठना वहां सामान्य परिघटना बन गई है। मगर ताजा घटनाओं में कुछ खास चिंताजनक संकेत भी छिपे हैं। इस बार गड़बड़ी अरमबई तेंगोल नाम के संगठन के कार्यकर्ता कनन सिंह और उसके चार सहयोगियों की गिरफ्तारी के बाद शुरू हुई। ये देखना महत्त्वपूर्ण है कि ये संगठन, सिंह, और उसके अन्य सहयोगी कौन हैं। पुलिस के मुताबिक सिंह पूर्व कांस्टेबल है, जो 2023 में शुरू हुई हिंसा के समय उपरोक्त संगठन बनाने में शामिल हुआ था। तब से अरमबई तेंगोल भूमिगत रहते हुए अपनी गतिविधियां चला रहा है।
इस क्रम में इसने मैतेई समुदाय के अंदर कितना अधिक असर पैदा कर लिया है, उसका संकेत उसकी गिरफ्तारी के बाद पथराव, तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाओं से मिला है। इस संगठन ने इन गिरफ्तारियों के विरोध में मणिपुर में दस दिन के बंद का आह्वान किया, जिसका इम्फाल ईस्ट और वेस्ट, काकचिंग, थौबल और बिशुनपुर जिलों में खास प्रभाव देखने को मिला है। प्रशासन को वहां मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ी हैं। ताजा घटना ये संकेत देती है कि मणिपुर में दो वर्ष से जारी अशांति और अराजक स्थितियों के बीच भूमिगत गतिविधियों का दायरा पसरा है। कुकी बहुल पहाड़ी इलाकों से पहले ही ऐसी खबरें आ रही थीं। अब संकेत साफ है कि मणिपुर घाटी के मैतेई बहुल इलाकों में भी ऐसा हुआ है।
इन गतिविधियों का प्रभाव इस हद तक फैल गया है कि (एक भाजपा नेता के दावे के मुताबिक) खुद राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने स्वीकार किया है कि हाल में आई बाढ़ के दौरान ‘अरमबई तेंगोल ने प्रशासन का सहयोग किया।’ ऐसे संगठनों का असर बढ़ना प्रशासन में आम जन का विश्वास ना रहने का संकेत होता है। अगर अपना फर्ज़ निभाने के दौरान प्रशासन ऐसे संगठनों की मदद लेने लगे, तो उससे उसकी कमजोरियां जग-जाहिर होती हैं। इसीलिए ताजा घटनाएं राज्य प्रशासन और केंद्र के सामने कठिन प्रश्न खड़ा करती हैं। उनमें सबसे अहम यह है कि क्या उन्होंने मान लिया है कि मणिपुर का नासूर लाइलाज हो गया है?