नई दिल्ली। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने जस्टिस वर्मा को फटकार लगाई और उनके आचरण पर सवाल उठाए। अदालत ने उनकी पैरवी कर रहे वकील कपिल सिब्बल को भी कहा कि वे अदालत को कुछ बातें कहने के लिए मजबूर न करें। सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के आचरण पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनका व्यवहार भरोसे के लायक नहीं है और पूछा कि अगर उन्हें जांच समिति की प्रक्रिया पर ऐतराज था तो उन्होंने उसी वक्त उसे चुनौती क्यों नहीं दी। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि जस्टिस वर्मा को पहले ही सुप्रीम कोर्ट आना चाहिए था, न कि अब जब जांच समिति ने उन्हें दोषी पाया है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि महाभियोग संसद की प्रक्रिया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की ओर से महाभियोग की सिफारिश किया जाना गलत है। हालांकि अदालत का कहना है कि सुप्रीम कोर् की आंतरिक जांच समिति में अगर पुख्ता सबूत मिलते हैं तो चीफ जस्टिस को सिफारिश करने का अधिकार है। गौरतलब है कि जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी याचिका में आंतरिक जांच की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने की अपील की है। रिपोर्ट में घर में नकदी मिलने के मामले में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया है।
जस्टिस वर्मा ने 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने कहा था कि उनके आवास के बाहरी हिस्से में नकदी बरामद होने मात्र से यह साबित नहीं होता कि वे इसमें शामिल हैं, क्योंकि आंतरिक जांच समिति ने यह तय नहीं किया कि नकदी किसकी है या परिसर में कैसे मिली। उधर उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लोकसभा में डेढ़ सौ से ज्यादा सांसदों की ओर से दिया गया प्रस्ताव स्पीकर ने स्वीकार कर लिया है।