बाल ठाकरे का परिवार सिर्फ राजनीतिक स्तर पर ही नहीं बिखरा था, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर भी बिखर गया था। राजनीतिक कारणों से ही ऐसा हुआ था और अब राजनीतिक कारणों से ही परिवार की एकता भी बन रही है। पिछले दिनों उद्धव ठाकरे का 65वां जन्मदिन मनाया गया तो उसमें शामिल होने के लिए राज ठाकरे मातोश्री पहुंचे। वे छह साल के बाद मातोश्री गए थे। एक समय पूरा परिवार वही रहता था और मुंबई पर राज करता था। लेकिन उद्धव ठाकरे को शिव सेना की कमान देने के बाद सब बिखर गया। राज ठाकरे को मातोश्री जाने के बाद माना जा रहा है कि इससे राजनीतिक एकता और मजबूत होगी।
ध्यान रहे अगले कुछ दिन में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं। बरसात का मौसम खत्म होते ही चुनावों की घोषणा होगी। अक्टूबर में चुनाव की संभावना जताई जा रही है। शिव सेना के लिए और ठाकरे परिवार के लिए बृहन्नमुंबई महानगर निगम यानी बीएमसी का चुनाव लाइन लाइन की तरह है। विधायकों और सांसदों से ज्यादा मुंबई के पार्षद शिव सेना की ताकत होते हैं। ठाकरे परिवार को यह दिखाना है कि एकनाथ शिंदे को भले चुनाव आयोग ने असली शिव सेना मान लिया है लेकिन असली शिव सेना ठाकरे परिवार की है। अकेले उद्धव ठाकरे यह नहीं कर सकते थे। उनके सामने असली चुनौती शिव सैनिकों के मन की दुविधा को खत्म करना था। दूसरी ओर राज ठाकरे डेढ़ दशक से ज्यादा समय से इधर उधर भटक रहे थे। उनको भी एक ठिकाना चाहिए था। दोनों के साथ आने से शिव सैनिकों का कंफ्यूजन दूर हुआ है। अगर उद्धव ठाकरे की शिव सेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के बीच टिकट का बंटवारा ठीक ढंग से हो जाए तो इनका गठबंधन बीएमसी चुनाव की मुख्य धुरी होगी।