अब तक यह बात भारतीय जनता पार्टी में दिख रही थी। वहां चुन चुन कर ऐसे लोगों को ऊंचे पद दिए जा रहे हैं, जिनका राजनीतिक कद उस पद के अनुरूप नहीं होता है। मजबूत और जनाधार वाले नेताओं की जगह नया नेतृत्व लाने के नाम पर पहली बार या दूसरी बार के ऐसे विधायक मुख्यमंत्री बनाए गए हैं, जिनको उनके अपने क्षेत्र से बाहर कोई नहीं जानता है। अब यह सिद्धांत क्रिकेट के सबसे बड़े संगठन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई में भी पहुंच गया है। सोचें, जहां भारत के सबसे महान कप्तान और शानदार बल्लेबाज सौरव गांगुली अध्यक्ष रहे वहां मिथुन मन्हास अध्यक्ष बनने वाले हैं!
ध्यान रहे इस समय बीसीसीआई भी पूरी तरह से जय शाह के नियंत्रण में ही है। पिछली बार सौरव गांगुली की जगह रोजर बिन्नी को अध्यक्ष बनाया गया था। वे पुराने टेस्ट क्रिकेटर रहे हैं। हालांकि सबको पता है कि वे मूर्ति की तरह पद पर स्थापित किए गए हैं। उन्होंने अध्यक्ष के तौर पर सिर्फ नौकरी की। अब उनकी जगह मिथुन मन्हास को अध्यक्ष बनाया जा रहा है। मिथुन मन्हास दिल्ली की टीम से खेलते थे लेकिन आज तक उन्होंने भारत के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला है। उनका न तो प्रशासनिक अनुभव कोई बहुत बड़ा है और न क्रिकेट कोच के तौर पर उन्होंने नाम किया है। हो सकता है कि वे निष्ठावान हों। ,सिर्फ इस गुण के आधार पर उनको बीसीसीआई का अध्यक्ष बनाया जा रहा है। इससे पहले या तो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल चुके खिलाड़ी अध्यक्ष होते थे या बड़े क्रिकेट प्रशासक या बड़े राजनेता अध्यक्ष होते थे।