राज्यसभा की पांच सीटों के लिए चुनाव की घोषणा हो गई है। इसका इंतजार काफी समय से किया जा रहा था। इसमें चार सीटें जम्मू कश्मीर की हैं, जो करीब चार साल से खाली हैं और एक सीट पंजाब की है, जो कुछ समय पहले खाली हुई है। इस सीट पर उपचुनाव होने वाला है। चुनाव आयोग की ओर से जारी कार्यक्रम के मुताबिक 24 अक्टूबर को इन पांचों सीटों पर वोटिंग होगी। अगर पांच से ज्यादा नामांकन नहीं होते हैं तो नाम वापसी के आखिरी दिन पांचों सीटों पर निर्विरोध निर्वाचन की घोषणा हो जाएगी। कई कारणों से इन पांचों सीटों का चुनाव दिलचस्प होगा। पंजाब में कौन आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार कौन होगा, यह जानने में दिलचस्पी है तो जम्मू कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस क्या अकेले तीन सीट लेगी या कांग्रेस को एक सीट मिलेगी यह देखना होगा और दूसरे, भाजपा के प्रति निष्ठा दिखा रहे गुलाम नबी आजाद का क्या होगा, यह भी देखने वाली बात होगी। यह भी देखना होगा कि क्या सत्तारूढ़ गठबंधन चारों सीटों जीतने की कोशिश करेगा।
गौरतलब है कि गुलाम नबी आजाद के साथ चार लोग रिटायर हुए थे और उसके बाद से जम्मू कश्मीर में राज्यसभा का चुनाव नहीं हुआ है। आजाद के अलावा फैयाज अहमद मीर, नजीर अहमद लावी और शमशेर सिंह मिन्हास के रिटायर होने से ये सीटें खाली हुई थीं। मिन्हास और मीर 10 फरवरी 2021 को रिटायर हुए थे, जबकि आजाद और लावी 15 फरवरी को रिटायर हुए। चुनाव आयोग ने जो अधिसूचना जारी की है उसके मुताबिक 10 फरवरी 2021 को खाली हुई दोनों सीटों पर अलग अलग चुनाव होंगे। जाहिर है एक एक सीट का अलग चुनाव होगा तो सत्तारूढ़ दल यानी नेशनल कॉन्फ्रेंस के खाते में दोनों सीटें जाएंगी। क्योंकि एक सीट जीतने के लिए साधारण बहुमत की जरुरत है। ध्यान रहे इस समय 90 सदस्यों की विधानसभा में 88 विधायक हैं क्योंकि बडगाम और नगरोटा सीट खाली है। सो, एक सीट जीतने के लिए 45 वोट की जरुरत है, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस की उमर अब्दुल्ला सरकार के पास 53 विधायक हैं। उमर की पार्टी के अपने 41 विधायक हैं। उनको कांग्रेस के छह, सीपीएम के एक और पांच निर्दलीय विधायकों का समर्थन है।
दूसरी ओर भाजपा के 28 विधायक हैं। पीडीपी के तीन, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के एक, आम आदमी पार्टी के एक और दो निर्दलीय विधायक किसी के साथ नहीं हैं। बहरहाल, चुनाव आयोग की अधिसूचना के मुताबिक 15 फरवरी 2021 को खाली हुई दो सीटों पर एक साथ चुनाव होंगे। इनके लिए एक अधिसूचना जारी हुई है। इसका मतलब है कि इन दो में से एक सीट जीतने के लिए 29 वोट की जरुरत होगी। इस लिहाज से नेशनल कॉन्फ्रेंस को एक सीट आसानी से मिल जाएगी लेकिन दूसरी सीट के लिए उसके पास चार वोट कम हो जाएंगे। दूसरी ओर भाजपा के 28 विधायक हैं और उसे एक सीट जीतने के लिए कम से कम एक अतिरिक्त वोट की जरुरत होगी। अगर इन दो सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन ने दूसरा उम्मीदवार नहीं दिया तो भाजपा का उम्मीदवार निर्विरोध जीतेगा अन्यथा चुनाव की नौबत आएगी। पहली सीट जीतने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन के पास 24 वोट बचेंगे। अगर पीडीपी के तीन, आम आदमी पार्टी और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस एक एक व दो निर्दलीय विधायकों में पांच का समर्थन मिले तो सत्तारूढ़ गठबंधन चौथी सीट भी जीत सकता है। लेकिन क्या भाजपा ऐसा होने देगी? सामान्य स्थितियों में तो ऐसा होना संभव नहीं है। लेकिन अगर पीडीपी को सीट देकर नेशनल कॉन्फ्रेंस व कांग्रेस खेल करना चाहें तो अलग बात है।