यह साफ कर दिया जाना चाहिए कि भारत पर नए टैरिफ लगाए गए, तो यह बीटीए का उल्लंघन होगा। दो टूक ट्रंप प्रशासन को बताया जाना चाहिए कि उन स्थितियों में बीटीए पर पालन करने के लिए भारत विवश नहीं होगा।
अमेरिका में रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 500 प्रतिशत का टैरिफ लगाने का बिल पेश किया है। उनका दावा है कि इस बिल को 84 सीनेटरों का समर्थन हासिल है। साथ ही राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने उन्हें बिल को आगे बढ़ाने के लिए हरी झंडी उन्हें दे दी है। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में ग्राहम ने खास तौर पर चीन और भारत का जिक्र किया। कहा कि ये दोनों देश रूस से तेल की खरीदारी कर रूस के युद्ध तंत्र की मदद कर रहे हैं। यह बिल सचमुच पारित होता है और उस पर राष्ट्रपति दस्तखत कर देते हैं, तो फिर भारत (और चीन) को रूस से तेल या अन्य वस्तुओं की खरीदारी करने या अमेरिका से व्यापार करने के बीच किसी एक का चुनाव करना होगा।
मुक्त व्यापार के नजरिए से देखें, तो यह अमेरिका की तरफ से लगाया गया एक गैर-व्यापार अवरोध होगा। अमेरिका ऐसी रुकावटों का इस्तेमाल अक्सर अपने सामरिक एवं भू-राजनीतिक मकसदों को हासिल करने के लिए करता है। ट्रंप ने में अपने टैरिफ वॉर के जरिए तमाम देशों के सामने अमेरिकी शर्तों के मुताबिक कारोबार करने की मजबूरी पहले ही खड़ी कर दी है। भारत जैसे देश इन नई परिस्थितियों के अनुरूप अमेरिका से द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) करने की प्रक्रिया में हैं। अब नई स्थिति यह है कि बीटीए के अतिरिक्त, एक बिल्कुल गैर-व्यापार कारण से, टैरिफ की एक नई तलवार फिर सिर पर आ लटकी है।
तो फिर द्विपक्षीय समझौते का फायदा क्या होगा? इसलिए यह अनिवार्य हो गया है कि मौजूदा वार्ता के क्रम में ही भारत ट्रंप प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगे। यह साफ कर दिया जाना चाहिए कि किसी अन्य कारण से भारत पर नए टैरिफ लगाए गए, तो यह बीटीए का उल्लंघन होगा। दो टूक ट्रंप प्रशासन को यह बताया जाना चाहिए कि उन स्थितियों में बीटीए पर पालन करने के लिए भारत विवश नहीं होगा। पहले ही, बीटीए वार्ता के तहत ट्रंप प्रशासन भारत के लिए अस्वीकार्य शर्तों को थोपने की कोशिश में है। ऊपर से एक नई तलवार लटका दी गई है।


