अमेरिका का पाकिस्तान को खुला समर्थन उस समय मिला है, जब चीन और रूस अपने समीकरणों में उसे जगह देने के लिए प्रयासरत हैं। यानी यह ऐसा मौका है, जब दुनिया की तीनों बड़ी ताकतों की छत्रछाया पाकिस्तान को मिल रही है।
यह वक्तव्य डॉनल्ड ट्रंप का नहीं है, जिनके रुख की अस्थिरता बहुचर्चित है। ये बातें अमेरिका के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी जनरल माइकल कुरिला ने कही हैं। जनरल कुरिला यूएस सेंट्रल कमान (सेंटकॉम) के कमांडर हैं। उन्होंने बयान अमेरिकी संसद के निचले सदन- हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की सशस्त्र सेना समिति के सामने दिया। यानी जो कहा गया, वह आधिकारिक है, जिसे अमेरिका का ठोस नजरिया माना जाएगा। जनरल कुरिला ने कहा- ‘अमेरिका के भारत और पाकिस्तान दोनों से संबंध हैं। भारत से संबंध रखने के लिए पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती।’ जनरल कुरिला ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के योगदान को ‘असाधारण’ बताया।
इसके बाद अब किसी के मन में भ्रम नहीं बचना चाहिए कि पाकिस्तान के खिलाफ मुहिम में अमेरिका भारत से सहयोग करेगा। इसी के साथ इस खबर पर भी गौर करना चाहिए कि 14 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की तरफ से आयोजित भव्य सेना दिवस समारोह में जिन विदेश मेहमानों को आमंत्रित किया गया है, उनमें पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर भी हैँ। साफ है, मुनीर के घोर सांप्रदायिक और कट्टरपंथी नजरिए पर भारत को चाहे जितनी आपत्तियां हों, मगर ट्रंप प्रशासन इससे संबंधित भारत की भावनाओं का ख्याल नहीं रखता।
और अमेरिका का यह रुख उस समय जग-जाहिर हुआ है, जब चीन का खुला समर्थन पाकिस्तान को हासिल है तथा विकासशील दुनिया में उभर रहे नए समीकरणों में पाकिस्तान को जगह दिलाने के लिए रूस प्रयासरत है। यानी एक ऐसा मौका आया है, जब दुनिया की तीनों बड़ी ताकतों की छत्रछाया पाकिस्तान को हासिल दिखती है। मतलब आतंकवाद और पाकिस्तान को समानार्थी बताने का भारत प्रयास फिलहाल असर खो रहा दिखता है। संभव है कि इसकी वजह पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति हो, जिसमें सभी शक्तियों को वह अपने लिए महत्त्वपूर्ण नजर आ रहा हो। मगर इससे भारत की रणनीतिक मुश्किलें बढ़ी हैं। यह भारत की कूटनीतिक विफलता है या नहीं, इस सवाल पर अलग- अलग नजरिए हो सकते हैं, मगर इसे अब स्वीकार कर लेने में ही भलाई है कि भारत इस मुद्दे पर अकेला पड़ गया है।