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सपनों पर वज्रपात क्यों?

हकीकतें बेहद बेरहम हों, तो बहुत से जज्बाती युवा उससे तालमेल नहीं बिठा पाते। हताशा से घिर कर एक दिन वे खुद अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं। तो अहम मुद्दा यह है कि आखिर हमारे देश में हकीकतें इतनी बेरहम क्यों हैं?

भारत में 15 से 29 वर्ष उम्र वर्ग के नौजवानों में आत्म-हत्या की बढ़ी प्रवृत्ति सचमुच चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक खुदकुशी इस उम्र वर्ग में मौत का सबसे बड़ा कारण बनी हुई है। 2020-22 में इस उम्र वर्ग में कुल जितने व्यक्ति मौत का शिकार बने, उनमें 17.1 प्रतिशत वो थे, जिन्होंने खुद अपनी जीवनलीला समाप्त की। मौत का दूसरा बड़ा कारण सड़क दुर्घटनाएं रहीं। कुल मौतों में 15.6 प्रतिशत इस वजह से हुईं। आंकड़ों में जाएं, तो भारत में इस उम्र वर्ग के 60,700 व्यक्तियों ने खुद अपनी जिंदगी समाप्त कर ली। ये आंकड़े कुछ समय पहले आए थे।

ये फिर से चर्चा में इसलिए आए हैं, क्योंकि भारत में युवा आत्म हत्या की संख्या की तुलना बाहरी देशों से की गई है। खास दिलचस्प चीन से हुई तुलना है। चीन में उसी अवधि में साढ़े दस हजार से ज्यादा नौजवानों ने आत्म-हत्या की। यानी भारत ये आंकड़ा छह गुना ज्यादा रहा। वैसे इसे और सही संदर्भ देने के लिए जरूरी है कि दोनों देशों में 15-29 वर्ष उम्र की जनसंख्या पर ध्यान दिया जाए। भारत में इस उम्र वर्ग की आबादी तकरीबन साढ़े 34 करोड़ है। चीन में यह संख्या लगभग 26 करोड़ है। इसलिए सीधे छह गुना कहना उचित नहीं होगा। बल्कि सही आंकड़ा साढ़े चार- पांच गुना बैठेगा। फिर भी यह तथ्य तो उभरता ही है कि भारत में ये संख्या आनुपातिक रूप से काफी ज्यादा है। क्यों?

15 से 26 वर्ष वह उम्र वर्ग है, जो व्यक्ति अपने सपनों को सहेजने के प्रयास में होता है। किशोरावस्था में मन में जगे अनियंत्रित सपनों का तब वह अपनी हकीकत से तालमेल बैठाना शुरू करता है। अधिकांश को लोगों को इस क्रम में कुछ मायूसियां झेलनी पड़ती हैं। मगर हकीकतें अत्यधिक बेरहम हों, तो फिर बहुत से जज्बाती किस्म के युवा उससे तालमेल नहीं बिठा पाते। हताशा से घिर कर एक दिन वे खुद अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं। यह समझ सही है, तो समझने की बात यह होनी चाहिए कि आखिर हमारे देश में हकीकतें इतनी बेरहम क्यों हैं?

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By NI Editorial

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