असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में बाढ़ और गंभीर बारिश ने मुश्किल हालात पैदा कर रखे हैं। तीन दर्जन से अधिक मौतें हो चुकी हैं। हैरतअंगेज है कि इतनी बड़ी मुसीबत बाकी देश में चर्चा से बाहर है।
देश के पूरे उत्तर-पूर्वी हिस्से में बाढ़ और भारी बारिश के कारण दसियों लाख लोग तबाही झेल रहे हैं। इस वजह से कई जगहों पर जमीन धंसने की घटनाएं हुई हैं। अलग-अलग जगहों पर तीन दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सिक्किम में लचेन कस्बे के निकट तो भूस्खलन के कारण सेना का एक कैंप क्षतिग्रस्त हो गया, जिसमें तीन सैनिकों की जान चली गई। असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भी बाढ़ और गंभीर बारिश ने समस्याएं पैदा कर रखी हैं।
गुवाहाटी में भूस्खलन में फंसकर एक ही परिवार के पांच लोगों की मौत हो गई। कई राज्यों में जल जमाव के कारण रोजमर्रा की जिंदगी और यातायात पर असर पड़ा है। ज्यादातर राज्यों में मौसम के हाल को देखते हुए स्कूल और कॉलेजों को बंद करने का फैसला किया गया है। लेकिन हैरतअंगेज है कि उत्तर-पूर्व में आई इतनी बड़ी मुसीबत बाकी देश में चर्चा से बाहर है। केंद्र ने राहत और बचाव के लिए कोई अतिरिक्त चुस्ती नहीं दिखाई है। अपने को राष्ट्रीय कहने वाले मीडिया के लिए आम जन की ऐसी दिक्कतें आज बड़ी या “बिकाऊ” खबर नहीं होती! क्या इसे लगातार कमजोर पड़ती राष्ट्रीय संवेदनशीलता की मिसाल नहीं माना जाएगा? आवश्यकता यह है कि केंद्र सरकार और देशवासी उत्तर-पूर्व के लोगों की मदद के लिए भरसक कोशिश करें।
उन सातों राज्यों को फिलहाल संसाधनों के साथ-साथ बचाव कर्मियों की भी जरूरत है। उत्तर-पूर्व को बाढ़, बारिश और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं का सामना हर साल करना पड़ता है। उससे बचाव के लिए कोई दीर्घकालिक योजना बने या राहत कार्यों की एतहियातन तैयारी की जाए, इस पर तो आज तक सोचा ही नहीं गया। मगर कुछ दशक पहले तक यह जरूर होता कि ऐसी मुसीबतों के समय राष्ट्र की संवेदना प्रभावित इलाकों से जुड़ती थी। अब हर प्रभावित राज्य को अपने मानव एवं भौतिक संसाधनों पर ही आश्रित रहना पड़ता है। इस मुसीबत के समय भी प्रभावित राज्यों ने अपने स्तर पर बचाव कार्य शुरू किए हैँ। लेकिन लोगों को राहत पहुंचाने में ये पर्याप्त साबित नहीं हुए हैं।