आबादी का छोटा-सा जो हिस्सा वित्तीय अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, उसकी चमक बढ़ी है। मगर विषमता इतनी तेजी से बढ़ी है कि वित्तीय सेवाएं देने वाली जर्मन मूल की बहुराष्ट्रीय कंपनी- एलायंज ग्रुप- ने भी चेतावनी दी है।
पहले खबर का अच्छा पहलूः 2024 में भारतीय घरों की औसत आमदनी बढ़ने की रफ्तार और तेज हुई। कुल मिलाकर 14.5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई। धन वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान प्रतिभूतियों में निवेश का रहा। कुल बढ़ी आय में प्रतिभूतियों से हुई आमदनी का हिस्सा 28.7 प्रतिशत था। बीमा और पेंशन फंड में निवेश से हुई आय का हिस्सा 19.7 प्रतिशत रहा। कुल मिला कर मुद्रास्फीति को एडजस्ट करने के बाद वित्तीय संपत्तियों में हुई बढ़ोतरी 9.4 प्रतिशत रही। इन सभी आमदनियों से कोरोना काल के बाद भारत में औसत क्रय शक्ति में 40 फीसदी इजाफा हुआ है। नजर इसके आगे ना ले जाई जाए, तो एलायंज ग्रुप की रिपोर्ट से सामने ये आंकड़े भारत में बढ़ती खुशहाली की कहानी मालूम पड़ेंगे। लेकिन नजर आगे ले जाने पर जो दिखता है, उनसे कथा पलट जाती है।
मसलन, भारतीय घरों का ऋण अनुपात बढ़ कर 41 फीसदी हो गया है, जो एक दशक पहले से आठ प्रतिशत ज्यादा है। एक तरफ तेजी से बढ़ी आमदनी और दूसरी तरफ कर्ज का बढ़ा बोझ आर्थिक विषमता को पिछले साल नए स्तर पर ले गए। एलायंज ग्रुप के मुताबिक 2004 में सबसे धनी दस प्रतिशत भारतीयों के पास देश का 58 फीसदी धन था। दो दशक बाद ये आंकड़ा 65 फीसदी हो गया है। औसत एवं माध्यमिक (मेडियन) धन के बीच फासला भी बढ़ता चला गया है। इसकी बड़ी वजह अर्थव्यवस्था का उत्तरोत्तर वित्तीयकरण है। आज देश में 2004 की तुलना में सकल वित्तीय संपत्तियां 13 गुना ज्यादा हैं।
स्पष्टतः आबादी का छोटा-सा जो हिस्सा अर्थव्यवस्था के इस भाग से जुड़ा है, उसकी चमक बढ़ी है। मगर हालात इतने गंभीर हैं कि वित्तीय सेवाएं देने वाली इस बहुराष्ट्रीय कंपनी- यानी एलायंज ग्रुप ने भी बढ़ी गैर-बराबरी को लेकर आगाह किया गया है। कहा है कि इस शानदार वृद्धि का समता एवं वितरण संबंधी न्याय से तालमेल बनाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। कंपनी के विशेषज्ञ संभवतः यह समझते हैं कि ऐसे तालमेल के अभाव में समृद्धि खुशहाली में तब्दील नहीं होती। उलटे कई सामाजिक चुनौतियां उभर जाती है, जैसाकि अभी हो रहा है।