शेख हसीना के खिलाफ ट्रिब्यूनल के फैसले से बांग्लादेश में सियासी मेलमिलाप की संभावना और घट गई है। दूसरी तरफ इससे भारत की कठिनाइयां बढ़ी हैँ। देश छोड़ने के बाद से हसीना और तत्कालीन गृह मंत्री भारत में रह रहे हैं।
जब किसी देश में सत्ता तंत्र में आमूल बदलाव आ जाता है, तो पूर्व शासन से संबंधित अधिकारियों के खिलाफ हुई कार्रवाई या उन पर चले मुकदमों की निष्पक्षता हमेशा संदिग्ध रहती है। ऐसे मामलों में अक्सर बदले की भावना से कार्रवाई होती है, जिसमें अभियुक्तों को अपना बचाव करने के पर्याप्त अवसर नहीं मिलते। बांग्लादेश में जो हुआ, वह भी इस सामान्य चलन से अलग नहीं है। बांग्लादेश के कथित इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी माना है और उन्हें सजा-ए-मौत सुना दी है।
यही दंड हसीना सरकार में गृह मंत्री रहे असदुजम्मां खान कमाल को भी सुनाया गया है। ट्रिब्यूनल ने हसीना को उन कथित अपराधों के लिए दोषी पाया, जो पिछले साल सरकार विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुए थे। इन प्रदर्शनों में करीब 1,400 लोगों की मौत हुई। ट्रिब्यूनल के ताजा फैसले से बांग्लादेश में सियासी मेलमिलाप की संभावना और घट गई है। दूसरी तरफ इससे भारत की कठिनाइयां बढ़ी हैँ। अगस्त 2024 में देश छोड़ने के बाद से हसीना और कमाल दोनों भारत में रह रहे हैं। अब चूंकि वे दोनों सजायाफ्ता मुजरिम हैं, इसलिए उन्हें पनाह दिए रहना भारत के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है। दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि है। बांग्लादेश ने इसके तहत शेख हसीना और कमाल को वापस भेजने की मांग रख दी है।
इसे नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा, क्योंकि उस स्थिति में बांग्लादेश संधियों एवं अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति भारत की वचनबद्धता पर सवाल खड़े करेगा। लेकिन दोनों को सजा-ए-मौत देने के लिए बांग्लादेश भेजने से अपने लिए अनुकूल रहे नेताओं को संरक्षण देने में भारत की विफलता का संदेश जाएगा। स्पष्टतः यह एक मुश्किल चुनौती है, जिसमें वर्तमान सरकार के कूटनीति कौशल का इम्तहान होगा। पिछले साल सत्ता परिवर्तन के बाद से बांग्लादेश के रुख से भारत के लिए अन्य मुश्किलें भी बढ़ी हैं। खासकर पाकिस्तान के साथ उसकी बढ़ी निकटता से भारत के सामने सुरक्षा एवं विदेश नीति संबंधी नई चुनौतियां दरपेश आई हैँ। अब प्रत्यर्पण संधि के पालन का सवाल इसमें एक नया पेंच बन कर जुड़ गया है।


