economy crisis
इस हफ्ते जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में जुलाई में पिछले साल के इसी महीने की तुलना में सिर्फ 2.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
जिस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएं सरकारों को अपनी जनता को राजकोष से मदद देने की सलाह दे रही हैं
ऐसा नहीं है कि भारत सिर्फ कोरोना वायरस का मारा है। कोरोना वायरस की उत्पत्ति के पहले से भारत की अर्थव्यवस्था को घुन लग गया था, जो इसकी जड़ों को खोखला बना गया है।
आम इनसान की जेब में घटाने में सरकार की कितनी भूमिका है, इसे खुद वित्त मंत्री ने बताया। केंद्र ने पिछले तीन वित्त वर्षों में पेट्रोल और डीजल पर टैक्स के जरिए आठ लाख दो हजार करोड़ रुपए वसूले हैं।
कोरोना वायरस की दूसरी लहर का पीक चार मई 2021 को था, जिस दिन देश में चार लाख 14 हजार 188 नए केसेज मिले थे। उसके अगले दिन यानी पांच मई से दूसरी लहर कम होनी शुरू हुई।
भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने डगमग अर्थव्यवस्था को एक तरह से अंधकार में धकेल दिया है। बैंको से निजी कर्ज लेने वालों, क्रेडिट कार्ड से कर्ज लेने वालों और प्राइवेट कंपनियों से गोल्ड लोन लेने वालों के डिफॉल्ट में पिछले महीने हुई बढ़ोतरी बढ़ती जा रही तबाही का संकेत देती है। रोजमर्रा के उपयोग की चीजें का बाजार जिस तरह अप्रैल और मई में ढहा है, उसका भी यही संकेत है कि भारत दुर्दशा अकथनीय रूप लेती जा रही है। दरअसल, ऐसी कहानी दुनिया भर में देखने को मिल रही है। इसलिए फिलहाल ऐसी भी कोई उम्मीद नहीं है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की मजबूती भारत को संभाल लेगी। मसलन, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ताजा रिपोर्ट गौरतलब है। उसमे बताया गया है कि वैश्विक संकट के कारण 2022 तक बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 20 करोड़ 50 लाख हो जाएगी। गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ विषमता भी बढ़ेगी। आईएलओ का कहना है कि रोजगार के अवसरों में होने वाली बढ़ोतरी साल 2023 तक इस नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएगी। ये सूरत तब की है, जब अभी पता नहीं है कि कोरोना महामारी के अभी आगे और कितने दौर आएंगे। हर दौर नई समस्याएं पैदा… Continue reading टूटती उम्मीदों की कथा
केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों और देश में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला किया।
दुनिया की आर्थिक हालत फिलहाल ऐसी हो गई है, जैसी पिछले कम से कम 30 साल में नहीं देखी गई। ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि इस हाल से उबरने की अभी कोई सूरत भी नजर नहीं आ रही है।
इस बार दिवाली कैसे मनाई जाए, यह बहस सारे देश में चल पड़ी है। पश्चिम एशिया के देशों ने ईद मनाने में सावधानियां बरतीं और गोरों के देश क्रिसमिस पर उहा—पोह में हैं। दिवाली बस एक सप्ताह में ही आ रही है लेकिन उसके पहले ही देश में धुआंधार हो गया है।
पता नहीं क्या होगा भारत का, हम हिंदुओं का! सर्वत्र ऐसी अव्यवस्था में जीते हुए कि सबकुछ खोखला, जर्जर और भटका हुआ! सभी दिशाओं, सभी मामलों में खाली और खोखला। न सरकार में दिशा न विपक्ष में।
यह सरकार के लिए चिंता की बात होनी चाहिए कि उसका वित्तीय घाटा पूरे साल के लिए तय लक्ष्य को अभी ही पार कर गया है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष यानी 2019-20 के लिए वित्तीय़ घाटे का जो लक्ष्य तय किया था उससे नौ फीसदी ज्यादा पहले पांच महीने में ही हो चुका है।
अभी हाल में खबर आई कि नोएडा में लॉकडाउन होने के बाद 195 लोगों ने आत्म हत्या कर ली। जाहिर है, स्थितियां जितनी निराशाजनक होंगी, ऐसी दुखद घटनाएं बढ़ेंगी। हाल में आई एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 में हर चार मिनट में किसी न किसी व्यक्ति ने आत्महत्या की।
कोरोना वायरस के संक्रमण और उसकी वजह से बिगड़ती आर्थिक हालत को देखते हुए जिस तरह से सांसदों की विकास निधि पर रोक लगा दी गई है उसी तरह से दिल्ली और दूसरे राज्यों की विधानसभा के सदस्यों को अपने इलाके के लिए मिलने वाला फंड भी रोक दिया गया है।
वस्तु व सेवा कर को देश के सभी राज्यों की सरकारों की सहमति से बनाया गया था। जब इसकी परिकल्पना की गई थी तो उसमें एक बात पहले दिन से शामिल थी कि इस पर विचार के लिए बनी राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति का अध्यक्ष ऐसे राज्य के वित्त मंत्री को बनाया जाएगा, जो केंद्र में सत्तारूढ़ दल का विपक्ष हो।
पिछले दिनों एक पूर्व सहयोगी महिला पत्रकार का फोन आया जो विदेश के एक बहुत प्रतिष्ठित अखबार समूह में काम करती थी। वे काफी वरिष्ठ थी।