ऐसे आंकड़े सामने आए हैं, जो सवाल उठाते हैं कि जिस तीव्रतम गति से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था का शोर है, उसका संबंध भारतीय आबादी के किस और कितने बड़े हिस्से से है? और जो बाकी आबादी है, उसका इस अर्थव्यवस्था में कितना दांव है?
शोर यह है कि भारत विश्व अर्थव्यवस्था का अगला हॉट स्पॉट है। चीन के गिरने और भारत के उठने की कहानियों से मीडिया पटा हुआ है। जबकि उसी समय हर कुछ दिन पर ऐसी सच्चाइयां सामने आती हैं, तो हमारा सामना सिक्के के दूसरे पहलू से करा जाती हैं। ऐसे आंकड़े सामने आते हैं, जो सवाल उठाते हैं कि जिस तीव्रतम गति से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था का शोर है, उसका संबंध भारतीय आबादी के किस और कितने बड़े हिस्से से है? और जो बाकी आबादी है, उसका इस अर्थव्यवस्था में कितना दांव है? ऐसे ताजा आंकड़े ऐसे ही आंकड़े विश्व खाद्य सुरक्षा एवं पोषण रिपोर्ट-2023 ने पेश किए हैं। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों से मिल कर तैयार करती है। जाहिर है, इस रिपोर्ट में आधिकारिक आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। ताजा रिपोर्ट 2021 के आंकड़ों पर आधारित है।
इसमें बताया गया है कि भारत की 74 प्रतिशत आबादी स्वस्थ आहार जुटा पाने में अक्षम है। खाद्य की बढ़ती महंगाई के कारण लोगों के लिए गुजरे पांच वर्षों में स्वस्थ आहार ले पाना अधिक कठिन हो गया। 2017-18 की तुलना में 2019-21 में एशिया में ऐसे आहार की महंगाई 9.1 प्रतिशत बढ़ी। नतीजा यह है कि एशिया और उसके बीच भी दक्षिण एशिया में ऐसे लोग सर्वाधिक संख्या में हो गए हैं, जो स्वस्थ आहार से वंचित हो गए हैँ। दुनिया के स्तर पर देखें, तो इस सिलसिले में भारत से ज्यादा खराब स्थिति सिर्फ नेपाल, पाकिस्तान या इथियोपिया जैसे देशों की है। प्रश्न यह है कि जिस देश की तीन चौथाई आबादी को स्वस्थ आहार ना मिलता हो, वह किस तरह के मानव विकास और स्वस्थ श्रमशक्ति की अपेक्षा रख सकता है? यह हकीकत इस बात पर रोशनी डालती है कि आर्थिक विकास और धन निर्माण होने के साथ ट्रिकल डाउन सिद्धांत के तहत समृद्धि सब तक पहुंचने का जो वादा किया गया था, वह झूठा साबित हुआ है। नतीजतन, अर्थव्यवस्था के चमकते आंकड़ों और आम जन की जिंदगी में आज शायद ही को संबंध रह गया है।