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यही तो उपलब्धियां हैं!

नागेश्वरन ने कहा कि आईपीओ को मूल निवेशकों ने संबंधित उद्यम से अपना पैसा निकालने का माध्यम बना लिया है। यानी बहुत से आईपीओ ऐसे हैं, जिनका मकसद पूंजी जुटा कर आगे निवेश करना या उद्यम को फैलाना नहीं है।

भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन की खूबी यह है वे अक्सर दो-टूक बयानी कर जाते हैं। यह अलग बात है कि उनकी बातों- यानी सलाह का सरकार की रीति-नीति पर असर कम ही नजर आता है। बहरहाल, फिर उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूप पर कुछ ऐसा कहा है, जो बने- बनाए नैरेटिव से मेल नहीं खाता। एक तो उन्होंने आगाह किया कि वित्तीय अर्थव्यवस्था वास्तविक अर्थव्यवस्था नहीं है। फिर चेतावनी दी कि गलत मंजिलों को लेकर उत्सव नहीं मनाया जाना चाहिए। उन्होंने शेयर बाजार के कुल भाव (मार्केट कैपिटलाइजेशन) और डेरिवियेटिव्स टर्नओवर को ऐसी ही मंजिलें बताया।

उन्होंने एक खास बात यह भी कही कि इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग्स (आईपीओ) को मूल निवेशकों ने संबंधित उद्यम से अपना पैसा निकालने का माध्यम बना लिया है। यानी जो आईपीओ आ रहे हैं, उनमें से बहुत से ऐसे हैं, जिनका मकसद पूंजी जुटा कर आगे निवेश करना या उद्यम को फैलाना नहीं है। बल्कि उद्यमी अपना पैसा निकाल लेने या जोखिम अन्य निवेशकों पर भी डाल देने की नीति अपना रहे हैं। इससे आईपीओ की संख्या भले बढ़े, मगर उससे अर्थव्यवस्था का विस्तार नहीं होता। नागेश्वरन ने ये सारी बातें सीआईआई के वित्तीय सम्मेलन में कही- यानी कारोबारियों के सामने, जिनके कंधों पर भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का दायित्व वर्तमान सरकार ने डाला है।

मगर कारोबारी उत्पादन और वितरण की वास्तविक अर्थव्यवस्था से अपना नाता घटाते हुए वित्तीय संपत्तियों में अपना दांव बढ़ाते चले जा रहे हैं। फलस्वरूप मार्केट कैपिटलाइजेशन उछलने या डेरिविएटिव्स टर्नओवर बढ़ने की खबरें सुर्खियों में छायी रहती हैं। इससे जीडीपी भी बढ़ती है। और यही मौजूदा दौर की सबसे बड़ी आर्थिक उपलब्थधियां हैं! लेकिन इस दौरान जो नहीं होता, वह है रोजगार सृजन और आम मांग एवं उपभोग में वृद्धि। नतीजा विषमता को बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है। हर अर्थशास्त्री इस बात और इसके संभावित परिणामों को भलि-भांति समझता है। मुद्दा बस इसे ईमानदारी से कह डालने का है, जो मुख्य आर्थिक सलाहकार अक्सर कर जाते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनकी ऐसी बातों का सरकारी नीतियों पर असर अब तक दिखा नहीं है।

By NI Editorial

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