“नया भारत” उत्सव मनाता नहीं, उत्सव अभिनय करता है!
खुशहाली, समृद्धि आखिर होती क्या है? खासकर उस देश के लिए जहां जीतने का शौर है जीतता दिखता है लेकिन भीतर से थका, खोखला है? कागज़ों पर, सोशल मीडिया पर, प्रेस कॉन्फ़्रेंसों और सरकारी चमक-दमक वाले आयोजनों में भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से दौड़ रही है। उसकी कूटनीति आत्मविश्वासी है, उसकी वैश्विक छवि दमक रही है। लेकिन इस चमक के नीचे क्या है? क्या थकान, हैरानी नहीं है? राष्ट्र की ऐसी थकान जो दुनिया के लिए ज़रूरत से ज़्यादा कर रहा है, पर अपने लिए महसूस करना भूल गया है। यही सवाल जैसे हवा में तैरता रहा — उस कौटिल्य...