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31-07-2025 Vol 19

कहानी का कुल सार

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भारत में घरेलू बचत में 2023 तेज गिरावट आई। सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में यह महज 5.3 प्रतिशत रह गई है। यह पांच दशकों का निम्नतम स्तर है। घरेलू बचत घटने के साथ परिवारों पर कर्ज का बोझ लगभग उसी अनुपात में बढ़ा है।

भारत का बहुचर्चित आर्थिक विकास देशवासियों को किस दिशा में ले जा रहा है, उस पर रोशनी ताजा आंकड़ों ने डाली है। इनके मुताबिक भारत में घरेलू बचत में 2023 तेज गिरावट आई। सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में यह महज 5.3 प्रतिशत रह गई है। यह पांच दशकों का सबसे निचला स्तर है। घरेलू बचत घटने के साथ परिवारों पर कर्ज का बोझ लगभग उसी अनुपात में बढ़ा है। अब परिवारों पर लगभग 12 खरब रुपये का कर्ज है, जो सकल घरेलू उत्पाद का महज 11.9 प्रतिशत है। ये काबिल-ए-जिक्र है कि कर्जों के भीतर अल्पकालिक ऋण की मात्रा तेजी से बढ़ी है। इसमें क्रेडिट कार्ड से लिए जाने वाले ऋण का अनुपात खासा ऊंचा है। कुछ समय पहले जब भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से घरेलू बचत में तीव्र गिरावट और कर्ज की मात्रा बढ़ने की बात सामने आई थी, तब सरकार की तरफ से इस कहानी को सकारात्मक रंग देने का प्रयास हुआ था। कहा गया था कि अब भारतीय परिवारों का उपभोग पैटर्न बदल रहा है।

वे अपनी बचत में से या कर्ज लेकर मकान और वाहन जैसी चीजों को खरीद रहे हैं। इस तरह कुल मिलाकर लोगों का जीवन स्तर बढ़ रहा है। इसीलिए यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है कि अल्पकालिक कर्ज बढ़े हैं। ऐसे लोग कम ही होंगे, जो क्रेडिट कार्ड से मकान या वाहन का भुगतान करते होंगे। अक्सर ऐसे कर्ज आपात अवस्था में ही लिए जाते हैँ। अगर इस परिघटना को साथ इस सूचना के साथ जोड़ कर देख जाए कि पिछले पांच वर्षों में भोजन पर औसत खर्च 71 प्रतिशत बढ़ा, जबकि औसत आय में सिर्फ 37 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, तो जमीन पर क्या हो रहा है, इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। इसी अवधि में ग्रामीण मुद्रास्फीति की दर अधिकांश मौकों पर शहरी मुद्रास्फीति से अधिक रही है। शिक्षा और इलाज जैसी जरूरतों की महंगाई को जोड़ दें, तो आम परिवारों की जिंदगी किस दिशा में गई है, उसका सहज अंदाजा लग जाता है। तो यह प्रश्न वाजिब है कि दुनिया की सबसे तेज जीडीपी वृद्धि आखिर किसका भला कर रही है?

 

NI Editorial

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