अमेरिका ने साफ कर दिया है कि उसने आखिरी प्रारूप रख दिया है। अब भारत को फैसला करना है कि वह उसे स्वीकार है या नहीं। अगर स्वीकार नहीं है, तो नौ जुलाई से उस पर 26 फीसदी टैरिफ लग जाएगा।
अमेरिकी टीम पिछले भारत आई, तो चर्चा थी कि इस यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) का पहला चरण संपन्न हो जाएगा। अमेरिका के सहायक व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडेन लिंच के नेतृत्व में ये टीम दो रोज के लिए भारत आई। बात आगे नहीं बढ़ी, तो वार्ता दो दिन और बढ़ा दी गई। मगर मंगलवार को जब बातचीत पूरी हुई, तब तक गतिरोध बना रहा। अब टीम अमेरिका लौट रही है। कहा गया है कि आगे वर्चुअल माध्यम से बातचीत होगी। अधिकारियों के हवाले से मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अमेरिकी दल कृषि, दुग्ध, और ई-कॉमर्स क्षेत्र में भारतीय बाजार को पूरी तरह खोलने की अपनी मांग पर अड़ा रहा।
साथ ही उसने साफ कर दिया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 10 प्रतिशत का जो सामान्य आयात शुल्क दुनिया के सभी देशों पर लगाया है, वह बीटीए के बाद भी भारतीय निर्यात पर जारी रहेगा। भारतीय दल इन अमेरिकी मांगों पर सहमत नहीं हुआ। उसने अमेरिकी ड्राई फ्रूट्स और उसके कुछ अन्य उत्पादों पर आयात शुल्क और घटाने की पेशकश की, मगर उससे अमेरिकी दल संतुष्ट नहीं हुआ। खबरों के अनुसार अमेरिका ने साफ कर दिया है कि उसने समझौते का आखिरी प्रारूप पेश कर दिया है। अब यह भारत को फैसला करना है कि वह उसे स्वीकार है या नहीं। अगर स्वीकार नहीं है, तो नौ जुलाई से उस पर 26 फीसदी का “लिबरेशन डे” टैरिफ लग जाएगा।
अमेरिकी मांग मानी गई, तो उसका भारत के किसानों, डेयरी उद्योग से जुड़े लोगों और किराना दुकानदारों पर मारक असर होगा। तो आशंका के बादल इस हद तक गहराए हैं कि आरएसएस से जुड़े संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने भी ई-कॉमर्स में विदेशी कंपनियों के लिए संभावित खुली छूट के खिलाफ आंदोलन का एलान कर दिया है। किसान संगठन पहले ही सरकार को चेतावनी दे चुके हैं। इसलिए भारत सरकार के लिए अमेरिकी मांगों को मानना आसान नहीं है। नतीजा बीटीए का फिलहाल गतिरुद्ध हो गया रास्ता है। अब बेहतर यह होगा कि केंद्र इस मसले पर सभी राजनीतिक दलों एवं संबंधित हितों को भरोसे में लेते हुए राष्ट्रीय आम सहमति बनाए।