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17-06-2025 Vol 19

सही चिंता से प्रेरित

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अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते में जिन क्षेत्रों को पूरी तरह खोलने के लिए भारत पर दबाव डाल रहा है, उन पर राजी होना उससे कहीं अधिक हानिकारक होगा, जितना लाभ अमेरिका से टैरिफ संबंधी रियायतें हासिल करने से मिलेगा।

लगभग 20 पूर्व नौकरशाहों और व्यापार विशेषज्ञों ने अमेरिका से द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) से संबंधित जो सलाह दी है, वह देश हित की वास्तविक चिंता से प्रेरित है। इसलिए इसे केंद्र को गंभीरता से लेना चाहिए। इन वरिष्ठ विशेषज्ञों की सलाह है कि डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन भारत से अत्यधिक रियायतें झटकने पर अड़ा रहा हो, तो भारत तो बीटीए पर दस्तखत करने से इनकार कर देना चाहिए। अमेरिका जिन क्षेत्रों को पूरी तरह खोलने के लिए दबाव डाल रहा है, उन पर राजी होना उससे कहीं अधिक हानिकारक होगा, जितना लाभ अमेरिका से टैरिफ संबंधी रियायतें हासिल करने से मिलेगा।

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय को लिखे पत्र में इन तजुर्बेकार शख्सियतों ने कहा है कि ट्रंप प्रशासन के टैरिफ का कोई कानूनी आधार नहीं है। पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर, पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लै, डब्लूटीओ की अपीलीय संस्था के पूर्व अध्यक्ष उज्ज्वल सिंह भाटिया और पूर्व विदेश सचिव अमरेंद्र खटुआ सहित कई अर्थशास्त्रियों ने पत्र में कहा है कि अमेरिका से जारी मौजूदा वार्ता सामान्य किस्म की नहीं है। इसकी असामान्य प्रकृति को अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए। ये वार्ता व्यापार संबंधी समस्याएं हल करने के लिए नहीं, बल्कि नए अमेरिकी आयात शुल्कों से राहत पाने के लिए है।

पत्र में ध्यान खींचा गया है कि किसी वैध व्यापार प्रोत्साहन प्राधिकरण (टीपीए) की गैर-मौजूदगी के कारण मौजूदा अमेरिकी प्रशासन आयात शुल्कों में स्थायी कटौती के लिए अधिकृत नहीं है। निकट भविष्य में वह कोई व्यापार संबंधी रियायतें नहीं दे सकता। बीटीए पर वार्ता सिर्फ राष्ट्रपति के कार्यकारी आदेश से लागू टैरिफ से संबंधित है। पत्र के मुताबिक, ‘इस स्थिति के कारण होने वाले किसी समझौते के टिकाऊपन को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैँ।’ गौरतलब है कि ऐसे तमाम प्रश्न अमेरिका के कई सहयोगी देशों के मन भी हैं। इसी कारण सिर्फ ब्रिटेन को छोड़ कर उनमें से किसी से अभी तक अमेरिका का समझौता नहीं हुआ है। चीन से सिर्फ व्यापार युद्ध में विराम पर सहमति बनी है। इस संदर्भ को देखते हुए विशेषज्ञों का हस्तक्षेप अहम हो जाता है। अतः भारत सरकार को फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहिए।

NI Editorial

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