भारत उन देशों में है, जिसने समझौते के लिए अति-उत्साह दिखाया, लेकिन समयसीमा आने तक वह व्यापार वार्ता को अंजाम तक नहीं पहुंचा सका। और अब ‘रूस और ब्रिक्स टैरिफ’ का साया उस पर मंडरा रहा है। तो अब भारत सरकार क्या करेगी?
डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर के इतने अधिक आयाम हैं कि उनके प्रशासन से व्यापार समझौता करना किसी के लिए आसान नहीं है। दरअसल, उनके अधिकारियों ने आरंभ में ही यह साफ कर दिया कि मुद्दा सिर्फ आयात शुल्क का नहीं है। बल्कि आयात शुल्क को हथियार बना कर ट्रंप प्रशासन अंतरराष्ट्रीय व्यापार के पूरे सिस्टम को ही बदलना चाहता है। भारत के संदर्भ में ट्रंप ने बार-बार कहा है, व्यापार समझौते के तहत अमेरिकी कंपनियों के लिए निवेश, बिक्री और मुनाफा कमाने के पूरे भारतीय बाजार को खुलवाना उनका मकसद है। इसी बीच ये खबर आई कि उन्होंने अपनी पार्टी के एक सीनेटर को ऐसा बिल पेश करने की हरी झंडी दी है, जिसके तहत रूस से खरीदारी करने वाले देशों पर अमेरिका में 500 फीसदी टैरिफ लग जाएगा।
अब खुद ट्रंप ने एलान किया है कि जो देश ब्रिक्स की ‘अमेरिका विरोधी नीतियों’ से सहयोग कर रहे हैं, उन पर उनका प्रशासन दस फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। इस तरह भारत पर कम-से-कम 10 प्रतिशत आम टैरिफ (जो सभी देशों पर लगेगा) और 10 फीसदी ब्रिक्स टैरिफ लगना लगभग तय हो गया है। इसके पहले कुछ अन्य देशों के साथ वार्ता में ट्रंप प्रशासन ने जो रुख अपनाया, उसका साफ संकेत रहा है कि टैरिफ वॉर के जरिए अमेरिका सिर्फ व्यापार संबंधों को ही नहीं, बल्कि पूरे भू-राजनीतिक संबंधों को भी नए सिरे से ढालने की नीति पर चल रहा है। उसके इसी नजरिए का परिणाम है कि ज्यादातर देश अमेरिका से वार्ता के लिए आगे नहीं आए।
यह बात खुद अमेरिकी वाणिज्य मंत्री स्कॉट बेसेंट ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में स्वीकार की है। सिर्फ ब्रिटेन और वियतनाम दो ऐसे देश हैं, जो अमेरिका से व्यापार समझौते पर सहमति बना सके। भारत उन देशों में है, जिसने समझौते के लिए अति-उत्साह दिखाया, लेकिन समयसीमा आने तक वह अमेरिका से व्यापार वार्ता को अंजाम तक नहीं पहुंचा सका। और अब तो ‘रूस और ब्रिक्स टैरिफ’ का साया भी उस पर मंडरा रहा है। तो अब भारत सरकार क्या करेगी? उसकी वैकल्पिक तैयारी क्या है, देश यह जानना चाहता है।